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इन्द्रिय अध्ययन
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प. सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं भंते ! सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवइया
दबिंदिया अतीता? उ. गोयमा !णत्थि। प. केवइया बद्धेल्लगा? उ. गोयमा ! संखेज्जा। प. केवइया पुरेक्खडा?
उ. गोयमा ! णत्थि। -पण्ण. प.१५ उ. २ सु. १०३०-१०५५ २५. चउवीसदंडएसु भाविंदियाणं परूवणं
प. कइणं भंते ! भाविंदिया पण्णत्ता? उ. गोयमा !पंच भाविंदिया पण्णत्ता,तं जहा
१.सोइंदिए जाव ५.फासिंदिए। प. दं.१.णेरइयाणं भंते ! कइ भाविंदिया पण्णत्ता? उ. गोयमा !पंच भाविंदिया पण्णत्ता,तं जहा
१.सोइंदिए जाव ५. फासेंदिए। दं.२-२४.एवं जाव वेमाणिया। णवर-जस्स जइ इंदिया तस्स तत्तिया भाविंदिया भाणियव्वा।
-पण्ण. प.१५ उ. २ सु.१०५६-१०५७ २६. चवीसदंडएसु अतीत-बद्ध-पुरेक्खड भाविंदिय परूवणं
प्र. भन्ते ! सर्वार्थसिद्ध देवों की सर्वार्थसिद्ध देव रूप में अतीत
द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! नहीं हैं। प्र. बद्ध द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! संख्यात हैं। प्र. पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ?
उ. गौतम ! नहीं हैं। २५. चौबीस दण्डकों में भावेन्द्रियों का प्ररूपण
प्र. भन्ते ! भावेन्द्रियां कितनी कही गई हैं ? उ. गौतम ! भावेन्द्रियां पांच कही गई हैं, यथा
१.श्रोत्रेन्द्रिय यावत् ५. स्पर्शेन्द्रिय। प्र. द.१.भन्ते ! नैरयिकों के भावेन्द्रियां कितनी कही गई हैं ? उ. गौतम ! उनके भावेन्द्रियां पांच कही गई हैं, यथा
१. श्रोत्रेन्द्रिय यावत् ५. स्पर्शेन्द्रिय। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-जिसके जितनी इन्द्रियां हों, उतनी भावेन्द्रियां कहनी चाहिए।
२६. चौबीस दण्डकों में अतीत-बद्ध-पुरस्कृत भावेन्द्रियों की
प्ररूपणाप्र. भन्ते ! एक एक नैरयिक के कितनी अतीत भावेन्द्रियां हैं ?
प. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स केवइया भाविंदिया
अतीता? ' उ. गोयमा ! अणंता। प. केवइया बद्धेल्लगा? उ. गोयमा !पंच। प. केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! पंच वा, दस वा, एक्कारस वा, संखेज्जा वा,
असंखेज्जा वा,अणंता वा। एवं असुरकुमारस्स वि। णवरं-पुरेक्खडा पंच वा,छ वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा। २-११.एवं जाव थणियकुमारस्स। दं. १२-१३, १६. एवं पुढविकाइय आउकाइय वणस्सइकायस्स वि। णवरं-बद्धेल्लगा एक्का। दं. १४-१५, १७-१८, १९, तेउकाइय वाउकाइय बेइन्दिय तेइन्दिय चउरिन्दियस्स विएवं चेव, णवरं-बद्धेल्लगा जस्स जत्तिया भाविंदिया। पुरेक्खडा छ वा, सत्त वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा। दं.२०-२४. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियस्स जाव ईसाणस्स जहा असुरकुमारस्स। णवर-मणूसस्स पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि, कस्सइ णत्थि त्ति भाणियव्वं।
उ. गौतम ! अनन्त हैं। प्र. बद्ध भावेन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! पांच हैं। प्र. पुरस्कृत भावेन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! वे पांच हैं, दस हैं, ग्यारह हैं, संख्यात हैं या असंख्यात
हैं अथवा अनन्त हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष-पुरस्कृत भावेन्द्रियां पांच, छह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त हैं। दं.२-११. इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए। दं. १२-१३, १६, इसी प्रकार पृथ्वीकायिक, अकायिक एवं वनस्पतिकाय का भी कथन है। विशेष-बद्ध इन्द्रिय एक है। दं. १४-१५, १७-१८, १९, इसी प्रकार है। तेजस्कायिक, वायुकायिक, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय का भी कथन विशेष-जिसके जितनी बद्ध इन्द्रियाँ हैं उतनी भावेन्द्रियां हैं। विशेष-पुरस्कृत भावेन्द्रियां छह, सात, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं। दं.२०,२४. पंचेन्द्रिय तिथंच योनिक से ईशानकल्प पर्यंत का कथन असुरकुमारों के समान है। विशेष-मनुष्य की पुरस्कृत भावेन्द्रियां किसी के होती हैं और किसी के नहीं होती हैं इस प्रकार कहना चाहिए।