________________
विकुर्वणा अध्ययन
४४७
प. से जहानामए उप्पलहत्थगं, पउमहत्थगं, कुमुदहत्थर्ग,
नलिणहत्थगं, सुभगहत्थगं, सुगंधियहत्थगं, पोंडरीयहत्थगं, महापोंडरीयहत्थगं, सयपत्तहत्थगं, सहस्सपत्तगंगहाय गच्छेज्जा,
प्र. जैसे कोई पुरुष उत्पल हाथ में लेकर, पद्म हाथ में लेकर,
कुमुद हाथ में लेकर, नलिनी हाथ में लेकर, सुभग हाथ में लेकर, सुगन्धित हाथ में लेकर, कमल हाथ में लेकर, बहुत बड़ा कमल हाथ में लेकर,शतपत्र हाथ में लेकर और सहस्रपत्र हाथ में लेकर चलेक्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार इन सबके समान
विकुर्वणा करके ऊंचे आकाश में गमन कर सकता है ? उ. हां, गमन कर सकता है। प्र. जैसे कोई पुरुष कमल की डंडी को तोड़ता-तोड़ता चलता है,
एवामेव अणगारे वि भावियप्पा एवं अप्पाणेणं उड्ढे
वेहासं उप्पएज्जा? उ. हंता, उप्पएज्जा। प. से जहानामए केइ पुरिसे भिसं अवदालिय-अवदालिय
गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भिसकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढे वेहासं उप्पएज्जा?
उ. हंता, उप्पएज्जा। प. से जहानामए मुणालिया सिया, उदगंसि कार्य
उम्मज्जिया-उम्मज्जिया चिठेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा मुणालिया किच्चगएणं
अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? उ. हंता, उप्पएज्जा। सेसं जहा वग्गुलीए। प. से जहानामए वणसंडे सिया-किण्हे किण्होभासे जाव __ महामेहनिकुरंबभूए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे - पडिरूवे, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा वणसंडकिच्चगएणं
अप्पाणेणं उड्ढे वेहासं उप्पएज्जा? उ. हता, उप्पएज्जा। प. से जहानामए पुक्खरणी सिया-चउक्कोणा, समतीरा,
अणुपुब्बसुजायवप्प-गंभीरसीयलजला जाव सदुन्नइयमहुरसणादिया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा, पडिरूवा। एवामेव अणगारे वि भावियप्पा पोखरणीकिच्चगएणं अप्पाणेणं उडढं वेहासं उप्पएज्जा?
क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार कमल की डंडी तोड़ते हुए के समान विकुर्वणा करके ऊँचे आकाश में चल
सकता है? उ. हां, चल सकता है। प्र. जैसे कोई मृणालिका हो और वह अपने शरीर को पानी में
डुबाए रखती है तथा उसका मुख बाहर रहता है, क्या इसी तरह भावितात्मा अणगार मृणालिका की तरह
विकुर्वणा करके ऊँचे आकाश में रह सकता है ? उ. हां, रह सकता है। शेष सब वग्गुली के समान समझना चाहिए। प्र. जिस प्रकार कोई वनखण्ड हो, जो काला हो यावत् महामेघ
समूह के समान प्रसन्नतादायक, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप हो, क्या इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी स्वयं वनखण्ड के
समान विकुर्वणा करके ऊँचे आकाश में उड़ सकता है? उ. हां, उड़ सकता है। प्र. जैसे कोई पुष्करिणी हो, जो चतुष्कोण और समतीर हो तथा
अनुक्रम से जो शीतल गम्भीर जल से सुशोभित हो यावत् विविध पक्षियों के मधुर स्वरनाद आदि से युक्त हो तथा प्रसन्नतादायिनी, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हो, क्या इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी उस पुष्करिणी के समान रूप की विकुर्वणा करके स्वयं ऊँचे आकाश में उड़
सकता है? उ. हां, वह उड़ सकता है। प्र. भन्ते ! भावितात्मा अनगार पुष्करिणी के समान कितने रूपों
की विकुर्वणा कर सकता है? उ. संपूर्ण कथन पूर्ववत् है यावत् भावितात्मा अनगार का यह
विषय है, विषयमात्र कहा गया है। उसने कभी इतने रूपों की विकुर्वणा की नहीं, करता नहीं और
करेगा भी नहीं। ४. बाह्य पुद्गलों के ग्रहण द्वारा भावितात्मा अणगार की विकुर्वणा
शक्ति का प्ररूपणप्र. भन्ते ! क्या भावितात्मा अनगार बाहर के पुद्गलों को ग्रहण
किए बिना वैभारगिरि को लांघ सकता है, या बार-बार लांघ
सकता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
उ. हंता, उप्पएज्जा। प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू
पोक्खरणीकिच्चगयाई रूवाई विउव्वित्तए? उ. तं चेव सव्वं जाव अणगारस भावियप्पणो अयमेयारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए।
णो चेव णं संपत्तीए विउव्सुि वा, विउब्बइ वा,
विउव्विस्संति वा। -विया. स. १३, उ.९, सु. १-२५ ४. बाहिरए पोग्गल गहणेण भावियप्पणो अणगारस्स विउव्वण
सत्ति परूवणंप. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले
अपरियाइत्ता पभू वेभार पव्वयं उल्लंघेत्तए वा
पलंघेत्तए वा? उ. गोयमा !णो इणठे समठे।