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शरीर अध्ययन
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पज्जत्तऽपज्जत्ताण वि एवं चेव।
गब्भवक्कंतियाण वि एवं चेव।
पर्याप्तक और अपर्याप्तक मनुष्यों के शरीर संस्थान भी इसी प्रकार जानना चाहिए। गर्भजों के (औदारिक शरीर) भी इसी प्रकार छहों संस्थान वाले होते हैं। इसके पर्याप्तक और अपर्याप्तकों का शरीर संस्थान भी इसी प्रकार है। सम्मूछिम मनुष्यों के शरीर हुण्डक संस्थान वाले होते हैं।
पज्जत्तऽपज्जत्तयाण वि एवं चेव।
सम्मुच्छिमाणं हुंडसंठाणसंठिया।२
-पण्ण. प.२१, सु.१४८८-१५०१ ४१. वेउव्वियसरीरस्स संठाणं
प. वेउव्वियसरीरेणं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते। प. वाउक्काइय-एगिंदिय-वेउव्वियसरीरे णं भंते ! किं
संठाणसंठिए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पडागासंठाणसंठिए पण्णत्ते। प. णेरइय-पंचेंदिय वेउव्वियसरीरे णं भंते ! किं संठाण
संठिए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! णेरइय पंचेंदिय वेउव्वियसरीरे दुविहे पण्णत्ते,
तं जहा१. भवधारणिज्जे य,२.उत्तरवेउव्विए य। १. तत्थ णं जे से भवधारणिज्जे से हुंडसंठाणसंठिए
पण्णत्ते। २. तत्थ णं जे से उत्तरवेउव्विए से वि हुंडसंठाणसंठिए
__ पण्णत्ते। प. रयणप्पभा-पुढविणेरइय-पंचेंदिय वेउव्वियसरीरेणं भंते !
किं संठाणसंठिए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! रयणप्पभा-पुढविणेरइयाणं दुविहे सरीरे
पण्णत्ते,तं जहा१. भवधारणिज्जे य,२. उत्तरवेउव्विएय। तत्थ णं जे ये भवधारणिज्जे से वि हुंडे, जे वि उत्तरवेउव्विए से वि हुंडे। एवं जाव अहेसत्तमा-पुढविणेरइय-वेउब्वियसरीरे।३
४१. वैक्रिय शरीर का संस्थान
प्र. भंते ! वैक्रियशरीर का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह नाना संस्थान वाला कहा गया है। प्र. भंते ! वायुकायिक एकेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर का संस्थान
किस प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पताका के आकार का कहा गया है। प्र. भंते ! नैरयिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर का संस्थान किस
प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! नैरयिक पंचेन्द्रिय वैक्रिय शरीर दो प्रकार का कहा
गया है, यथा१. भवधारणीया, २. उत्तरवैक्रिया। १. उनमें से जो भवधारणीया वैक्रिय शरीर है, उसका
संस्थान हुंडक कहा है। २. जो उत्तरवैक्रिया संस्थान है.वह भी हंडक संस्थान वाला
होता है। प्र. भंते ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नारक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर
का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक पंचेन्द्रियों का वैक्रिय शरीर
दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. भवधारणीया, २. उत्तर वैक्रिया। उनमें से जो भवधारणीया वैक्रिय शरीर है, वह हुंडक संस्थान वाला है और उत्तरवैक्रिय भी हुंडक संस्थान वाला होता है। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी पर्यंत ये दोनों प्रकार के वैक्रिय
शरीर हुंडक संस्थान वाले होते हैं। प्र. भंते ! तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर का संस्थान
किस प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह अनेक संस्थानों वाला कहा गया है।
इसी प्रकार जलचर, स्थलचर और खेचरों का संस्थान भी कहा गया है। स्थलचरों में चतुष्पद और परिसों का तथा परिसपों में उरःपरिसर्प और भुजपरिसों का भी समझना चाहिए। इसी तरह मनुष्य पंचेन्द्रियों का भी वैक्रिय शरीर कहा गया हैं।
प. तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय वेउब्वियसरीरे णं भंते ! किं
संठाणसंठिए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते।
एवं जलयर-थलयर-खहयराण वि।
थलयराण चउप्पय-परिसप्पाण वि। परिसप्पाण उरपरिसप्प-भुयपरिसप्पाण वि।
एवं मणूस-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे वि।
१. जीवा.पडि.१.सु.४१
२. जीवा. पडि.१,सु.४१
३. जीवा. पडि.३, सु. ८७(२)