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द्रव्यानुयोग-(१) प्र. १-४ भन्ते ! विजय, वैजयन्त,जयन्त और अपराजित विमानों
के देव कितने काल में उच्छ्वास यावत् निःश्वास लेते हैं ? उ. गौतम ! जघन्य इकत्तीस पक्षों में उच्छ्वास यावत् निःश्वास
लेते हैं, उत्कृष्ट तेतीस पक्षों में उच्छ्वास यावत् निःश्वास लेते हैं।
प. १-४ विजय-वेजयंत-जयंतऽपराजियविमाणेसु णं भंते !
देवा केवइकालस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा? .. उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्कतीसाए पक्खाणं आणमंति वा
जाव नीससंति वां, उक्कोसेणं तेत्तीसाए पक्खाणं आणमंति वा जाव
नीससंति वा। प. सव्वट्ठसिद्धगदेवा णं भंते ! केवइकालस्स आणमंति वा
जाव नीससंति वा? उ. गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसाए पक्खाणं आणमंति वा जाव नीससंतिरे वा,
-पण्ण.प.७,सु.६९३-७२४ ३. विसिट्ठ वेमाणिय देवाणं उस्सास नीसास कालो१. जे देवा सागरं सुसागरं सागरकंतं भवं मणुं माणुसुत्तरं
लोगहियं विमाणं देवत्ताए उववण्णाते णं देवा एगस्स अद्धमासस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा।
-सम. सम.१, सु.४३-४४ २. जे देवा सुभं सुभकंतं सुभवण्णं सुभगंध सुभलेसं सुभफासं ।
सोहम्मवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा
प्र. भन्ते ! सर्वार्थसिद्ध विमान के देव कितने काल में उच्छ्वास
यावत् निःश्वास लेते हैं ? | उ. गौतम ! अजघन्य अनुत्कृष्ट तेतीस पक्षों में उच्छ्वास यावत्
निःश्वास लेते हैं।
३. विशिष्ट वैमानिक देवों का उच्छ्वास निःश्वास काल१. जो देव सागर, सुसागर, सागरकान्त,भव, मनु, मानुसोत्तर
और लोकहित विमानों में देव रूप में उत्पन्न होते हैंवे देव एक पक्ष से श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं।
ते णं देवा दोण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा जाव नीससंति वा।
-सम. सम.२स.२०-२१ ३. जे देवा आभंकरं पभंकरं आभंकरपभंकर, चंदं चंदावत्तं
चंदप्पभं चंदकंतं चंदवण्णं चंदलेस चंदज्यं चंदरूवं चंदसिंगं चंदसिटुं चंदकूडं चंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णाते णं देवा तिण्ह अद्धमासाणं आणमंति वा जाव नीससंति वा।
. -सम. सम.३, सु. २१-२२ ४. जे देवा किटिंट सुकिटि किट्ठियावत्तं किट्ठिप्पभं
किट्टिकंतं किट्ठिवण्णं किट्ठिलेसं किट्ठिज्झयं किट्ठिसिंगं किट्ठिसिट्ठ किट्ठिकूड किट्ठोत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णाते णं देवा चउण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा जाव नीससंति वा।
-सम.सम.४,सु.१५-१६ जे देवा वायं सुवायं वायावत्तं वातप्पभं वातकंतं वातवणं वातलेसं वातज्झयं वातसिंगं वातसिट्ठ वातकूड वाउत्तरवेंडसगं, सूर सुसूरं सूरावत्तं सूरप्पभं सूरकंतं सूरवण्णं सूरलेस सूरज्झयं सूरसिंगं सूरसिटुं सूरकूडं सूरुत्तरवडेंसगं विमाणं देवात्ताए उववण्णाते णं देवा पंचण्हं अद्धमासाणं आणंमति वा जाव नीससंति वा।
-सम.सम.५,सु.१९-२० ६. जे देवा सयंभु सयंभुरमणं घोसं सुघोसं महाघोसं
किट्ठियोस,
२. जो देव शुभ, शुभकान्त, शुभवर्ण, शुभगन्ध, शुभलेश्य,
शुभस्पर्श और सौधर्मावतंसक विमानों में देव रूप में उत्पन्न होते हैंवे देव दो पक्षों से श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और
छोड़ते हैं। ३. जो देव आभंकर, प्रभंकर, आभंकर-प्रभंकर, चन्द्र, चन्द्रावत,
चन्द्रप्रभ, चन्द्रकान्त, चन्द्रवर्ण, चन्द्रलेश्य, चन्द्रध्वज, चन्द्ररूप, चन्द्रशृंग, चन्द्रसृष्ट, चन्द्रकूट और चन्द्रोत्तरावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न होते हैंवे देव तीन पक्षों से श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और
छोड़ते हैं। ४. जो देव कृष्टि, सुकृष्टि, कृष्टिकावर्त्त, कृष्टिप्रभ, कृष्टिकान्त,
कृष्टिवर्ण, कृष्टिलेश्य, कृष्टिध्वज, कृष्टिशृंग, कृष्टिसृष्ट, कृष्टिकूट और कृष्ट्युत्तरावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न होते हैंवे देव चार पक्षों से श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और
छोड़ते हैं। ५. जो देव वात, सुवात, वातावर्त, वातप्रभ, वातकान्त, वातवर्ण,
वातलेश्य, वातध्वज, वातशृंग, वातसृष्ट, वातकूट और वातोत्तरावतंसक तथासूर, सूसूर, सूरावत, सूरप्रभ, सूरकान्त, सूरवर्ण, सूरलेश्य, सूरध्वज, सूरश्रृंग, सूरसृष्ट, सूरकूट और सूरोत्तरावतंसक विमानों में उत्पन्न होते हैंवे देव पांच पक्षों से श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और
छोड़ते हैं। ६. जो देव स्वयंभू, स्वयंभूरमण, घोष, सुघोष, महाघोष,
कृष्टिघोस,
३. ते ण देया बत्तीसाए अद्धमासेहिं आणमंति या जाव नीससंति वा-
-सम.सेम.३२, सु.१२
२. सम.सम.३३, सु.११