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________________ ५७४ प.वं. १२ पुढविकाइयाणं भंते कइविहा पासणया पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! एगा सागारपासणया । प. पुढविक्काइयाणं भंते! सागारपासणया कट्विहा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! एगा सुयअण्णाणसागारपासणया पण्णत्ता । दं. १३-१६. एवं जाव वणप्फइकाइयाणं । प. पं. १७. बेइंदियाणं भंते! कदविहा पासणया पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! एगा सागारपासणया पण्णत्ता । प. बेइंदियाणं भंते! सागारपासणया कइविहा पण्णत्ता ? उ. गोयमा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. सुयणाणसागारपासणया य २. सुयअण्णाणसागारपासणया य। दं. १८. एवं इंदियाण वि प. दं. १९. चउरिंदियाणं भंते ! कइविहा पासणया पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. सागारपासणया य, २. अणागारपासणया य। सागारपासणया जहा बेइंदियाणं । प. चउरिंदियाणं भंते ! अणागारपासणया कइविहा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! एगा चक्खुदंसणअणागारपासणया पण्णत्ता । दं. २०. पंचेदिय-तिरिक्खजोगिया जहा रइया । दं. २१. मणूसाणं जहा जीवाणं । वं. २२-२४ सेसा जहा रडया जाय वैमाणिया । - पण्ण. प. ३०, सु. १९४०-१९५३ ४. जीव- चउवीसदंडएसु सागाराणागारपस्सी परूवणं प. जीवाणं भते कि सागारपस्सी, अणागारपस्सी ? उ. गोयमा ! जीवा सागारपस्सी वि अणागारपस्सी वि। प से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चइ "जीवा सागारपस्सी वि, अणागारपस्सी वि ?" उ. गोयमा ! जे णं जीवा सुयणाणी, ओहिणाणी, मणपज्जववाणी, केवलणाणी, सुयअण्णाणी, विभंगणाणी, द्रव्यानुयोग - (१) प्र. दं. १२. भन्ते ! पृथ्वीकायिकों की पश्यता कितने प्रकार की कही गई है? उ. प्र. गौतम ! एक साकारपश्यता कही गई है। भंते! पृथ्वीकायिकों की साकार पश्यता कितने प्रकार की कही गई है ? उ. गौतम ! एकमात्र श्रुत अज्ञान साकारपश्यता कही गई है। दं. १३-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों पर्यन्त की पश्यता जाननी चाहिए। प्र. दं. १७. भन्ते ! द्वीन्द्रियों की पश्यता कितने प्रकार की कही गई है ? उ. प्र. गौतम ! एकमात्र साकारपश्यता कही गई है। भन्ते ! द्वीन्द्रियों की साकारपश्यता कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! दो प्रकार की कही गई है, यथा १. श्रुतज्ञानसाकारपश्यता, २. श्रुतअज्ञानसाकारपश्यता । दं. १८. इसी प्रकार त्रीन्द्रिय जीवों की भी पश्यता कहनी चाहिए। प्र. दं. १९. भन्ते ! चतुरिन्द्रियों की पश्यता कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! दो प्रकार की कही गई है, यथा १. साकारपश्यता, २ अनाकारपश्यता । इनकी साकारपश्यता द्वीन्द्रियों की साकारपश्यता के समान जाननी चाहिए। प्र. भन्ते ! चतुरिन्द्रियों की अनाकार पश्यता कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! एकमात्र चक्षुदर्शनअनाकारपश्यता कही गई है। दं. २०. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की पश्यता नैरयिकों के जैसी है। दं. २१. मनुष्यों की पश्यता समुच्चय जीवों के समान है। दं. २२-२४ शेष-नैरयिकों के समान वैमानिकों पर्यन्त पश्यता जाननी चाहिए। ४. जीव- चौबीसदंडकों में साकार -अनाकार पश्यता वालों का प्ररूपण प्र. भन्ते ! जीव साकारपश्यता वाले हैं या अनाकारपश्यता वाले हैं? उ. गौतम ! जीव साकारपश्यता वाले भी हैं और अनाकारपश्यता वाले भी हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि - "जीव साकारपश्यता वाले भी हैं और अनाकारपश्यता वाले भी हैं ?" - , उ. गौतम ! जो जीव श्रुतज्ञानी अवधिज्ञानी, मनः पर्यवज्ञानी, केवलज्ञानी, श्रुतअज्ञानी और विभंगज्ञानी हैं,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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