SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 682
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पश्यता अध्ययन ५७५ तेणं जीवा सागारपस्सी, जेणं जीवा चक्खुदंसणी,ओहिदसणी, केवलदसणी, तेणं जीवा अणागारपस्सी, से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जीवा सागारपस्सी वि,अणागारपस्सी वि।" प. दं. १. णेरइया णं भंते ! किं सागारपस्सी, अणागारपस्सी? उ. गोयमा ! एवं चेव। णवर-सागारपासणयाए मणपज्जवणाणी केवलणाणीय बुच्चंति, अणागार-पासणयाए केवलदसणं णत्थि। दं.२-११.एवं जाव थणियकुमारा। प. दं. १२. पुढविक्काइयाणं भंते ! किं सागारपस्सी, अणागारपस्सी? उ. गोयमा ! पुढविक्काइया सागारपस्सी,णो अणागारपस्सी। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "पुढविक्काइया सागारपस्सी, णो अणागारपस्सी ?" उ. गोयमा ! पुढविक्काइयाणं एगा सुयअण्णाणसागार पासणया पण्णत्ता। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"पुढविक्काइया सागारपस्सी, णो अणागारपस्सी।" वे जीव साकारपश्यता वाले हैं। जो जीव चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी और केवलदर्शनी हैं, वे जीव अनाकारपश्यता वाले हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जीव साकारपश्यता वाले भी हैं और अनाकारपश्यता वाले भी हैं।" प्र. दं. १. भन्ते ! नैरयिक साकारपश्यता वाले हैं या अनाकारपश्यता वाले हैं ? उ. गौतम ! पूर्ववत् जानना चाहिए। विशेष-साकारपश्यता में मनःपर्यायज्ञानी और केवलज्ञानी तथा अनाकारपश्यता में केवलदर्शनी नहीं हैं ऐसा कहना चाहिए। दं. २-११. इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. दं. १२. भन्ते ! पृथ्वीकायिक साकारपश्यता वाले हैं या अनाकारपश्यता वाले हैं ? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक साकारपश्यता वाले हैं, अनाकारपश्यता वाले नहीं हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "पृथ्वीकायिक जीव साकारपश्यता वाले हैं किन्तु अनाकार पश्यता वाले नहीं हैं? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिकों में एकमात्र श्रुतअज्ञान साकारपश्यता कही गई है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"पृथ्वीकायिक साकारपश्यता वाले हैं अनाकारपश्यता वाले नहीं हैं।" दं. १३-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. दं. १७. भन्ते ! द्वीन्द्रिय साकारपश्यता वाले हैं या अनाकारपश्यता वाले हैं? उ. गौतम ! वे साकारपश्यता वाले हैं, अनाकारपश्यता वाले नहीं हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि "द्वीन्द्रिय साकारपश्यता वाले हैं अनाकारपश्यता वाले नहीं हैं?" उ. गौतम ! द्वीन्द्रिय दो प्रकार की साकारपश्यता वाले कहे गए हैं, यथा-१. श्रुतज्ञानसाकारपश्यता, २. श्रुतअज्ञानसाकारपश्यता। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"द्वीन्द्रिय साकारपश्यता वाले हैं, अनाकारपश्यता वाले नहीं हैं।" द. १८. इसी प्रकार त्रीन्द्रिय जीवों के विषय में समझना चाहिए। प्र. दं. १९. भन्ते ! चतुरिन्द्रिय साकारपश्यता वाले हैं या अनाकारपश्यता वाले हैं ? दं.१३-१६. एवं जाव वणस्सइकाइया। प. दं. १७. बेइंदियाणं भंते ! किं सागारपस्सी, अणागारपस्सी? उ. गोयमा ! सागारपस्सी,णो अणागारपस्सी। प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ "बेइंदिया सागारपस्सी, णो अणागारपस्सी?" उ. गोयमा ! बेइंदियाणं दुविहा सागारपासणया पण्णत्ता, तं जहा-१. सुयणाणसागारपासणया य, २. सुयअण्णाणसागारपासणया य। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"बेइंदिया सागारपस्सी,णो अणागारपस्सी।" दं.१८.एवं तेइंदियाण वि। प. दं. १९. चउरिंदियाणं भंते ! किं सागारपस्सी, अणागारपस्सी?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy