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ज्ञान अध्ययन
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१६. चरणाहत, १७. आंवला, १८. मणि, १९. सर्प,२०. गेंडा, २१. स्तूप-भेदन। ये पारिणामिकी बुद्धि के उदाहरण हैं।
यह अश्रुतनिश्रित (आभिनिबोधिक ज्ञान) है। ९. औत्पत्तिकी आदि बुद्धियों में वर्णादि के अभाव का प्रलपणप्र. भन्ते ! १. औत्पातिकी २. वैनयिकी, ३. कार्मिकी और
४. पारिणामिकी बुद्धि कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाली
कही गई हैं ? उ. गौतम ! औत्पातिकी यावत् पारिणामिकी ये चारों बुद्धियां वर्ण
यावत् स्पर्श से रहित कही गई हैं। १०. श्रुतनिश्रित मतिज्ञान के भेद
प्र. श्रुतनिश्रित मतिज्ञान कितने प्रकार का है ? उ. श्रुतनिश्रित मतिज्ञान चार प्रकार का कहा गया है, यथा
१. अवग्रह, २. ईहा, ३. अवाय, ४. धारणा।
१६.चलणाहण १७.आमंडे १८.मणी य १९. सप्पे य २०. खग्गि २१.)भिंदे। परिणामियबुद्धीए, एवमाई उदाहरणा से तं असुयणिस्सियं।
-नंदी सु. ४८-५२ ९. उप्पत्तियाई बुद्धीसु वण्णाइअभाव परूवणंप. अह भंते ! १. उप्पत्तिया २. वेणइया ३. कम्मया
४. परिणामिया, एस णं कइवण्णा कइगंधा कइरसा
कइफासा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! उप्पत्तिया जाव परिणामिया एस णं अवन्ना
जाव अफासा पण्णत्ता। -विया. स. १२, उ.५, सु.९ १०. सुयणिस्सिय मई णाणस्स भेया- ..
प. से किं तं सुयणिस्सियं मईनाणं? उ. सुयणिस्सियं मईनाणं चउव्विहं पण्णत्तं,तं जहा१.उग्गहे, २.ईहा ३.अवाए, ४.धारणा'।
-नंदी.सु.५३ ११. उग्गहादीण लक्खणाणि
अत्थाणं उग्गहणं तु उग्गह, तह वियालणं ईहै। ववसायं तु अवायं, धरणं पुण धारणं बिंति ॥
-नंदी सु.६७ १. उग्गह परूवणंप. से किं तं उग्गहे? उ. उग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा
१. अत्थोग्गहे य, २. वंजणोग्गहे यरे । प. से किं तं वंजणोग्गहे? उ. वंजणोग्गहे चउबिहे पण्णत्ते,तं जहा
१. सोइंदियवंजणोग्गहे, २. घाणेदियवंजणोग्गहे, ३. जिमिंदियवंजणोग्गहे, ४. फासेंदियवंजणोग्गहे।
सेत्तं वंजणोग्गहे। प. से किं तं अत्थोग्गहे? उ. अत्थोग्गहे छव्विहे पण्णत्ते,तं जहा
१. सोइंदियअत्थोग्गहे, २. चक्विंदियअत्थोग्गहे, ३. घाणिंदियअत्थोग्गहे, ४. जिब्भिंदियअत्थोग्गहे, ४. फासिंदियअत्थोग्गहे, ६. णोइंदियअत्थोग्गहे३ | तस्स णं इमे एगट्ठिया णाणाघोसा णाणावंजणा पंच णामधेया भवंति,तं जहा१. ओगिण्हणया, २. उवधारणया, ३. सवणता,
४. अवलंबणता, ५. मेहा। से तं उग्गहे।
-नंदी.सु. ५४-५६
११. अवग्रह आदि के लक्षण
अर्थों के सामान्य ज्ञान को अवग्रह,अर्थों के पर्यालोचन (विचारणा) को ईहा, अर्थों के निर्णयात्मक ज्ञान को अवाय और स्मृति में धारण करने को धारणा कहते हैं। १. अवग्रह का प्ररूपणप्र. अवग्रह कितने प्रकार का है? उ. अवग्रह दो प्रकार का कहा गया है, यथा
१. अर्थावग्रह, २. व्यंजनावग्रह। प्र. व्यंजनावग्रह कितने प्रकार का है? उ. व्यजंनावग्रह चार प्रकार का कहा गया है, यथा
१. श्रोत्रेन्द्रियव्यंजनावग्रह, २. घ्राणेन्द्रियव्यंजनावग्रह, ३. जिह्वेन्द्रियव्यंजनावग्रह, ४. स्पर्शेन्द्रियव्यंजनावग्रह।
यह व्यंजनावग्रह का वर्णन हुवा। प्र. अर्थावग्रह कितने प्रकार का है? . उ. अर्थावग्रह छह प्रकार का कहा गया है, यथा
१. श्रोत्रेन्द्रियअर्थावग्रह, २. चक्षुरिन्द्रियअर्थावग्रह, ३. घ्राणेन्द्रियअर्थावग्रह, ४. जिह्वेन्द्रियअर्थावग्रह, ५. स्पर्शेन्द्रियअर्थावग्रह, ६. नोइन्द्रियअर्थावग्रह। अर्थावग्रह के समानार्थक नानाघोष तथा नाना व्यंजन वाले पांच नाम इस प्रकार हैं, यथा१. अवग्रहणता, २. उपधारणता, ३. श्रवणता,
४. अवलम्बनता, ५. मेधा। यह अवग्रह का वर्णन हुआ।
१. उग्गह ईहाऽवाओ य, धारणा एव होति चत्तारि।
आभिणिबोहियनाणस्स भेयवत्थू समासेणं ।। २. राय.सु.२४१
-नंदी सु.६६
३. (क) पण्ण.प.१५, सु.१०१७-१०१९
(ख) सा.सम.६,सु.६ (ग) ठाणं.अ.६,सु.५२५ ।