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________________ ५७६ उ. गोयमा ! चउरिंदिया सागारपस्सी वि, अणागारपस्सी वि।। प. से केणठेण भंते ! एवं वुच्चइ__ "चउरिंदिया सागारपस्सी वि, अणागारपस्सी वि?" - उ. गोयमा !जे णं चउरिंदियाणं सुयणाणी सुयअण्णाणी, ते णं चउरिंदिया सागारपस्सी, जेणं चउरिंदिया चक्खुदंसणी, तेणं चउरिंदिया अणागारपस्सी। से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"चउरिंदिया सागारपस्सी वि,अणागारपस्सी वि।" ( द्रव्यानुयोग-(१)) उ. गौतम ! चतुरिन्द्रिय साकारपश्यता वाले भी हैं और अनाकारपश्यता वाले भी हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण ऐसा कहा जाता है कि "चतुरिन्द्रिय साकारपश्यता वाले भी हैं और अनाकारपश्यता वाले भी हैं?" उ. गौतम ! जो चतुरिन्द्रिय श्रुतज्ञानी और श्रुतअज्ञानी हैं, वे चतुरिन्द्रिय साकारपश्यता वाले हैं। जो चतुरिन्द्रिय चक्षुदर्शनी हैं, वे चतुरिन्द्रिय अनाकारपश्यता वाले हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"चतुरिन्द्रिय साकारपश्यता वाले भी हैं और अनाकारपश्यता वाले भी हैं।" दं. २०. पंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिकों का कथन नैरयिकों के समान है। दं. २१. मनुष्यों का कथन समुच्चय जीवों के समान है। दं. २२-२४. अवशेष वैमानिकों पर्यन्त नैरयिकों के समान पश्यता वाले जानना चाहिए। दं.२०. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया जहा णेरइया। दं.२१. मणूसा जहा जीवा। दं.२२-२४.अवसेसा जहाणेरइया जाव वेमाणिया। -पण्ण. प.३०, सु. १९५४-१९६२ १. विया.स.१६,उ.७,सु.१
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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