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प. अह भंते ! जाईति इत्थिपण्णवणी, जाईति पुमपण्णवणी, जाईतिणपुंसगपण्णवणी
पण्णवणी णं एसा भासा?
ण एसा भासा मोसा? उ. हता, गोयमा ! जाईति इत्थिपण्णवणी, जाईति पुमपण्णवणी,जाईति णपुंसगपण्णवणी
पण्णवणी णं एसा भासा,
ण एसा भासा मोसा। -पण्ण. प.११, सु. ८३२-८३८ प. अह भंते ! आसइस्सामो सइस्सामो चिट्ठिस्सामो निसिइस्सामोतुयट्टिस्सामो,१.आमंतणि,२.आणमणी, ३. जायणि, ४. तह पुच्छणी, ५. य पण्णवणी। ६. पच्चक्खाणी भासा, ७. भासा इच्छाणुलोमा य, ॥१॥ ८. अणभिग्गहिया भासा, ९. भासा य अभिग्गहम्मि बोधव्वा। १०. संसयकरणी भासा ११. वोयड, १२. मव्वोयडा चेव ॥२॥ पण्णवणी णं एसा भासा ण एसा भासा मोसा?
द्रव्यानुयोग-(१) प्र. भन्ते ! जाति से जो स्त्री प्रज्ञापनी है, जाति से जो पुरुष प्रज्ञापनी है, जाति से जो नपुंसक प्रज्ञापनी है,
क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है?
यह भाषा मृषा तो नहीं है? उ. हाँ, गौतम ! जो जाति से स्त्री प्रज्ञापनी है, जाति से पुरुष प्रज्ञापनी है, जाति से नपुंसक प्रज्ञापनी है,
यह प्रज्ञापनी भाषा है,
यह भाषा मृषा नहीं है। प्र. भन्ते ! १.आमंत्रणी,२.आज्ञापनी, ३. याचनी, ४. पृच्छनी,
५. प्रज्ञापनी, ६. प्रत्याख्यानी, ७. इच्छानुलोमा, ८. अनभिगृहीता, ९. अभिगृहीता, १0. संशयकरणी, ११. व्याकृता और १२. अव्याकृता
उ. हता, गोयमा ! आइस्सामो जाव तुयट्टिस्सामो त चेव
जावण भासा मोसा। -विया. स. १०,उ.३, सु.१९ १५. जीवेहिं ठिय भासादव्याणं गहण परूवणंप. १.जीवेणं भंते !जाई दब्वाई भासत्ताए गेण्हइ,
ताई किं ठियाइं गेण्हइ, अठियाइं गेण्हइ?
उ. गोयमा ! ठियाइं गेण्हइ, णो अठियाई गेण्हइ।
प. २.जाई भंते ! ठियाइं गेण्हइ,
ताई किं दव्वओ गेण्हइ ? खेत्तओ गेण्हइ?
कालओ गेण्हइ? भावओ गेण्हइ? उ. गोयमा ! दव्यओ वि गेण्हइ,खेत्तओ वि गेण्हइ,
कालओ वि गेण्हइ,भावओ वि गेण्हइ। प. ३.जाई दव्वओ गेण्हइ,
ताई किं एगपदेसियाई गेण्हइ, दुपदेसियाई गेण्हइ जाव
अणंतदेसियाई गेण्हइ? उ. गोयमा ! णो एगपदेसियाई गेण्हइ जाव
णो असंखेज्जपदेसियाई गेण्हइ,
अणंत पदेसियाइं गेण्हइ। प. ४.जाई खेत्तओ गेण्हइ,
ताई किं एगपदेसोगाढाइं गेण्हइ, दुपदेसोगाढाइं गेण्हइ जाव
असंखेज्जपदेसोगाढाई गेण्हइ? उ. गोयमा ! णो एगपदेसोगाढाई गेण्हइ जाव
णो संखेज्जपदेसोगाढाइं गेण्हइ, असंखेज्जपदेसोगाढाई गेण्हइ।
इन बारह प्रकार की भाषाओं में हम आश्रय करेंगे, शयन करेंगे, खड़े रहेंगे, बैठेंगे और लेटेंगे इत्यादि भाषण करना क्या प्रज्ञापनी भाषा कहलाती है और ऐसी भाषा मृषा (असत्य) तो
नहीं कहलाती है? उ. हाँ, गौतम ! यह (पूर्वोक्त) आश्रय करेंगे यावत् लेटेंगे इत्यादि
भाषा प्रज्ञापनी भाषा है यह भाषा मृषा (असत्य) नहीं है। १५. जीवों द्वारा स्थित भाषा द्रव्यों के ग्रहण का प्ररूपण
प्र. १. भन्ते ! जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करता है, ___क्या वह स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित द्रव्यों को
ग्रहण करता है? उ. गौतम ! स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, अस्थित द्रव्यों को
ग्रहण नहीं करता है। प्र. २. भन्ते ! जिन स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है तो
क्या उन्हें द्रव्य से ग्रहण करता है, क्षेत्र से ग्रहण करता है,
काल से ग्रहण करता है या भाव से ग्रहण करता है? उ. गौतम ! द्रव्य से भी ग्रहण करता है, क्षेत्र से भी ग्रहण करता
है, काल से भी ग्रहण करता है और भाव से भी ग्रहण करता है। प्र. ३. जिनको वह द्रव्य से ग्रहण करता है तो
क्या वह एकप्रदेशी को ग्रहण करता है, द्विप्रदेशी को ग्रहण करता है यावत्
अनन्तप्रदेशी को ग्रहण करता है? उ. गौतम ! न तो वह एकप्रदेशी को ग्रहण करता है यावत्
न असंख्येयप्रदेशी को ग्रहण करता है,
किन्तु अनन्तप्रदेशी को ग्रहण करता है। प्र. ४. जिन द्रव्यों को वह क्षेत्र से ग्रहण करता है तो
क्या एकप्रदेशावगाढों को ग्रहण करता है, द्विप्रदेशावगाढों को ग्रहण करता है यावत्
असंख्येयप्रदेशावगाढों को ग्रहण करता है? उ. गौतम ! न तो वह एकप्रदेशावगाढों को ग्रहण करता है
यावत् न संख्यातप्रदेशावगाढों को ग्रहण करता है, किन्तु असंख्यातप्रदेशावगाढों को ग्रहण करता है।