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प. १५.से किंतं वंकगई? उ. वंकगई चउव्विहा पण्णत्ता,तं जहा
१. घट्टणया, २. थंभणया, ३. लेसणया, ४. पवडणया,
से तं वंकगई। प. १६.से किं तं पंकगई? उ. पंकगई से जहाणामए केइ पुरिसे सेयंसि वा, पंकसि वा,
उदयसि वा कायं उब्बहिया गच्छइ।
द्रव्यानुयोग-(१) प्र. १५. वक्रगति कितने प्रकार की हैं? उ. वक्रगति चार प्रकार की कही गई है, यथा
१. घट्टन से, २. स्तम्भन से, ३. श्लेषण से, ४. प्रपतन से। .
यह वक्रगति का स्वरूप है। प्र. १६. पंकगति किसे कहते हैं ? उ. जैसे कोई पुरुष पंक में कीचड़ में अथवा जल में अपने शरीर
के फिसलने या बहने से गमन करता है। उसकी यह पंकगति
से तं पंकगई। प. १७.से किं तं बंधणविमोयणगई ?
बंधणविमोयणगई जण्णं अंबाण वा, अंबाडगाण वा माउलुंगाण वा, बिल्लाण वा, कविट्ठाण वा, भल्लाणं वा, फणसाण वा, दाडिमाण वा, पारेवाण वा, अक्खोडाण वा, चोराण वा, बोराण वा, तिंदुयाण वा, पक्काणं परियागयाणं बंधणाओ विप्पमुक्काणं णिव्वाघाएणं अहे वीससाए गई पवत्तइ। से तं बंधणविमोयणगई। से तं विहायगई। से तंगइप्पवाए। -पण्ण.प.१६,सु.११०५-११२२
यह पंकगति का स्वरूप है। प्र. १७. बन्धनविमोचनगति किसे कहते हैं ? उ. अत्यन्त पक कर तैयार हुए अतएव बंधन से विमुक्त (छूटे हुए)
आम्रों, आम्रातकों, विजौरों, बिल्वफलों, कवीत्थ फलों, भद्र नामक फलों, कटहलों (पनसों), दाडिमों, पारेवत नामक फल विशेषों, अखरोटों, चोर फलों, बोरों अथवा तिन्दुकफलों की रुकावट (व्याघात) न हो तो स्वभाव से ही जो अधोगति होती है वह बन्धन विमोचनगति है। यह बन्धनविमोचनगति का स्वरूप है। यह विहायोगति की प्ररूपणा पूर्ण हुई। यह गतिप्रपात का वर्णन पूर्ण हुआ।
१. विया.स.८,उ.७.सु.२५