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इन्द्रिय अध्ययन
दं. १९. चउरिंदियाणं वंजणोग्गहे तिविहे पण्णत्ते, तंजहा१. फासिंदिय वंजणोग्गहे, २. जिभिंदिय वंजणोग्गहे, ३. घाणिंदिय वंजणोग्गहे, चउरिंदियाणं अत्थोग्गहे चउबिहे पण्णत्ते,तं जहा१.फासिंदिय अत्थोग्गहे, २. जिब्भिंदिय अत्थोग्गहे, ३. घाणिंदिय अत्थोग्गहे, ४. चक्विंदिय अत्थोग्गहे, दं.२०-२४.सेसाणं जहा नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं,
-पण्ण. प.१५ उ.२,सु.१०१७-१०२३ २०. इंदियेहा भेया चउवीसदंडएसुय परूवणं :
प. कइविहाणं भंते ! ईहा पण्णत्ता? उ. गोयमा !पंचविहा ईहा पण्णत्ता,तं जहा
१-५ सोइंदिय ईहा जाव फासिंदिय ईहा, दं.१-२४ एवं नेरइयाणंजाव वेमाणियाणं,
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४८७ दं. १९ चतुरिन्द्रियों का व्यंजनावग्रह तीन प्रकार का कहा गया है, यथा१. स्पर्शेन्द्रिय व्यंजनावग्रह, २. जिह्वेन्द्रिय व्यंजनावग्रह, ३. घ्राणेन्द्रिय व्यंजनावग्रह। चतुरिन्द्रियों का अर्थावग्रह चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. स्पर्शेन्द्रिय अर्थावग्रह, २. जिह्वेन्द्रिय अर्थावग्रह, ३. घ्राणेन्द्रिय अर्थावग्रह, ४. चक्षुरिन्द्रिय अर्थावग्रह। द. २०-२४ शेष वैमानिक पर्यंत के समस्त जीवों का कथन
नैरयिकों के समान जानना चाहिए। २०. इन्द्रिय ईहा के भेद और चौबीसदंडकों में प्ररूपण :
प्र. भन्ते ! ईहा कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! ईहा पांच प्रकार की कही गई हैं, यथा
१. श्रोत्रेन्द्रिय ईहा यावत् ५. स्पर्शेन्द्रिय ईहा। दं. १-२४ इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यंत ईहा भेदों का कथन करना चाहिए। विशेष-जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतने ही ईहा भेद
कहने चाहिए। २१. इन्द्रिय अवाय के भेद और चौबीस दंडकों में प्ररूपण
प्र. भन्ते ! इन्द्रिय अवाय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गौतम ! इन्द्रिय अवाय पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१.श्रोत्रेन्द्रिय अवाय यावत्-५स्पर्शेन्द्रिय अवाय। दं. १-२४. इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त अवाय भेदों का कथन करना चाहिए। विशेष-जिसके जितनी इन्द्रियां हों, उसके उतने ही इन्द्रिय
अवाय भेद कहने चाहिए। २२. प्रकारान्तर से इन्द्रियों के भेद
प्र. भन्ते ! इन्द्रियां कितने प्रकार की कही गई हैं ? उ. गौतम ! इन्द्रियां दो प्रकार की कही गई हैं, यथा
१. द्रव्येन्द्रिय, २. भावेन्द्रिय।
णवर-जस्स जइ इंदिया अस्थि तस्स तावइया ईहा
भाणियव्वा। -पण्ण. प.१५, उ. २, सु. १०१६ २१. इंदियावाय भेया चउवीसदंडएसुय परूवणं
प. कइविहे णं भंते ! इंदिय अवाए पण्णत्ते? उ. गोयमा !पंचविहे इंदिय अवाएपण्णत्ते,तं जहा
१.सोइंदिय अवाए जाव फासेंदिय अवाए। दं.१-२४.एवं नेरइयाणंजाव वेमाणियाणं।
णवरं-जस्स जत्तिया इंदिया अस्थि तस्स तत्तिया अवाया भाणियव्वा।
-पण्ण. प.१५, उ.२, सु.१०१५ २२. पयारंतरेण इंदियभेया
प. कइविहाणं भंते ! इंदिया पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१.दबिंदिया य,२.भाविंदिया य।
-पण्ण.प.१५, उ.२,सु.१०२४ २३. दव्वेदियस्स भेया चउवीसदंडएसय परूवणं
प. कइ विहेणं भंते ! दविंदिया पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अट्ठ दबिंदिया पण्णत्ता,तं जहा
दो सोया, दोणेत्ता, दोघाणा, जीहा, फासे। प. दं.१णेरइयाणं भंते ! कइ दव्विंदिया पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अट्ठ एएचेव।
दं.२-११ एवं असुरकुमाराणं जाव थणियकुमाराण वि।
२३. द्रव्येन्द्रिय के भेद और चौबीस दंडकों में प्ररूपण
प्र. भन्ते ! द्रव्येन्द्रियां कितने प्रकार की कही गई हैं ? उ. गौतम ! द्रव्येन्द्रियां आठ प्रकार की कही गई हैं, यथा____दो श्रोत्र, दो नेत्र, दो घ्राण, एक जिह्वा, एक स्पर्शन। प्र. दं.१ भन्ते ! नैरयिकों के कितनी द्रव्येन्द्रियां कही गई हैं ? उ. गौतम ! ये ही आठ द्रव्येन्द्रियां हैं।
दं. २-११ इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों पर्यन्त
जानना चाहिए। प्र. द. १२ भन्ते ! पृथ्वीकायिकों के कितनी द्रव्येन्द्रियां कही
गई हैं?
प. दं.१२ पुढविकाइयाणं भंते ! कइ दव्विंदिया पण्णत्ता?