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द्रव्यानुयोग-(१) प. सम्मुच्छिम मणुस्सा णं भंते ! कइ दिट्ठीओ पण्णत्ताओ? प्र. भंते ! सम्मूर्छिम मनुष्यों में कितनी दृष्टियाँ कही गई हैं ? उ. गोयमा !एगा दिट्ठी पण्णत्ता,तं जहा
उ. गौतम ! एक दृष्टि कही गई है, यथानो सम्मदिट्ठी ,मिच्छादिट्ठी,नो सम्मामिच्छादिट्ठी ।
वे सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं हैं एक मात्र
मिथ्यादृष्टि हैं। प. गब्भवक्कंतिय मणुस्सा णं भंते ! कइ दिट्ठीओ प्र. भंते ! गर्भज मनुष्यों में कितनी दृष्टियाँ कही गई हैं ? .
पण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! तओ दिट्ठीओ पण्णत्ताओ,तं जहा
उ. गौतम ! तीनों दृष्टियाँ कही गई हैं, यथा१. सम्मदिट्ठी वि,
१. सम्यग्दृष्टि, २. मिच्छादिट्ठी वि,
२. मिथ्यादृष्टि, ३. सम्मामिच्छादिट्ठी वि। -जीवा. पडि. १, सु.४१ ३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि। ७. वेमाणिय देवेसु दिट्ठी भेय परूवणं
७. वैमानिक देवों में दृष्टि भेदों का प्ररूपणप. सोहम्मीमाणदेवा णं भंते ! किं सम्मदिट्ठी , मिच्छादिट्ठी , . प्र. भंते ! क्या सौधर्म-ईशान कल्प के देव सम्यग्दृष्टि हैं, सम्मामिच्छादिट्ठी ?
मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं ? उ. गोयमा ! तिण्णि वि जाव अंतिम गेवेज्जादेवा सम्मदिट्ठी. उ. गौतम ! तीनों प्रकार के हैं। अन्तिम ग्रैवेयक पर्यन्त के देव वि, मिच्छादिट्ठी वि, सम्मामिच्छादिट्ठी वि।
सम्यग्दृष्टि भी, मिथ्यादृष्टि भी और सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी
होते हैं। अणुत्तरोववाइया सम्मदिट्ठी, नो मिच्छादिट्ठी, नो
अनुत्तर विमानों के देव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं, किन्तु सम्मामिच्छादिट्ठी। -जीवा. पडि.३, सु.२0१ (ई) ... मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते हैं। ८. सम्मद्दिट्ठीआई जीवाणं कायट्टिई परूवणं
८. सम्यग्दृष्टि आदि जीवों की कायस्थिति का प्ररूपणप. सम्मदिट्ठी णं भंते ! सम्मदिट्ठी त्ति कालओ केवचिरं प्र. भंते ! सम्यग्दृष्टि जीव सम्यग्दृष्टि के रूप में कितने काल तक होइ?
रहता है? उ. गोयमा ! सम्मदिट्ठी दुविहे पण्णत्ते, तं जहा
उ. गौतम ! सम्यग्दृष्टि जीव दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. साईए वा अपज्जवसिए,
१. सादि अपर्यवसित, २. साईए वा सपज्जवसिए।
२. सादि सपर्यवसित। तत्थं णं जे से साईए सपज्जवसिए से जहण्णेणं जो सादि सपर्यवसित सम्यग्दृष्टि है वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावठिं सागरोवमाई साइरेगाई।
उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम तक रहता है। प. मिच्छादिट्ठी णं भंते ! मिच्छादिट्ठी त्ति कालओ केवचिरं प्र. भंते ! मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यादृष्टि के रूप में कितने काल तक होइ?
रहता है? उ. गोयमा ! मिच्छादिट्ठी तिविहे पण्णत्ते,तं जहा
उ. गौतम ! मिथ्यादृष्टि तीन प्रकार का कहा गया है, यथा१. अणाईए वा अपज्जवसिए,
१. अनादि अपर्यवसित, २. अणाईए वा सपज्जवसिए,
२. अनादि सपर्यवसित, ३. साईए वा सपज्जवसिए।
३. सादि सपर्यवसित। तत्थं णं जे से साईए सपज्जवसिए से जहण्णेणं इनमें से जो सादि सपर्यवसित है, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त, अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव खेत्तओ अवड्ढे उत्कृष्ट अनन्तकाल अर्थात् क्षेत्र से देशोन पोग्गलपरियट देसूणं।
अपार्धपुद्गलपरावर्त काल पर्यन्त रहता है। प. सम्मामिच्छादिट्ठी णं भंते ! सम्मामिच्छादिट्ठी त्ति कालओ प्र. भंते ! सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव सम्यग्मिथ्यादृष्टि के रूप में केवचिरं होइ?
कितने काल तक रहता है? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
उ. गौतम ! सम्यमिथ्यादृष्टि जीव जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त
-जीवा. पडि.९, सु. २३७ तक रहता है। ९. सम्मदिट्ठीआई जीवाणं अंतरकाल परूवणं
९. सम्यग्दृष्टि आदि जीवों के अंतरकाल का प्ररूपणसम्मदिट्ठी स्स साईयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतर,
सादि अपर्यवसित सम्यग्दृष्टि का अंतर नहीं है,