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भासा-समसेढीओ, सद्धं जं सुणइ मीसियं सुणइ । वीसेणी पुण सर्द, सुणे नियमा पराधाए ॥
-- नंदि सु. ६५ गा. ७५-७६
४. इंदियाणं विसयखेत्तपमाणं
प. सोइंदियस्स णं भंते! केवइए विसए पण्णत्ते ? उ. गोयमो ! जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागाओ, उक्कोसेणं बारसहिं जोयणेहिंतो अच्छिन्ने पोग्गले पुट्ठे पविट्ठाई सद्दाई सुणेइ ।
प. चक्खिंदियस्स णं भंते! केवइए विसए पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! जहण्जेण अंगुलरस संखेज्जइभागाओ,
उक्कोसेण साइरेगाओ जोवणसयसहस्साओ अच्छिन्ने पोग्गले अपुट्ठे अपविट्ठाई रुवाई पासइ प. घाणिदियस्स णं भंते! केवइए विसए पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागाओ, उक्कोसेणं णवहिं जोयणेहिंतो अच्छिण्णे पोग्गले पुट्ठे पविट्ठाइं गंधाहिं अग्घाइ।
एवं जिब्मिंदिवस बि फासिंदियस्स वि
- पण्ण. प. १५, उ. १, सु. ९९२ ५. छउमत्थ केवलीहिं सद्दसवणसामत्थ परूवणं
प. छउमत्थे णं भंते! मणुस्से आउडिज्जमाणाई सहाई सुणे, तं जहा
१. संसद्दाणि वा २ सिंगसहाणि वा ३. संखियसहाणि वा, ३. खरमहिसहाणि वा ५ पोयासहाणि वा. ६. परिपिरियासद्दाणि वा, ७. पणवसद्दाणि वा, ८. पडहसद्दाणि वा, ९. भंभासद्दाणि वा, १०. होरंभसद्दाणि वा, ११. भेरिसद्दाणि वा १२. झल्लरिसद्दाणि वा, १३. दुंदुभिसद्दाणि वा, १४. तताणि वा, १५. वितताणि वा, १६. घणाणि वा, १७. झुसिराणि वा ?
उ. हंता, गोयमा ! छउमत्थे णं मणूसे आउडिज्जमाणाई सद्दाई सुणेइ, तं जहा
१. संखसद्दाणि वा जाव १७. झुसिराणि था।
प. ताई भंते! किं पुट्ठाई सुणेइ ? अपुट्ठाई सुणेइ ?
उ. गोयमा ! पुट्ठाई सुणेइ, नो अपुट्ठाई सुणेइ जाव णियमा छद्दिसिं सुणे ।
प. छउमत्थे णं भंते! मणुस्से किं आरगयाई सद्दाई सुणेइ ? पारगयाइं सद्दाइं सुणेइ ?
उ. गोयमा ! आरगबाई सदाई सुणे, नो पारगवाई सद्दाई सुइ ।
द्रव्यानुयोग - (१)
सम श्रेणी में स्थित श्रोता अन्य (शब्द) पुद्गलों से मिश्रित भाषा के पुद्गलों को सुनता है। विश्रेणी में स्थित श्रोता अन्य (शब्द) पुद्गलों से आघात प्राप्त भाषा पुद्गलों को सुनता है।
४. इन्द्रियों के विषय क्षेत्र का प्रमाण
प्र. भन्ते ! श्रोत्रेन्द्रिय का विषय कितना कहा गया है ? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग,
उत्कृष्ट बारह योजन दूर से आए अविच्छिन्न शब्द वर्गणा के पुद्गल के स्पष्ट होने पर प्रविष्ट शब्दों को सुनती है।
भन्ते चक्षुरिन्द्रिय का विषय कितना कहा गया है ? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग,
प्र.
उत्कृष्ट साधिक एक लाख योजन दूर के अविच्छिन्न पुद्गलों के अस्पृष्ट एवं अप्रविष्ट रूपों को देखती है।
प्र. भन्ते ! घ्राणेन्द्रिय का विषय कितना कहा गया है ? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग,
उत्कृष्ट नौ योजन दूर से आए अविच्छिन्न पुद्गल के स्पृष्ट होने पर प्रविष्ट गन्धों को सूंघ लेती है।
इसी प्रकार जिकेन्द्रिय का भी और स्पर्शेन्द्रिय का भी कथन करना चाहिए।
५. छद्मस्थ और केवली द्वारा शब्द श्रवण के सामर्थ्य का
प्ररूपण
प्र. भन्ते ! छद्मस्थ मनुष्य क्या बजाये जाते हुए वाद्यों के शब्दों को सुनता है, यथा
१. शंख के शब्द, २. रणसींगे के शब्द, ३. शंखिका के शब्द ४. खरमुही के शब्द, ५. पोता के शब्द, ६. परिपीरिका (सुअर के चमड़े से मढ़े हुए मुख वाले एक प्रकार के बाजे) के शब्द, ७. पणव (ढोल) के शब्द, ८. पटह (ढोलकी) के शब्द, ९. भंभा (छोटी भेरी) के शब्द, १०. होरंभ के शब्द, ११. भेरी के शब्द, १२. झल्लरी (झालर) के शब्द, १३. दुन्दुभि के शब्द, १४. तत ( - वीणा आदि वाद्यों) के शब्द, १५. वितत (ढोल आदि) के शब्द, १६. घन (ठोस बाजों - कांस्य ताल आदि वाद्यों के शब्द, १७. सुधिर शब्द (बिगुल, बांसुरी वंशी आदि के शब्द) सुनता है ?
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उ. हां, गौतम ! छद्मस्थ मनुष्य बजाये जाते हुए शब्दों को सुनता है, यथा
१. शंख यावत् १७. झुषिर वाद्य ।
प्र. भन्ते ! क्या वह (छद्मस्थ) उन (पूर्वोक्त वाद्यों के) शब्दों को स्पृष्ट होने पर सुनता है या अस्पृष्ट होने पर सुनता है ? उ. गौतम ! छद्मस्थ मनुष्य (उन पायों के) स्पृष्ट हुए शब्दों को सुनता है, अस्पृष्ट शब्दों को नहीं सुनता है यावत् नियम से छहों दिशाओं से आए हुए स्पृष्ट शब्दों को सुनता है।
प्र. भन्ते ! क्या छद्मस्थ मनुष्य आरगत (इन्द्रिय विषय के समीप रहे हुए) शब्दों को सुनता है या पारगत (इन्द्रिय विषय से दूर रहे हुए शब्दों को सुनता है ?
उ. गौतम ! (छद्यस्य मनुष्य) आरगत शब्दों को सुनता है, किन्तु पारगत शब्दों को नहीं सुनता है।