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उपयोग अध्ययन
५६९ से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"केवली णं इम रयणप्पभं पुढविं अणागारेहिं जाव "केवली इस रत्नप्रभापृथ्वी को अनाकारों से यावत् अप्रत्यावतारों अपडोयारेहिं पासइण जाणइ।
से जिस समय देखते हैं उस समय जानते नहीं हैं।" एवं जाव ईसीपब्भारं पुढविं परमाणुपोग्गलं, इसी प्रकार ईषत्याग्भारापृथ्वी पर्यन्त परमाणुपुद्गल तथा अणंतपदेसियं खंधं पासइ, ण जाणइ।
अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक केवली जिस समय देखते हैं उस -पण्ण.प.३० सु. १९६३-१९६४
समय जानते नहीं है। - ९. उवओगोत्ताणं कायट्ठिई परूवणं
९. उपयोगयुक्तों की काय-स्थिति का प्ररूपणप. सागारोवउत्ते णं भंते ! सागारोवउत्ते त्ति कालओ केवचिरं प्र. भन्ते ! साकारोपयोगयुक्त जीव साकारोपयोगयुक्त रूप में होइ?
कितने काल तक रहता है? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
उ. गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहता है। अणागारोवउत्ते वि एवं चेव।
_अनाकारोपयोगयुक्त जीव भी इसी प्रकार है। -पण्ण.प. १८, सु.१३६२-६३ १०. उवओगोत्ताणं अंतरकाल परूवणं
१०. उपयोगयुक्तों के अंतरकाल का प्ररूपणसागारोवउत्ता य अणागारोवउत्ता य अंतरं जहण्णेण साकारोपयोगयुक्तों और अनाकारोपयोगयुक्तों का जघन्य और
उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। -जीवा. पडि. ९, सु. २३३. उत्कृष्ट अंतरकाल अंतर्मुहूर्त का है। ११. उवओगोत्ताणं अप्पबहुत्तं
११. उपयोगयुक्तों का अल्पबहुत्वप. एएसि णं भंते ! जीवाणं सागारोवउत्ताणं प्र. भन्ते ! इन साकारोपयोगयुक्त और अनाकारोपयोगयुक्त जीवों
अणागारोवउत्ताण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव ___में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १. सव्वत्थोवा जीवा अणागारोवउता,
उ. गौतम ! १. सबसे अल्प अनाकारोपयोग युक्त जीव हैं, २.सागारोवउत्ता संखेज्जगुणा२। -पण्ण. प. ३, सु. २६२ २.(उनसे) साकारोपयोगयुक्त जीव संख्यातगुणे हैं। १२. चउगईसुदंसणोवओग परूवणं३
१२. चार गतियों में दर्शनोपयोग का प्ररूपणप. णेरइयाणं भंते ! जीवा किं चक्खुदसणी अचक्खुदंसणी प्र. भन्ते ! नैरयिक जीव क्या चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, ओहिदंसणी, केवलदंसणी?
अवधिदर्शनी या केवलदर्शनी है? उ. गोयमा ! चक्खुदसणी वि, अचक्खुदंसणी वि, उ. गौतम ! चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी है किन्तु
ओहिदसणी वि, णो केवलदंसणी। -जीवा. पडि. १, सु. ३२ केवलदर्शनी नहीं है। प. सुहमपुढविकाइयाणं भंते ! जीवा किं चक्खुदंसणी जाव प्र. भन्ते ! सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव क्या चक्षुदर्शनी यावत् केवलदंसणी?
केवलदर्शनी है? उ. गोयमा ! णो चक्खुदंसणी, अचक्खुदंसणी, णो उ. गौतम ! चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी और केवलदर्शनी नहीं है ओहिदंसणी, णो केवलदसणी।
किन्तु अचक्षुदर्शनी है। -जीवा. पडि.१, सु.१३(१४) एवं जाव सुहुम बायर वणप्फइकाइयाण वि।
इसी प्रकार सूक्ष्म बादर वनस्पतिकायिकों पर्यन्त जानना -जीवा. पडि.१,सु.१४-२६
चाहिए। बेइंदिया तेइंदिया जहेव सुहमपुढविकाइया।
बेइन्द्रिय तेइन्द्रिय जीवों का कथन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के -जीवा. पडि.१, सु. २८-२९
समान जानना चाहिए। प. चउरिंदिया णं भंते ! जीवा किं चक्खुदंसणी जाव प्र. भन्ते ! चतुरिन्द्रिय जीव क्या चक्षुदर्शनी यावत् केवलकेवलदसणी?
दर्शनी है? उ. गोयमा ! चक्खुदंसणी वि, अचक्खुदंसणी वि, णो उ. गौतम ! चक्षुदर्शनी भी है और अचक्षुदर्शनी भी है किन्तु
ओहिदंसणी, णो केवलदंसणी। -जीवा. पडि. १, सु.३० अवधिदर्शनी और केवलदर्शनी नहीं है। प. सम्मुच्छिम पंचेंदिय तिरिक्खजोणिय जलयराणं भंते ! किं प्र. भन्ते ! सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचर क्या चक्खुदसंणी जाव केवलदसणी?
चक्षुदर्शनी यावत् केवलदर्शनी है? उ. गोयमा ! चक्खुदंसणी वि, अचक्खुदंसणी वि, णो उ. गौतम ! चक्षुदर्शनी भी है और अचक्षुदर्शनी भी है किन्तु - ओहिदसणी, णो केवलदसणी!
अवधिदर्शनी और केवलदर्शनी नहीं है। १. जीवा. पडि.९, सु. २३३ २. जीवा. पडि.९, सु. २३३ ३. दर्शन यह उपयोग का ही भेद है इसलिए यहां यह प्रकरण लिया जा रहा है।