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प णेरड्याणं भंते! सोइदिए कि संठिए पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! कलंबुयासंठाणसंठिए पण्णत्ते ।
णवरं एवं जहेव ओहियाणं चत्तव्वया भणिया तहेव रइयाणवि जाव अप्पाबहुयाणि दोणिवि
प. णेरइयाणं भंते ! फासिंदिए किं संठिए पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा
१. भवधारणिज्जे य, २ . उत्तरवेउब्विए य ।
१. तत्थ णं जे से भवधारणिज्जे से णं हुडसठाणसंठिए
"
पणते,
२. तत्थ णं जे से उत्तरवेउव्विए, से वि तहेव
सेस तं चैव ।
प. दं. २- ११. असुरकुमाराणं भंते ! कइ इंदिया पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! पंचेंदिया पण्णत्ता ।
एवं जहा ओहियाणं जाव अप्पाबहुयाणि दोण्णिवि ।
नवरं फार्सदिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा
१. भवधारणिज्जे य, २ . उत्तरवेउब्विए य
१. तत्थ णं जे से भवधारणिज्जे से णं समचउरंसठाण-संढिए पण्णत्ते,
२. तत्थ णं जे से उत्तरवेउब्विए से णं णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते,
सेसं तं चैव ।
एवं जाय धणियकुमाराणं ।
प. १. दं. १२. पुढविकाइयाणं भंते! कद इंदिया पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! एगे फार्सिदिए पण्णत्ते ।
प. पुढविकाइयाणं भंते ! फासिंदिए किं संठिए पण्णत्ते ?
उ. गोयमा ! मसूरचंदसंठिए पण्णत्ते ।
प. २. पुढविकाइयाणं भंते ! फासिंदिए केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ?
उ. गोयमा अंगुलस्स असंखेज्जइभागं बाहल्लेन पण्णत्ते।
प. ३. पुढविकाइयाणं भंते ! फासिंदिए केवइयं पोहत्तेणं पण्णत्ते ?
उ. गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ते पोहत्तेणं पण्णत्ते ।
प. ४. पुढविकाइयाणं भंते! फार्सिदिए कइएसिए पण्णत्ते ?
उ. गोयमा ! अणतपएसिए पण्णत्ते ।
१. जीवा. पडि. १, सु. १३ (८)
द्रव्यानुयोग - (१)
प्र. भन्ते ! नारकों की श्रोत्रेन्द्रिय किस आकार की कही गई है ? उ. गौतम ! वह कदम्बपुष्प के आकार की कही गई है।
विशेष- इसी प्रकार जैसे समुच्चय जीवों के पांच इन्द्रियों का कथन किया गया है, वैसे ही नारकों के दोनों प्रकार के अल्पबहुत्व तक का कथन करना चाहिए।
भन्ते ! नारकों की स्पर्शेन्द्रिय किस आकार की कही गई है ?
प्र.
उ. गौतम ! दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. भवधारणीया, २. उत्तरबैक्रिया,
१. उनमें से जो भवधारणीया है, वह हुण्डकसंस्थान की कही गई है।
२. उनमें से जो उत्तरक्रिया स्पर्शेन्द्रिय है, यह भी वैसी (हुडक-संस्थान की) कही गई है।
शेष पूर्ववत् समझनी चाहिए।
प्र. दं. २०११ भन्ते असुरकुमारों की कितनी इन्द्रियां कही गई है?
उ. गौतम ! उनके पांच इन्द्रियां कही गई हैं।
इसी प्रकार समुच्चय जीवों के समान दोनों प्रकार के अल्पबहुत्व पर्यन्त कथन करना चाहिए।
उ.
प्र.
विशेष- स्पर्शेन्द्रिय दो प्रकार की कही गई है, यथा१. भवधारणीय, २ . उत्तरवैक्रिय ।
१. उसमें भवधारणीय स्पर्शेन्द्रिय समचतुरनसंस्थान वाली कही गई है।
२. उसमें उत्तर वैक्रिय स्पर्शेन्द्रिय नाना संस्थान वाली कही गई है।
शेष कथन पूर्ववत् करना चाहिए।
इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त के लिए कहना चाहिए।
प्र.
१. . १२. भन्ते ! पृथ्वीकाय के कितनी इन्द्रियां कही गई हैं?
उ. गौतम ! एक स्पर्शेन्द्रिय कही गई है।
प्र.
भन्ते ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शेन्द्रिय किस आकार की कही गई है ?
गौतम ! वह मसूर चन्द्र की आकार की कही गई है।
२. भन्ते । पृथ्वीकायिकों की स्पशेंद्रिय का बाल्य कितना कहा गया है ?
उ. गौतम ! उसका बाहल्य अंगुल के असंख्यातवें भाग जितना कहा गया है।
प्र. ३. भन्ते पृथ्वीकायिकों की स्पर्शेन्द्रिय की लम्बाई कितनी कही गई है?
उ.
गौतम ! उनका विस्तार उनके शरीर प्रमाण मात्र है।
प्र.
४. भन्ते ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शेन्द्रिय कितने प्रदेशों की कही गई है?
उ. गौतम अनन्तप्रदेशी कही गई है।