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द्रव्यानुयोग-(१) प्र. भंते ! सूक्ष्म पृथ्विकायिक जीव क्या मनोयोगी हैं, वचनयोगी
हैं या काययोगी हैं? उ. मनोयोगी और वचनयोगी नहीं हैं किन्तु काययोगी हैं।
प. सुहुम पुढविकाइयाणं भंते ! जीवा किं मणजोगी.
वयजोगी, कायजोगी? उ. गोयमा ! नो मणजोगी, नो वयजोगी, कायजोगी।
-जीवा. पडि. १, सु. १३ (१६) एवं जाव सुहुम-बायर वणप्फइकाइया वि।
-जीवा. पडि.१, सु. १४-२६ बेइंदिया-नो मणजोगी, वयजोगी, काय जोगी। .
-जीवा. पडि.१, सु.२८ एवं तेइंदिया चउरिदिया वि। -जीवा. पडि. १, सु. २९-३०
इसी प्रकार सूक्ष्म बादर वनस्पतिकायिक जीवों पर्यन्त के लिए जानना चाहिए। द्वीन्द्रिय-मनोयोगी नहीं हैं, वचनयोगी और काययोगी हैं। ।
प. सम्मुच्छिम पंचेंदिय तिरिक्खजोणिय जलयराणं भंते ! किं
मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी? उ. गोयमा ! नो मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी।
थलयराणं खहयराण वि एवं चेव।
प. गब्भवक्कंतिय पंचेंदिय तिरिक्खजोणिय जलयराणं भंते !
किं मणजोगी, वय जोगी, कायजोगी? उ. गोयमा ! तिन्नि वि। थलयराणं खहयराण' वि एवं चेव।
-जीवा. पडि. १, सु. ३५-४० प. सम्मुच्छिम मणुस्सा णं भंते ! किं मणजोगी, वयजोगी,
कायजोगी? उ. गोयमा ! नो मणजोगी, नो वय जोगी, कायजोगी, प. गब्भवक्कतिय मणुस्साणं भंते ! किं मणजोगी, वयजोगी,
कायजोगी? उ. गोयमा ! मणजोगी वि, वयजोगी वि, कायजोगी वि, अजोगी वि।
-जीवा. पडि.१, सु.४१ देवा-तिन्नि वि।
-जीवा. पडि.१, सु. ४२ १. जोगाणं भेया चउवीसदंडएसुयपरूवणं
तिविहे जोगे पण्णत्ते,तं जहा. १.मणजोगे,२.वइजोगे, ३. कायजोगेरे। एवं रईयाण३ विगलिंदियवज्जाणं जाव वेमाणियाणं।
-ठाणं अ.३, उ.१,सु.१३२ जोग णिव्वत्तिभेया चउवीसदंडएसुय पलवणंप. कइविहाणं भंते ! जोगनिव्वत्ती पण्णत्ता? उ. गोयमा ! तिविहा जोगनिव्वत्ती पण्णत्ता,तं जहा
१. मणजोगनिव्वत्ती, २. वइजोगनिव्वत्ती, ३. कायजोगनिव्वत्ती। एवं णेरईयाणं जाव वेमाणियाणं जस्स जइविधो जोगो। तस्स तइ जोग णिव्वत्ती भाणियव्वं
-विया स.१९,उ.८.सु.४२-४३
इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के लिए भी जानना
चाहिए। प्र. भंते ! सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचर क्या
मनोयोगी हैं, वचनयोगी हैं या काययोगी हैं ? उ. गौतम ! मनोयोगी नहीं हैं, वचनयोगी और काययोगी हैं।
सम्मूर्छिम स्थलचरों खेचरों के लिए भी इसी प्रकार जानना
चाहिए। प्र. भंते ! गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचर क्या मनोयोगी,
वचनयोगी या काययोगी हैं? उ. गौतम ! तीनों योग वाले हैं।
गर्भज स्थलचरों खेचरों के लिए भी इसी प्रकार जानना
चाहिए। प्र. भंते ! सम्मूर्छिम मनुष्य क्या मनोयोगी, वचनयोगी या
काययोगी हैं? उ. गौतम ! मनोयोगी और वचनयोगी नहीं हैं किन्तु काययोगी हैं। प्र. भंते ! गर्भज मनुष्य क्या मनोयोगी, वचनयोगी या
काययोगी हैं? उ. गौतम ! मनोयोगी भी हैं, वचनयोगी भी हैं, काययोगी भी है
और अयोगी भी हैं।
देव-तीनों योग वाले हैं। ५. योगों के भेद और चौबीस दंडकों में प्ररूपण
योग तीन प्रकार का कहा गया है, यथा१. मनोयोग २. वचनयोग, ३. काययोग। इसी प्रकार (एकेन्द्रियों सहित) विकलेन्द्रियों को छोड़कर
नारकों से लेकर वैमानिकों पर्यन्त तीनों ही योग वाले होते हैं। ६. योग निर्वृत्ति के भेद और चौबीस दंडकों में प्ररूपण
प्र. भन्ते ! योग-निवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! योग-निवृत्ति तीन प्रकार का कही गई है, यथा
१. मनोयोग निर्वृत्ति, २. वचनयोग निर्वृत्ति, ३. काययोग-निवृत्ति। इसी प्रकार नारकों से वैमानिकों पर्यन्त जिसके जितने योग हों उतनी ही योग निवृत्ति कहनी चाहिए।
जीवा. पडि.३, सु. ९७
२. तिविहे जोगो -जीवा. पडि.१, सु.३२,३८
३. जीवा. पडि. ३.सु.८८(२)