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भाषा अध्ययन
पं. १५. जाई भंते! एगगुणलुक्खाइं जाव अनंतगुणलुक्खाई गेहइ,
ताई किं पुट्ठाई गेण्डइ अपुट्ठाई गेण्हइ ?
उ. गोयमा ! पुट्ठाई गेहइ, णो अपुट्ठाई गेण्हइ ।
प. १६. जाई भंते! पुट्ठाई गेण्डद्द,
ताई किं ओगाढाई गेहइ, अणोगाढाई गेण्ड ?
उ. गोयमा ! ओगाढाई गेण्हइ,
अगाढाई गेहइ ।
प. १७. जाई भंते! ओगाढाई गेण्डर,
ताइं किं अनंतरोगाढाई गेण्हइ, परंपरोगादाडं गेण्डड ?
उ. गोयमा ! अणंतरोगाढाई गेण्हड
णो परंपरोगादा गेहड
प. १८. जाई भते ! अणंतरोगाढाई गेण्ड ताई कि अणूई गेण्ड,
बायराई गेहइ ?
उ. गोयमा ! अणूइ पि गेण्ड,
बायराई पिण्ड |
प. १९. जाई भंते! अणूई पि गेण्ड, बायराई पि गेण्ड,
ताई कि उड़ गेण्ड अहे गेण्ड, तिरियं गेण्ड ?
उ. गोयमा ! उहढं पि गेण्डद, अहे वि गेण्ड, तिरियं पि गण्ड
प. २०. जाई भते । उड़ढं पि गेण्ड अहे पि गेण्ड तिरियं पि गेहइ,
ताई कि आई गेण्ड मझे गेण्ड, पज्जवसाणे गेण्ड ?
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उ. गोयमा आई पि गेण्ड, मज्झे वि गेण्ड, पज्जवसाणे वि गेह
प. २१. जाई भंते ! आई वि गेण्हइ, मज्झे वि गेण्हइ, पज्जवसाणे वि गेण्हइ ?
ताई किं सविसए गेहइ, अविसए गेहइ ?
उ. गोयमा सविसए गेण्डड, जो अविसए गेण्डई।
प. २२. जाई भंते! सविसए गेण्हइ,
ताई किं आणुपुव्विं गेहइ, अणाणुपुव्विं गण्हइ ?
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प्र. १५. भन्ते ! यदि एक गुण रूक्षस्पर्श से अनन्तगुण रूक्षस्पर्श पर्यंत को ग्रहण करता है तो
क्या स्पृष्टों को ग्रहण करता है या अस्पृष्टों को ग्रहण करता है?
उ. गौतम! वह स्पृष्टों को ग्रहण करता है, अस्पृष्टों को ग्रहण नहीं करता है।
प्र. १६. भन्ते ! स्पृष्टों को ग्रहण करता है तो
क्या अवगाढों को ग्रहण करता हैं,
या अनवगाढों को ग्रहण करता है ?
उ. गौतम ! अवगाढों को ग्रहण करता है, अनवगाढों को ग्रहण नहीं करता है।
प्र. १७. भन्ते! अवगाढों को ग्रहण करता है तो
क्या अनन्तरावगाढों को ग्रहण करता है,
या परम्परावगाढों को ग्रहण करता है ?
उ. गौतम ! अनन्तरावगाढों को ग्रहण करता है, परम्परावगाढों को ग्रहण नहीं करता है।
प्र. १८. भन्ते ! वह अनन्तरावगाढों को ग्रहण करता है तो
क्या अणु (सूक्ष्म) द्रव्यों को ग्रहण करता है, या स्थूल (बादर) द्रव्यों को ग्रहण करता है ?
उ. गौतम ! अणु द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, स्थूल द्रव्यों को भी ग्रहण करता है।
प्र. १९. भन्ते ! अणु को भी ग्रहण करता है और स्थूल को भी ग्रहण करता है तो
क्या ऊर्ध्व दिशा में ग्रहण करता है, अधो दिशा में ग्रहण करता हैया तिर्यक् दिशा में ग्रहण करता है ?
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उ. गौतम । ऊर्ध्वदिशा में अधोदिशा में और तिरछी दिशा में ग्रहण करता है।
प्र. २० भन्ते ! अणु को ऊर्ध्व दिशा में, अधो दिशा में और तिर्यक दिशा में ग्रहण करता है तो
क्या उन्हें प्रारम्भ में ग्रहण करता है, मध्यम में ग्रहण करता है या अन्त में ग्रहण करता है ?
उ. गौतम ! आदि में भी ग्रहण करता है, मध्य में भी ग्रहण करता है और अन्त में भी ग्रहण करता है।
प्र. २१. भन्ते ! आदि, मध्य और अन्त में ग्रहण करता है तो
क्या स्वविषयक को ग्रहण करता है या अविषयक को ग्रहण करता है ?
उ. गौतम ! स्वविषयक को ग्रहण करता है, अविषयक को ग्रहण नहीं करता है।
प्र. २२. भन्ते ! स्वविषयक को ग्रहण करता है तो
क्या आनुपूर्वी से ग्रहण करता है या अनानुपूर्वी से ग्रहण करता है ?