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विकुर्वणा अध्ययन
“अहो ! णं देवाणुप्पिएहिं दिव्वा देविड्ढी, दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए जारिसिया णं देवाप्पिएहिं दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए तारिसिया णं सक्केणं देविदिणं देवरण्णा दिव्या देविढी जाव अभिसमन्नागया जारिसिया णं सक्केणं देविदेणं देवरण्णा दिव्या देविदी जाव अभिसमन्नागया तारिसिया णं देवाणुप्पिएहिं दिव्या देविदी जाव अभिसमन्नागया।
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प से भंते! तीस देवे के महिड्ढीए जाव केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए ?
उ. गोयमा ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे से णं तत्थ सयस्स विमाणस्स चंउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चउन्ह अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिन्हं परिसार्ण, सत्तण्ह अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, अन्नेसि च बहूणं वेमाणियाण देवाण य देवीण य जाव विहरइ । एमहिड्ढी ए जाव एवइयं चणं पभू विकुव्वित्तए ।
से जहाणामए जुबई जुवाणे हत्थेण हत्थे गेण्हेन्जा जहेव सक्कस्स तहेव जाव एस णं गोयमा ! तीसयस्स देवस्स अयमेयारूचे विसए बिसयमेत्ते बुइए नो चैव णं संपत्तीए विउव्विसुवा, विउव्वइवा, विउविस्सइं वा ।
प. जइणं भंते! तीस देवे एमहिड्ढीए जाव एवइयं चणं भू विकुव्वित्तए सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो अवसेसा सामाणिया देवा के महिढीया जाव केवइयं च भू विकुव्वित्तए ?
उ. गोयमा ! तहेव सव्वं जाव एस णं गोयमा ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो एगमेगस्स सामाणियस्स देवस्स इमे विस विसमेत्ते वुइए नो चेव णं संपत्तीए विकुव्विसुवा, विकुव्वंति वा विकुव्विस्संति वा ।
तायत्तीसय लोगपाल-अग्गमहिसीणं जहेव चमरस्स । णवरं-दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अन्नं तं चेव ।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति दोच्चे गोयमे जाव विहरइ ।
भंते! त्ति भगवं तच्चे गोयमे वाउभूई अणगारे भगवं जाव एवं बयासी
प. जड़ णं भंते! सके देविंदे देवराया एमहिदीए जाव एवइयं च णं पभू विउव्वित्तए ईसाणे णं भंते ! देविंदे देवराया के महिइवीए जाब केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए ?
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"अहो ! आप देवानुप्रिय ने यह दिव्य देव ऋद्धि दिव्य देव द्युति और दिव्य देव-प्रभाव उपलब्ध किया है, अधिगत किया है जैसी दिव्य देव ऋद्धि, दिव्य देव कान्ति और दिव्य देवप्रभाव आप देवानुप्रिय ने उपलब्ध प्राप्त और अभिमुख किया है, वैसी ही दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवकान्ति और दिव्य देवप्रभाव देवेन्द्र देवराज शक्र ने उपलब्ध प्राप्त और अभिमुख किया है जैसी दिव्य देव ऋद्धि यावत् अभिमुख शक्र ने किया है वैसी ही दिव्य देवऋद्धि यावत् अभिमुख आपने किया है।"
प्र. भंते ! वह तिष्यक देव कितनी महाऋद्धि वाला है यावत् कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ?
उ. गौतम ! वह तिष्यक देव महाऋद्धि वाला है यावत् महाप्रभाव वाला है। वह वहां अपने विमान पर चार हजार सामानिक देवों पर, सपरिवार चार अग्रमहिषियों पर तीन परिषदाओं पर, सात सैन्यों पर, सात सेनाधिपतियों पर एवं सोलह हजार आत्मरक्षक देवों और देवियों पर आधिपत्य करता हुआ यावत् विचरण करता है यह तिष्यकदेव ऐसी महाऋद्धि वाला है यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है।
जैसे कोई युवती युवा पुरुष का हाथ दृढ़ता से पकड़कर चलती है इस प्रकार शक्रेन्द्र की विकुर्वणा शक्ति के लिए दिये गए दृष्टांत की तरह यहां भी कहना चाहिए यावत् हे गौतम ! तिष्यकदेव का यह और इस प्रकार की शक्ति का विषय और विषय मात्र बताया है किन्तु शक्ति के रहते हुए भी कभी उसने इतनी विकुर्वणा की नहीं, करता भी नहीं और करेगा भी नहीं । प्र. भंते! यदि तिष्यक देव इतनी महाऋद्धि वाला है यावत् इतनी विकुर्वणा करने की शक्ति रखता है, तो भंते । देवेन्द्र देवराज शक्र के दूसरे सब सामानिक देव कितनी महाऋद्धि वाले हैं यावत् उनकी विकुर्वणा शक्ति कितनी है?
उ. हे गौतम! जिस प्रकार तिष्यकदेव की ऋद्धि एवं विकुर्वणा
शक्ति आदि के विषय में कहा उसी प्रकार शक्रेन्द्र के विषय में जानना चाहिए, किन्तु हे गौतम! यह विकुर्वणा शक्ति देवेन्द्र देवराज शक्र के प्रत्येक सामानिक देव का विषय और विषय. मात्र बताया गया है किन्तु शक्ति के रहते हुए भी उन्होंने कभी इतनी विकुर्वणा की नहीं, करते नहीं और करेंगे भी नहीं । शक्रेन्द्र के त्रायस्त्रिंशक लोकपाल और अग्रमहिषियों का कथन चमरेन्द्र की तरह कहना चाहिए।
विशेष वे अपने वैक्रियकृत रूपों से दो सम्पूर्ण जम्बूद्वीपों को व्याप्त करने में समर्थ हैं। शेष समग्र वर्णन चमरेंन्द्र की तरह कहना चाहिए।
भंते! यह इसी प्रकार है, भंते ! यह इसी प्रकार है, यों कहकर द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार यावत् विचरण करते हैं। 'भंते !' यों संबोधन कर तृतीय गौतम वायुभूति अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर से यावत् इस प्रकार पूछा
प्र. भंते! यदि देवेन्द्र देवराज शक्र इतनी महाऋद्धि वाला है यावत इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है तो भते देवेन्द्र देवराज ईशान कितनी महाऋद्धि वाला है यावत् कितनी विकुर्वणा करने की शक्ति वाला है ?