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प.वं. १२ पुढविकाइयाणं भंते कइविहा पासणया पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! एगा सागारपासणया ।
प. पुढविक्काइयाणं भंते! सागारपासणया कट्विहा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! एगा सुयअण्णाणसागारपासणया पण्णत्ता । दं. १३-१६. एवं जाव वणप्फइकाइयाणं ।
प. पं. १७. बेइंदियाणं भंते! कदविहा पासणया पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! एगा सागारपासणया पण्णत्ता ।
प. बेइंदियाणं भंते! सागारपासणया कइविहा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. सुयणाणसागारपासणया य
२. सुयअण्णाणसागारपासणया य। दं. १८. एवं इंदियाण वि
प. दं. १९. चउरिंदियाणं भंते ! कइविहा पासणया पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. सागारपासणया य, २. अणागारपासणया य। सागारपासणया जहा बेइंदियाणं ।
प. चउरिंदियाणं भंते ! अणागारपासणया कइविहा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! एगा चक्खुदंसणअणागारपासणया पण्णत्ता । दं. २०. पंचेदिय-तिरिक्खजोगिया जहा रइया ।
दं. २१. मणूसाणं जहा जीवाणं ।
वं. २२-२४ सेसा जहा
रडया जाय वैमाणिया ।
- पण्ण. प. ३०, सु. १९४०-१९५३
४. जीव- चउवीसदंडएसु सागाराणागारपस्सी परूवणं
प. जीवाणं भते कि सागारपस्सी, अणागारपस्सी ?
उ. गोयमा ! जीवा सागारपस्सी वि अणागारपस्सी वि।
प से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चइ
"जीवा सागारपस्सी वि, अणागारपस्सी वि ?"
उ. गोयमा ! जे णं जीवा सुयणाणी, ओहिणाणी, मणपज्जववाणी, केवलणाणी, सुयअण्णाणी, विभंगणाणी,
द्रव्यानुयोग - (१)
प्र. दं. १२. भन्ते ! पृथ्वीकायिकों की पश्यता कितने प्रकार की कही गई है?
उ.
प्र.
गौतम ! एक साकारपश्यता कही गई है।
भंते! पृथ्वीकायिकों की साकार पश्यता कितने प्रकार की कही गई है ?
उ. गौतम ! एकमात्र श्रुत अज्ञान साकारपश्यता कही गई है।
दं. १३-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों पर्यन्त की पश्यता जाननी चाहिए।
प्र. दं. १७. भन्ते ! द्वीन्द्रियों की पश्यता कितने प्रकार की कही गई है ?
उ.
प्र.
गौतम ! एकमात्र साकारपश्यता कही गई है।
भन्ते ! द्वीन्द्रियों की साकारपश्यता कितने प्रकार की कही गई है?
उ. गौतम ! दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. श्रुतज्ञानसाकारपश्यता,
२. श्रुतअज्ञानसाकारपश्यता ।
दं. १८. इसी प्रकार त्रीन्द्रिय जीवों की भी पश्यता कहनी चाहिए।
प्र. दं. १९. भन्ते ! चतुरिन्द्रियों की पश्यता कितने प्रकार की कही गई है?
उ. गौतम ! दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. साकारपश्यता, २ अनाकारपश्यता ।
इनकी साकारपश्यता द्वीन्द्रियों की साकारपश्यता के समान जाननी चाहिए।
प्र. भन्ते ! चतुरिन्द्रियों की अनाकार पश्यता कितने प्रकार की कही गई है?
उ. गौतम ! एकमात्र चक्षुदर्शनअनाकारपश्यता कही गई है। दं. २०. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की पश्यता नैरयिकों के जैसी है।
दं. २१. मनुष्यों की पश्यता समुच्चय जीवों के समान है। दं. २२-२४ शेष-नैरयिकों के समान वैमानिकों पर्यन्त पश्यता जाननी चाहिए।
४. जीव- चौबीसदंडकों में साकार -अनाकार पश्यता वालों का
प्ररूपण
प्र. भन्ते ! जीव साकारपश्यता वाले हैं या अनाकारपश्यता वाले हैं?
उ. गौतम ! जीव साकारपश्यता वाले भी हैं और अनाकारपश्यता वाले भी हैं।
प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि - "जीव साकारपश्यता वाले भी हैं और अनाकारपश्यता वाले भी हैं ?"
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उ. गौतम ! जो जीव श्रुतज्ञानी अवधिज्ञानी, मनः पर्यवज्ञानी, केवलज्ञानी, श्रुतअज्ञानी और विभंगज्ञानी हैं,