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दृष्टि अध्ययन
उ. गोयमा ! तिविहा दिट्ठी निव्वत्ती पण्णत्ता, तं जहा१. सम्मदिट्ठी निव्वत्ती,
२. मिच्ादिट्टी निव्यती
३. सम्मामिच्छादिड्डी निव्वती।
दं. १-२४. एवं जाव वेमाणियाणं जस्स जइविहा दिट्ठी तस्स तइ भाणियव्वा । - विया. स. १९, उ. ८, सु. ३६-३७ ४. दिट्ठी करण भेया चउवीसदंडएसु य परूवणं
प. कइविहे णं भते दिडी करणे पण्णते ?
उ. गोयमा तिविहे दिड्डी करणे पण्णत्ते, तं जहा
१. सम्मदिट्ठी करणे,
२. मिच्छादिट्टी करणे
३. सम्मामिच्छादिट्ठी करणे
दं. १-२४. एवं जाव वेमाणियाणं ।
वरं जस्स जं अत्थि तस्स तं सव्वं भाणियव्वं ।
- विया. स. १९, उ. ९, सु. ८
५. दिट्ठी एहिं बंध पगारा चउवीसदंडएसु य परूवणंप सम्मदिगीएणं मिच्छादिडीएणं सम्मामिच्छादिट्टीएणं भते ! कइविहे बंधे पण्णते ?
उ. गोयमा ! तिविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा
१. जीवप्प ओग बंधे,
२. अनंतर बंधे,
३. परंपर बंधे।
एवं चउवीसं दंडगा भाणियव्वा ।
णवरं - जाणियव्वं जस्स जं अत्थि ।
- विया. स. २०, उ.७, सु. १८
६. सम्मुच्छिम गब्भवक्कंतिय पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु मणुस्सेसु यदिट्ठी परूवणं
प सम्मुच्छिम पंचेदिय तिरिव्वजोणिय जलयराणं भंते! कइ दिडी ओ पण्णत्ताओ ?
उ. गोयमा ! दो दिनी ओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१. सम्मदिनी वि
२. मिच्छादिट्ठी वि
नो सम्मामिच्छादिट्ठी ।
थलयरा खहयरा वि एवं चेव ।
प. गब्भवक्कंतिय पंचिंदिय तिरिक्खजोणिय जलयराणं भंते! कइ दिट्ठी ओ पण्णत्ताओ ?
उ. गोयमा ! तओ दिट्ठी ओ, पण्णत्ताओ, तं जहा
१. सम्मदिनी वि
२. मिच्छादिट्ठी वि ३. सम्मामिच्छादिट्ठी वि ।
थलयरा खहयरा वि एवं चेव ।
-जीवा. पडि. १, सु. ३५-४०
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उ. गौतम ! दृष्टि निर्वृत्ति तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. सम्यग्दृष्टि निर्वृत्ति,
२. मिथ्यादृष्टिर्निर्वृत्ति
३. सम्यग्मिथ्यादृष्टिनिर्वृत्ति ।
दं. १ २४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जिसकी जितनी दृष्टियाँ हों उतनी दृष्टि निर्वृत्ति कहनी चाहिए।
४. दृष्टि करण के भेद और चौबीसदंडकों में प्ररूपण
प्र. भंते! दृष्टिकरण कितने प्रकार का कहा गया है?
उ. गौतम ! दृष्टिकरण तीन प्रकार का कहा गया है, यथा१. सम्यन्दृष्टिकरण,
२. मिथ्यादृष्टिकरण,
३. सम्यग्मिथ्यादृष्टिकरण ।
दं. १-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष- जिसके जो दृष्टि हो वह सब कहना चाहिए।
५. दृष्टियों द्वारा बंध के प्रकार और चौवीस दंडकों में प्ररूपणप्र. भंते ! सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि के द्वारा बंध कितने प्रकार का कहा गया है ?
उ. गौतम ! बंध तीन प्रकार का कहा गया है, यथा
१. जीवप्रयोग बंध,
२. अनन्तर बंध,
३. परंपर बंध।
इसी प्रकार चौबीस दंडकों में कहना चाहिए। विशेष- जिसके जो हो वह जानना चाहिए।
६. सम्मूर्च्छिम गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों और मनुष्यों में दृष्टि भेदों का प्ररूपण
प्र. भंते सम्मूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचरों में कितनी दृष्टियाँ कही गई हैं ?
उ. गौतम ! दो दृष्टियाँ कही गई हैं, यथा
१. सम्यग्दृष्टि
२. मिथ्यादृष्टि
वे सम्यग्मिथ्यादृष्टि वाले नहीं होते हैं।
इसी प्रकार सम्मूर्च्छिम स्थलचरों, खेचरों में भी दो दृष्टियों जाननी चाहिए।
प्र. भंते! गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचरों के कितनी दृष्टियाँ कही गई है?
उ. गौतम तीन दृष्टियाँ कही गई है, यथा
१. सम्यग्दृष्टि,
२. मिध्यादृष्टि
',
३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि
इसी प्रकार गर्भज स्थलचरों खेचरों में भी तीनों दृष्टियाँ जाननी चाहिए।