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उच्छ्वास अध्ययन
४. वेमाणिय देवाणं उस्सासत्ताए परिणमिय पोग्गलाणं परूवणं
प. सोहम्मीसाणदेवाणं केरिसया पोग्गला उस्सासत्ताए परिणमंति ?
उ. गोयमा ! जे पोग्गला इट्ठा कंता मणुण्णा मणामा एसिं उस्सासत्ताए परिणमति जाव अणुत्तरोववाइया । - जीवा. पंडि. ३, सु. २०१ (ई) ५. रइया उसासत्ताए परिणमिय पोग्गलाणं परूवर्ण
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प. इमीसे णं भन्ते रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं केरिसया पोग्गला उसासत्ताए परिणमंति ?
उ. गोयमा ! जे पोग्गला अणिट्ठा जाव अमणामा, ते तेसिं उसासत्ताए परिणमति ।
एवं जाव असत्तमाए ।
- जीव. पडि. ३, सु. ८८ (१)
६. पुढविकाइयाई उत्सास निस्सास रूप. पुढविकाइए णं भन्ते ! पुढविकाइयं चेव आणमंति वा, पाणमति वा ऊससंति वा नीससति वा?
उ. हंता, गोयमा ! पुढविकाइए पुढविक्काइयं चेव आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा, नीससंति वा ।
प. पुढविकाइए णं भन्ते ! आउक्काइव आणमति या जाय नीससंति वा ?
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उ. हंता गोयमा ! पुढविकाइए आउक्काइव आणमति वा जाव नीससंति वा ।
एवं तेक्काइ बाउक्काइयं वणरसइकाइयं ।
प आउक्काइए णं भन्ते ! पुढविक्काइय आणमति वा जाय नीससति या ?
उ. हंता, गोयमा ! एवं चेव ।
प. आउक्काइए णं भन्ते ! आउक्काइयं आणमंति वा जाव नीससति वा?
उ. हंता गोयमा ! एवं चैव ।
एवं तेउकाइयं, वाउकाइयं, वणस्सइकाइयं ।
जहा आउकाइय वत्तव्वया तहा तेउ वण्णस्सईकाइयाणं भाणियव्वा ।
१. विया. स. २, उ. १, सु. ६
वाउ
- विया. स. ९, उ. ३४, सु. ९-१५
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४. वैमानिक देवों के श्वासोच्छ्वास के रूप में परिणमित पुद्गलों
का प्ररूपण
प्र. भन्ते सौधर्म ईशान देवों के श्वासोच्छ्वास के रूप में कैसे पुद्गल परिणत होते हैं ?
उ. गौतम ! जो पुद्गल इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मणाम होते हैं ये अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त श्वासोच्छ्वास के रूप में परिणत होते हैं।
५. नैरयिकों के श्वासोच्छ्वास के रूप में परिणमित पुद्गलों का
प्ररूपण
प्र. भन्ते ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के श्वासोच्छ्वास के रूप में कैसे पुद्गल परिणत होते हैं ?
उ. गौतम ! जो पुद्गल अनिष्ट यावत् अमणाम होते हैं वे नैरयिकों के श्वासोश्वास के रूप में परिणत होते हैं।
इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी पर्यन्त के नैरयिकों का कथन करना चाहिए।
६. पृथ्वीकायिकादि के उच्छ्वास निवास का रूप
प्र. भन्ते क्या पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकाधिक जीव को श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता है और छोड़ता है ? उ. हाँ, गौतम । पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिक जीव को श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता है और छोड़ता है।
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प्र. भन्ते ! पृथ्वीकायिक जीव, अप्कायिक जीव को श्वासोच्छ्वास रूप में ग्रहण करता है और छोड़ता है ?
उ. हाँ, गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव, अप्कायिक जीव को श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता है और छोड़ता है।
इसी प्रकार तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकाधिक जीवों के लिए भी जानना चाहिए।
प्र. भन्ते ! अष्कायिक जीव, पृथ्वीकायिक जीव को श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता है और छोड़ता है।
उ. हाँ, गौतम । पूर्वोक्त रूप से जानना चाहिए।
प्र. भन्ते अष्काधिक जीव, अकायिक जीव को श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता है और छोड़ता है ?
उ. हाँ, गौतम ! पूर्वोक्त रूप से जानना चाहिए।
इसी प्रकार तेजस्कायिक वायुकायिक और वनस्पतिकायिक के लिए जानना चाहिए।
जिस प्रकार अप्काय का कथन किया उसी प्रकार तेउकाय और वनस्पतिकाय का भी आलापक कहना चाहिए। वायुकाय