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उ. हंता उप्पएज्जा।
एवं जण्णोवइयवत्तव्वया भाणियव्या। प. से जहानामए जलोया सिया, उदगंसि कायं
उबिहिया-उविहिया गच्छेजा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा जलोया किच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढे वेहासं उप्पएज्जा?
- द्रव्यानुयोग-(१)) उ. हां, उड़ सकता है।
पूर्व कथित यज्ञोपवित के कथन के समान समझना चाहिये। प्र. जैसे कोई जलौका अपने शरीर को उत्प्रेरित करके पानी में
चलती है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी जलौका की तरह अपने रूप की विकुर्वणा करके ऊँचे आकाश में उड़ सकता
उ. हंता उप्पएज्जा, सेसं जहा वग्गुलीए। प. से जहानामए बीयंबीयगसउणे सिया, दो वि पाए
समतुरंगेमाणे-समतुरंगेमाणे गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा बीयंबीयगसउणे किच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढे वेहासं उप्पएज्जा? उ. हंता उप्पएज्जा। प. से जहानामए पक्खिविरालए सिया, रूक्खाओ रूक्खं
डेवेमाणे-डेवेमाणे गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा पक्खिविरालए
किच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? उ. हंता उप्पएज्जा। प. से जहानामए जीवंजीवगसउणे सिया, दो वि पाए
समतुरंगेमाणे समतुरंगेमाणे गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा जीवंजीवगसउणे
किच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? उ. हंता उप्पएज्जा। प. से जहानामए हंसे सिया, तीराओ तीर
अभिरममाणे-अभिरममाणे गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा हंसकिच्चगएणं
अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? उ. हंता उप्पएज्जा। प. से जहानामए समुद्दवायसए सिया, वीईओ वीई
डेवेमाणे-डेवेमाणे गच्छेज्जा, एवामेव 'अणगारे वि भावियप्पा समुदवायसए किच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? उ. हंता उप्पएज्जा। प. से जहानामए केइ पुरिसे चक्कं गहाय गच्छेज्जा,
एवामेव अणगारे वि भावियप्पा चक्कहत्थ किच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा?
उ. हां, उड़ सकता है। शेष सब वग्गुली की तरह समझना चाहिये। प्र. जैसे कोई बीजबीजक पक्षी अपने पैरों को घोड़े की तरह एक
साथ उठाता-उठाता हुआ गमन करता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी बीजबीजक पक्षी की
तरह विकुर्वणा करके ऊंचे आकश में गमन कर सकता है? उ. हां, गमन कर सकता है। प्र. जैसे कोई बिडालक पक्षी एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष को
लांघता-लांघता जाता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी बिडालक पक्षी की
तरह विकुर्वणा करके ऊंचे आकाश में छलांग मार सकता है ? उ. हां, छलांग मार सकता है। प्र. जैसे कोई जीवजीवक पक्षी अपने दोनों पैरों को घोड़े के समान
एक साथ उठाता-उठाता गमन करता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी जीवंजीवक पक्षी की
तरह विकुर्वणा करके ऊंचे आकाश में गमन कर सकता है ? उ. हां, गमन कर सकता है। प्र. जैसे कोई हंस सरोवर के एक किनारे से दूसरे किनारे पर
क्रीड़ा करता-करता चला जाता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी हंसवत् विकुर्वणा
करके ऊंचे आकाश में क्रीड़ा कर सकता है? उ. हां, कर सकता है। प्र. जैसे कोई समुद्रवायस सरोवर की एक लहर से दूसरी लहर
का अतिक्रमण करता-करता चला जाता है, क्या वैसे ही भावितात्मा अनगार भी समुद्रवायसवत् विकुर्वणा
करके ऊंचे आकाश में अतिक्रमण कर सकता है? उ. हां, अतिक्रमण कर सकता है। प्र. जैसे कोई पुरुष हाथ में चक्र लेकर चलता है,
क्या वैसे ही भावितात्मा अनगार भी तदनुसार विकुर्वणा करके चक्र हाथ में लेकर स्वयं ऊंचे आकाश में उड़
सकता है? उ. हां, उड़ सकता है।
इसी प्रकार छत्र, चंवर के सम्बन्ध में भी कथन करना चाहिए। प्र. जैसे कोई पुरुष रत्न लेकर गमन करता है,
क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार रत्न हाथ में लिए हुए
पुरुषवत् विकुर्वणा करके ऊंचे आकाश में उड़ सकता है? उ. हां, उड़ सकता है।
इसी प्रकार वज्र, वैडूर्य रिष्टरल पर्यंत कहना चाहिए।
उ. हंता उप्पएज्जा।
एवं छत्तं, एवं चम्म। प. से जहानामए केइ पुरिसे रयणं गहाय गच्छेज्जा,
एवामेव अणगारे वि भावियप्पा रयण हत्थ किच्चगएणं
अप्पाणेणं उड्ढे वेहासं उप्पएज्जा? उ. हंता उप्पएज्जा।
एवं वइरं, वेरुलियं जाव रिठें।