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प्रयोग अध्ययन
उ. छायागई जण्णं हयच्छायं वा, गयच्छायं वा, नरच्छायं वा,
किन्नरच्छायं वा, महोरगच्छायं वा, गंधव्वच्छायं वा, उसहच्छायं वा, रहच्छायं वा, छत्तच्छायं वा, उवसंपज्जित्ताणं गच्छइ।
सेतं छायागई। प. १०.से किं तं छायाणुवायगई? उ. छायाणुवायगई जण्णं पुरिसं छाया अणुगच्छइ, णो पुरिसे
छायं अणुगच्छइ।
से तं छायाणुवायगई। प. ११.से किं तं लेस्सागई? उ. लेस्सागई जण्णं कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए
तावणत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमइ, एवं णीललेस्सा काउलेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव ताफासत्ताए परिणमइ, एवं काउलेस्सा वि तेउलेस्सं, तेउलेस्सा वि पम्हलेस्सं, पम्हलेस्सा वि सुक्कलेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव परिणमइ।
उ. अश्व की छाया, हाथी की छाया, मनुष्य की छाया, किन्नर की
छाया, महोरग की छाया, गन्धर्व की छाया, वृषभ की छाया, रथ की छाया, छत्र की छाया का आश्रय करके जो गमन होता है वह छायागति है।
यह छायागति का स्वरूप है। प्र. १०. छायानुपातगति किसे कहते हैं ? उ. छाया पुरुष आदि अपने निमित्त का अनुगमन करती है, किन्तु
पुरुष छाया का अनुगमन नहीं करता वह छायानुपातगति हैं।
यह छायानुपातगति का स्वरूप है। प्र. ११. लेश्यागति किसे कहते हैं ? उ. कृष्णलेश्या के द्रव्य नीललेश्या के द्रव्य को प्राप्त होकर उसी
के वर्णरूप में, उसी के गन्धरूप में उसी के रसरूप में तथा उसी के स्पर्शरूप में बार-बार जो परिणत होती है। इसी प्रकार नीललेश्या भी कापोतलेश्या को प्राप्त होकर उसी के वर्णरूप में यावत् उसी के स्पर्शरूप में जो परिणत होती है। इसी प्रकार कापोतलेश्या भी तेजोलेश्या को, तेजोलेश्या पद्मलेश्या को तथा पद्मलेश्या शुक्ललेश्या को प्राप्त होकर जो उसी के वर्णरूप में यावत् उसी के स्पर्शरूप में परिणत होती है वह लेश्यागति है।
यह लेश्यागति का स्वरूप है। प्र. १२. लेश्यानुपातगति किसे कहते हैं? उ. जो जिस लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण करके (जीव) काल करता
है (मरता है) उसी लेश्या वाले (जीवों) में वह उत्पन्न होता है, यथाकृष्णलेश्या वाले द्रव्यों में यावत् शुक्ललेश्या वाले द्रव्यों में (इस प्रकार की गति) लेश्यानुपातगति है।
यह लेश्यानुपातगति का स्वरूप है। प्र. १३. उद्दिश्यप्रविभक्तगति किसे कहते हैं ? उ. आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्तक, गणि, गणधर या
गणावच्छेदक को लक्ष्य (उद्देश्य) करके जो गमन किया जाता है वह उद्दिश्यप्रविभक्तगति है।
यह उद्दिश्यप्रविभक्तगति का स्वरूप है। प्र. १४. चतुः पुरुषप्रविभक्तगति किसे कहते हैं? उ. चतुःपुरुषप्रविभक्तगति चार प्रकार की है, यथा
सेतं लेस्सागई। प. १२.से किं तं लेस्साणुवायगई? उ. लेस्साणुवायगई जल्लेस्साई दव्वाई परियाइत्ता कालं करेइ
तल्लेस्सेसु उववज्जइ, तं जहा
कण्हलेस्सेसु वा जाव सुक्कलेस्सेसु वा।
से तं लेस्साणुवायगई। प. १३.से किं तं उद्दिस्सपविभत्तगई? उ. उद्दिस्सपविभत्तगई जेणं आयरियं वा, उवज्झायं वा, थेर
वा, पवत्तं वा, गणिं वा, गणहरं वा, गणावच्छेइयं वा उद्दिसिय-उद्दिसिय गच्छइ।
से तं उद्दिस्सपविभत्तगई। प. १४.से किं तं चउपुरिसपविभत्तगई? उ. चउपुरिसपविभत्तगई से जहाणामए चत्तारि पुरिसा,
तं जहा१. समगं पट्ठिता समगं पज्जवट्ठिया,
२. समगं पट्ठिया विसमं पज्जवट्ठिया,
३. विसमं पट्ठिया समगं पज्जवट्ठिया,
१. जैसे चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान और वारों का एक
साथ पहुँचना, २. चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान, किन्तु अलग-अलग
पहुँचना, ३. चार पुरुषों का अलग-अलग प्रस्थान, किन्तु एक साथ
पहुँचना, ४. चार पुरुषों का अलग-अलग प्रस्थान, अलग-अलग
पहुँचना। यह चतुःपुरुषप्रविभक्तगति का स्वरूप है।
४. विसमं पट्ठिया विसमं पज्जवट्ठिया।
से तं चउपुरिसपविभत्तगई।