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इन्द्रिय अध्ययन
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प. जहा णं भंते ! छउमत्थ मणुस्से आरगयाइं सद्दाई सुणेइ,
नो पारगयाई सद्दाई सुणेइ। तहा णं भंते ! केवली किं आरगयाई सद्दाइं सुणेइ, नो पारगयाइं सद्दाई सुणेइ ?
उ. गोयमा ! केवली णं आरगयं वा पारगयं वा
सव्वदूरमूलमणंतियं सदं जाणइ पासइ।
प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'केवली णं आरगयं वा पारगयं वा सव्वदूरमूलमणंतियं
सदं जाणइ पासइ?' उ. गोयमा ! केवली णं पुरथिमेणं मियं पि जाणइ, अमियं पि
जाणइ, एवं दाहिणेणं, पच्चत्थिमेणं, उत्तरेणं, उड्ढं, अहे मियं पिजाणइ अमियं पिजाणइ।
सव्वं जाणइ केवली, सव्वं पासइ केवली, सव्वओ जाणइ पासइ, सव्वकालं जाणइ पासइ, सव्वभावे जाणइ केवली, सव्वभावे पासइ केवली, अणंते नाणे केवलिस्स, अणते दंसणे केवलिस्स, निव्वुडे नाणे केवलिस्स, निव्वुडे दंसणे केवलिस्स।
से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'केवली णं आरगयं वा पारगयं वा सव्वदूरमूलमणतियं
सद्दे जाणइ पासइ।' -विया. स. ५, उ. ४, सु.१-४ ६. इंदियाणं विसयाणं काम-भोगत्तं च परूवणं
प. रूवी भंते ! कामा? अरूवी कामा? उ. गोयमा ! रूवी कामा समणाउसो ! नो अरूवी कामा। प. सचित्ता भंते ! कामा? अचित्ता कामा? उ. गोयमा ! सचित्ता वि कामा, अचित्ता वि कामा। प. जीवा भंते ! कामा? अजीवा कामा? उ. गोयमा ! जीवा वि कामा, अजीवा वि कामा। प. जीवाणं भंते ! कामा? अजीवाणं कामा? उ. गोयमा ! जीवाणं कामा, नो अजीवाणं कामा। प. कइविहा णं भंते ! कामा, पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा कामा पण्णत्ता,तं जहा१.सद्दाय
२. रूवा या प. रूवी भंते ! भोगा? अरूवी भोगा? उ. गोयमा ! रूवी भोगा, नो अरूवी भोगा। प. सचित्ता भंते ! भोगा? अचित्ता भोगा? उ. गोयमा ! सचित्ता वि भोगा, अचित्ता वि भोगा। प. जीवा भंते ! भोगा? अजीवा भोगा? उ. गोयमा ! जीवा विभोगा,अजीवा वि भोगा। प. जीवाणं भंते ! भोगा? अजीवाणं भोगा? उ. गोयमा ! जीवाणं भोगा, नो अजीवाणं भोगा।
प्र. भन्ते ! जैसे छद्मस्थ मनुष्य आरगत शब्दों को सुनता है किन्तु
पारगत शब्दों को नहीं सुनता है तो भन्ते ! वैसे ही क्या केवलज्ञानी आरगत शब्दों को सुनता है पारगत शब्दों को नहीं
सुनता है? उ. हाँ, गौतम ! केवली मनुष्य आरगत, पारगत या समस्त
दूरवर्ती और निकटवर्ती अनन्त (अन्तरहित) शब्दों को
जानता और देखता है। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
'केवली मनुष्य आरगत, पारगत या सभी प्रकार के दूरवर्ती,
निकटवर्ती अनन्त शब्दों को जानता देखता है? उ. गौतम ! केवली पूर्व दिशा की मित वस्तु को भी जानता है और
अमित वस्तु को भी जानता-देखता है। इसी प्रकार दक्षिण दिशा, पश्चिम दिशा, उत्तर दिशा, ऊर्ध्वदिशा और अधोदिशा की मित वस्तु को भी जानता देखता है तथा अमित वस्तु को भी जानता देखता है। केवलज्ञानी सब जानता है और सब देखता है। केवली सर्वतः (सब ओर से) जानता देखता है, केवली सर्वकाल को जानता देखता है, केवली सर्व भावों (पदार्थों) को जानता देखता है। केवली के अनन्त ज्ञान और अनन्त दर्शन होता है। केवलज्ञानी का ज्ञान और दर्शन निरावृत (सभी प्रकार के आवरणों से रहित) होता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'केवली मनुष्य आरगत और पारगत शब्दों को सभी प्रकार के
दूरवर्ती और निकटवर्ती शब्दों को जानता देखता है।' ६. इन्द्रिय-विषयों के काम और भोगित्व का प्ररूपण
प्र. भंते ! काम रूपी है या अरूपी है? उ. हे आयुष्मन् श्रमण गौतम ! काम रूपी है, अरूपी नहीं है। प्र. भंते ! काम सचित्त है या अचित्त है? उ. गौतम ! काम सचित भी है और अचित्त भी है। प्र. भन्ते ! काम जीव है या अजीव है? उ. गौतम ! काम जीव भी है और अजीव भी है। प्र. भन्ते ! काम जीवों के होते हैं या अजीवों के होते हैं ? उ. गौतम ! काम जीवों के होते हैं, अजीवों के नहीं होते हैं। प्र. भंते ! काम कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! काम दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१.शब्द,
२. रूप। प्र. भंते ! भोग रूपी हैं या अरूपी हैं ? उ. गौतम ! भोग रूपी हैं वे अरूपी नहीं होते हैं। प्र. भंते ! भोग सचित्त होते हैं या अचित्त होते हैं? उ. गौतम ! भोग सचित्त भी होते हैं और अचित्त भी होते हैं। प्र. भंते ! भोग जीव होते हैं या अजीव होते हैं ? उ. गौतम ! भोग जीव भी होते हैं और अजीव भी होते हैं। प्र. भंते ! भोग जीवों के होते हैं या अजीवों के होते हैं? उ. गौतम ! भोग जीवों के होते हैं, अजीवों के नहीं होते हैं।