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योग अध्ययन
उ. गोयमा ! एवं चेव ।
- विया. स. १८ उ. ७, सु. २०-२२
३२. पंचेंदियजीवेसु चउव्विह पणिहाणाणं परूवणंचउखि पणिहाणे पणते, तं जहा१. मणपणिहाणे, २. वइपणिहाणे,
३. कायपणिहाणे ४. उबगरणपणिहाणे ।
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एवं रइयाणं पंचेंदियाणं जाव वेमाणियाणं ।
उव्व सुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा
१. मण सुप्पणिहाणे जाव ४. उवगरण सुप्पणिहाणे । एवं संजयमणुस्साण वि ।
चउव्धिहे दुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा
१. मणदुप्पणिहाणे जाव २. उवगरणदुप्पणिहाणे । एवं रइयाणं पंचेंदियाणं जाव वेमाणियाणं ।
- ठाणं. अ. ४. उ. १, सु. २५५
३३. चउवीसदंडएसु गुत्ती-अगुत्तीभेयाणं परूवणंतओ गुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा१. मणगुत्ती २. वइगुत्ती ३. कायगुत्ती, संजयमणुस्साणं तओ गुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा१. मणगुत्ती २. वइगुत्ती ३. कायगुत्ती, तओ अगुत्तीओ पण्णत्ताओं, तं जहामणअगुती, २. वह अगुती, ३. काय अगुती । एवं णेरइयाणं जाव थणियकुमाराणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं असंजयमणुस्साणं वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं ।
- ठाणं अ. ३, उ. १, सु. १३४ (३)
३४. चउवीसदंडएसु दंडाणं परूवणंतओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा१. मणडे २, ३. कायदंडे । रयाणं तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा१. मगदंडे, २. दंडे, ३. कायदंडे, एवं विगलिंदियवज्जाणं जाव वेमाणियाणं ।
-ठाणं. अ. ३, उ. १ सु. १३४/४-५
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उ. गौतम ! पूर्ववत् (तीनों प्रकार का सुप्रणिधान) होता है।
३२. पंचेंद्रिय जीवों में चतुर्विध प्रणिधानों का प्ररूपणप्रणिधान चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. मनप्रणिधान, २. वचनप्रणिधान,
३. कायप्रणिधान, ४. उपकरणप्रणिधान,
इसी प्रकार नारकों आदि से वैमानिक पर्यन्त सभी पंचेंद्रियों में चारों ही प्रणिधान होते हैं।
सुप्रणिधान चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. मनः सुप्रणिधान यावत् २. उपकरणसुप्रणिधान । इसी प्रकार संयत मनुष्यों के चारों सुप्रणिधान होते हैं। दुष्प्रणिधान चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. मनदुष्प्रणिधान यावत् २. उपकरणदुष्प्रणिधान । इसी प्रकार नारको आदि से वैमानिकों पर्यन्त सभी पंचेन्द्रियों में चारों ही दुष्प्रणिधान होते हैं।
३३. चौबीस दण्डकों में गुप्ति-अगुप्ति के भेदों का प्ररूपणगुप्ति तीन प्रकार की कही गई है, यथा
१. मन गुप्ति, २ . वचन गुप्ति, ३. काय गुप्ति, संयत मनुष्यों के तीन गुप्तियाँ कही गई हैं, यथा१. मन गुप्ति २. वचन गुप्ति, ३. काय गुप्ति, अगुप्ति तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. मन अगुप्ति, २ वचनअनुप्ति, ३. काय अगुप्ति। इसी प्रकार नैरयिकों से स्तनितकुमारों पर्यन्त तथा पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों, असंयत मनुष्यों, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी तथा वैमानिक देयों में तीनों ही अगुप्तियाँ पाई जाती है।
३४. चौबीस दण्डकों में दंडों की प्ररूपणादण्ड तीन प्रकार के गए हैं, यथा१. मनोदंड, २. वचनदंड, ३ . कायदंड । नैरयिकों में तीन दण्ड कहे गए हैं, यथा१. मनोदण्ड, २ . वचनदण्ड ३. कायदण्ड ।
इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़करं वैमानिकों पर्यन्त तीनों ही दण्ड होते हैं।