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इन्द्रिय अध्ययन दस इंदियत्था अणागता पण्णत्ता,तंजहा१. देसेणवि एगे सद्दाइं सुणिस्संति। २. सव्वेणवि एगे सद्दाई सुणिस्संति। ३. देसेणवि एगे रूवाई पासिस्सति। ४. सव्वेणविएगे रूवाइं पासिस्संति। ५. देसेणवि एगे गंधाई जिंघिस्संति। ६. सव्वेणवि एगे गंधाई जिंघिस्संति। ७. देसेणविएगे रसाइं आसादेस्संति। ८. सव्वेणवि एगे रसाइं आसादेस्संति। ९. देसेणवि एगे फासाइं पडिसंवेदेस्संति। १०. सव्वेणवि एगे फासाई पडिसंवेदेस्संति।
-ठाणं. अ.१०,सु.७०६ ३. इंदियाणं पुट्ठापुट्ठ पविट्ठापविट्ठय विसय गहणं
- ४७५ ) इन्द्रियों के भविष्यकालीन विषय दश कहे गये हैं, यथा१. अनेक जीव शरीर के एक देश से शब्द सुनेंगे। २. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से शब्द सुनेंगे। ३. अनेक जीव शरीर के एक देश से रूप देखेंगे। ४. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से रूप देखेंगे। ५. अनेक जीव शरीर के एक देश से गन्ध सूबेंगे। ६. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से गन्ध सूंघेचेंगे। ७. अनेक जीव शरीर के एक देश से रस चखेंगे। ८. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से रस चखेंगे। ९. अनेक जीव शरीर के एक देश से स्पर्शों का वेदन करेंगे। १०. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से स्पर्शों का वेदन करेंगे।
प. पुट्ठाइं भंते ! सद्दाइं सुणेइ, अपुट्ठाई सद्दाई सुणेइ ?
उ. गोयमा ! पुट्ठाई सद्दाइं सुणेइ, नो अपुट्ठाइ सद्दाई
सुणेइ, प. पुट्ठाई भंते ! रूवाइं पासइ,अपुट्ठाई रूवाई पासइ?
उ. गोयमा ! नो पुट्ठाइ रूवाई पासइ, अपुट्ठाई रूवाई
पासइ, प. पुट्ठाई भंते ! गंधाइं अग्घाइ, अपुट्ठाई गंधाई अग्घाइ?
उ. गोयमा ! पुट्ठाई गंधाइं अग्घाइ, नो अपुट्ठाई गंधाई
अग्घाइ, प. पुट्ठाई भंते ! रसाइं अस्साएइ, अपुट्ठाई रसाई
अस्साएइ? उ. गोयमा ! पुट्ठाई रसाई अस्साएइ, नो अपुट्ठाई रसाई
अस्साएइ, प. पुट्ठाई भंते ! फासाइं पडिसंवेदेइ, अपुट्ठाई फासाई
पडिसंवेदेइ? उ. गोयमा ! पुट्ठाई फासाइं पडिसंवेदेइ, नो अपुट्ठाई
फासाई पडिसंवेदेइ। प. पविट्ठाई भंते ! सद्दाइं सुणेइ अपविट्ठाई सद्दाई
सुणेइ? उ. गोयमा ! पविट्ठाई सद्दाइं सुणेइ, नो अपविट्ठाई
सद्दाई सुणेइ। एवं जहा पुट्ठाणि तहा पविट्ठाणि वि।
-पण्ण. प.१५, उ.१, सु. ९९०-९९१ गाहाओ-पुढें सुणेइ सद, रूवं पुण पासइ अपुट्ठ तु।
३. इन्द्रियों का स्पृष्ट-अस्पृष्ट और प्रविष्ट-अप्रविष्ट विषयों का
ग्रहणप्र. भन्ते ! श्रोत्रेन्द्रिय स्पृष्ट शब्दों को सुनती है या अस्पृष्ट शब्दों
को सुनती है? उ. गौतम ! वह स्पृष्ट शब्दों को सुनती है, अस्पृष्ट शब्दों को नहीं
सुनती है। प्र. भन्ते ! चक्षुइन्द्रिय स्पृष्ट रूपों को देखती है या अस्पृष्ट रूपों
को देखती है? उ. गौतम ! वह स्पृष्ट रूपों को नहीं देखती है, अस्पृष्ट रूपों को
देखती है। प्र. भन्ते ! घ्राणेन्द्रिय स्पृष्ट गन्धों को सूंघती है या अस्पृष्ट गन्धों
को सूंघती है ? उ. गौतम ! वह स्पृष्ट गन्धों को सूंघती है, अस्पृष्ट गन्धों को नहीं
सूंघती है। प्र. भन्ते ! जिह्वेन्द्रिय स्पृष्ट रसों को चखती है या अस्पृष्ट रसों को
चखती है ? उ. गौतम ! वह स्पृष्ट रसों को चखती है, अस्पृष्ट रसों को नहीं
चखती है। प्र. भन्ते ! स्पर्शेन्द्रिय स्पृष्ट स्पर्शों का प्रतिसंवेदन करती है या
अस्पृष्ट स्पर्शों का प्रतिसंवेदन करती है ? उ. गौतम ! वह स्पृष्ट स्पर्शों का प्रतिसंवेदन करती है, अस्पृष्ट
स्पर्शों का प्रतिसंवेदन नहीं करती है। प्र. भन्ते ! श्रोत्रेन्द्रिय प्रविष्ट शब्दों को सुनती है या अप्रविष्ट
शब्दों को सुनती है ? उ. गौतम ! वह प्रविष्ट शब्दों को सुनती है, अप्रविष्ट शब्दों को
नहीं सुनती है। जिस प्रकार स्पृष्ट के विषय में कहा, उसी प्रकार प्रविष्ट के । विषय में भी कहना चाहिए। गाथार्थ-शब्द श्रोत्रेन्द्रिय से स्पृष्ट होने पर ही सुना जाता है, किन्तु रूप नेत्र से स्पृष्ट हुए बिना ही देखा जाता है। गन्ध,रस और स्पर्श के पुद्गल इन्द्रियों से बद्ध और स्पृष्ट होने पर ही जाने जाते हैं।
गंधं रसं च फासंच, बद्धपुढें वियागरे ॥