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शरीर अध्ययन
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उ. गोयमा ! जहा वेउव्वियसरीरे।
पंचेंदिय तिरिक्खजोणियाणं मणूसाण य जहा एएसिं चेव ओरालिय त्ति।
प. देवाणं भंते ! तेयगसरीरे किं संठिए पण्णत्ते?
उ. गोयमा ! जहा वेउव्वियस्स तहा तेयगसरीरस्स जाव अणुतरोववाइय त्ति ।
-पण्ण. प. २१, सु. १५४०-१५४४ ४६. कम्मसरीरस्स संठाणं
प. कम्मगसरीरे णं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते?
उ. गौतम ! जैसे वैक्रिय शरीर का संस्थान कहा गया है उसी
प्रकार इनके तैजस् शरीर के संस्थान का कथन करना चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों और मनुष्यों के तैजस् शरीर के संस्थान का कथन इनके औदारिक शरीरगत संस्थानों
के समान कहना चाहिए। प्र. भंते ! देवों के तैजस् शरीर का संस्थान किस प्रकार का कहा
गया है? उ. गौतम ! जैसे इनके वैक्रिय शरीर का संस्थान कहा है वैसे ही
अनुत्तरौपपातिक देवों पर्यन्त तैजस शरीर के संस्थान का
कथन करना चाहिए। ४६. कार्मण शरीर का संस्थानप्र. भंते ! कार्मण शरीर का संस्थान का किस प्रकार का कहा
गया है? उ. गौतम ! वह नाना संस्थान वाला कहा गया है।
जैसे तैजसुशरीर के संस्थानों का कथन किया है उसी प्रकार अनुत्तरौपपातिक देवों पर्यन्त (कार्मण शरीर के संस्थानों
का) कथन करना चाहिए। ४७. छह संस्थान
संस्थान छह प्रकार का कहा गया है, यथा१. समचतुरन,
२. न्यग्रोधपरिमण्डल, ३. स्वाती,
४. कुब्ज, ५. वामन,
६. हुण्ड।
उ. गोयमा !णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते।
जहा तेयगसरीरस्स संठाणा भणिया तहेव जाव अणुत्तरोववाइय त्ति।
- -पण्ण. प. २१, सु. १५५२ ४७. छव्विहे संठाणे
छविहे संठाणे पण्णत्ते,तं जहा१. समचउरंसे, २. णग्गोहपरिमंडले, ३. साती,
४. खुज्जे, ५. वामणे,
-ठाणं. अ.६.सु.४९५ ४८. संठाणाणुपुव्वी
प. १.से किं तं संठाणाणुपुव्वी? उ. संठाणाणुपुव्वी-तिविहा पण्णत्ता, तं जहा
१.पुव्वाणुपुव्वी, २. पच्छाणुपुव्वी, ३. अणाणुपुची। प. २.से किं तं पुव्वाणुपुव्वी? उ. पुव्वाणुपुब्बी-१.समचउरंसे, २.णग्गोहमंडले,३.सादी,
६. खुज्जे, ५. वामणे, ६. हुंडे।
से तं पुव्वाणुपुची।
४८. संस्थानानुपूर्वी
प्र. १. संस्थानानुपूर्वी क्या है? उ. संस्थानानुपूर्वी के तीन प्रकार कहे गए हैं, यथा
१. पूर्वानुपूर्वी, २. पश्चानुपूर्वी, ३. अनानुपूर्वी । प्र. २. पूर्वानुपूर्वी क्या है ? उ. १. समचतुरनसंस्थान, २. न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान,
३. सादिसंस्थान, ४. कुब्जसंस्थान, ५. वामनसंस्थान, ६. हुण्डसंस्थान। इस क्रम से संस्थानों के कथन करने को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं।
यह पूर्वानुपूर्वी है। प्र. ३. पश्चानुपूर्वी क्या है? उ. हुण्डसंस्थान यावत् समचतुरनसंस्थान इस प्रकार कथन करने . को पश्चानुपूर्वी कहते हैं।
यह पश्चानुपूर्वी है। प्र. ४. अनानुपूर्वी क्या है? उ. एक से लेकर छह तक की एकोत्तर वृद्धि वाली श्रेणी में
स्थापित संख्या का परस्पर गुणाकार करने पर निष्पन्न राशि में से आदि और अन्त रूप दो अंकों को कम करने पर शेष रहे भंग अनानुपूर्वी है।
प. ३.से किं तं पच्छाणुपुब्बी? उ. पच्छाणुपुव्वी-डंडे जाव समचउरंसे।
से तं पच्छाणुपुव्वी। प. ४.से किं तं अणाणुपुव्वी? उ. अणाणुपुव्वी-पयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए
छगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो।
१.
क.
सम.सू.१५२
ख.
सम.सु.१५५
२. सम. सु.१५५