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द्रव्यानुयोग-(१)
उ. गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते, तं जहा
१ सम चउरंससंठाणसंठिए जाव ६ हुंडसंठाणसंठिए। एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि।
प. सम्मुच्छिम-तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-ओरालियसरीरे णं
भंते ! किं संठाण संठिए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते।
एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि।
प. गब्भवक्कंतिय-तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-ओरालियसरीरे __ णं भंते ! किं संठाण संठिए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते,तं जहा
१ समचउरंस संठाण संठिए जाव ६ हुंडसंठाण संठिए।२ एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि।
एवमेए तिरिक्खजोणियाणं ओहियाणं णव आलावगा।
णं
प. जलयर-तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-ओरालियसरीरे
भंते! किं संठाण संठिए पण्णते? उ. गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते,तं जहा
१ समचउरंसे जाव ६ हुंडे। एवं (२-३)पज्जत्तापज्जत्ताण वि।
उ. गौतम ! वह छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है, यथा
१ समचतुरस्रसंस्थान यावत् ६ हुंडक संस्थान। इसी प्रकार इनके (२) पर्याप्तक (३) अपर्याप्तक के विषय
में भी समझ लेना चाहिए। प्र. (४) भंते ! सम्मूछिम तिर्यञ्च योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक ___ शरीर संस्थान किस प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह हुंडक संस्थान वाला गया है।
इसी प्रकार इनके (५) पर्याप्तक, (६) अपर्याप्तक का भी
समझना चाहिए। प्र. (७) भंते ! गर्भज तिर्यञ्च योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर
का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है, यथा
१ समचतुरस्रसंस्थान यावत् ६ हुंडक संस्थान। इसी प्रकार इनके (८) पर्याप्तक, (९) अपर्याप्तक का भी समझना चाहिए। इस प्रकार औधिक तिर्यञ्च योनिकों के ये नौ आलापक
समझने चाहिए। प्र. (१) भंते ! जलचर तिर्यञ्च योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर
का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है, यथा
१. समचतुरस्रसंस्थान यावत् ६. हुंडक संस्थान। इसी प्रकार इनके (२) पर्याप्तक (३) अपर्याप्तक के भी संस्थान समझने चाहिए। (४) सम्मूछिम जलचरों के औदारिक शरीर हुंडक संस्थान वाले हैं। उनके (५) पर्याप्तक , (६) अपर्याप्तकों का संस्थान भी इसी प्रकार है। (७) गर्भज जलचर छहों प्रकार के संस्थान वाले हैं। इसी प्रकार इनके (८) पर्याप्तक, (९) अपर्याप्तक भी समझने चाहिए। इसी प्रकार स्थलचर के नौ सूत्र भी पूर्वोक्त प्रकार से समझ लेने चाहिए। इसी प्रकार चतुष्पद स्थलचरों, उरपरिसर्प स्थलचरों एवं भुजपरिसर्पस्थलचरों के औदारिक शरीर संस्थान भी समझने चाहिए। इसी प्रकार खेचरों के भी नौ सूत्र समझने चाहिए। विशेष-सम्मूछिम सर्वत्र हुंडकसंस्थान वाले कहने चाहिए। शेष
सामान्य गर्भज आदि के शरीर तो छहों संस्थानों वाले होते हैं। प्र. भंते ! मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर का संस्थान किस
प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है, यथा
१ समचतुरन यावत् ६ हुंडक संस्थान।
(४) सम्मुच्छिमजलयरा हुंडसंठाणसंठिया।
एएसिं चेव (५-६) पज्जत्तापज्जत्तया वि एवं चेव।
(७) गब्भवक्कंतियजलयरा छव्विहसंठाण संठिया। एवं (८-९) पज्जत्तापज्जत्तया वि।
एवं थलयराण वि णव सुत्ताणि।
एवं चउप्पय-थलयराण वि उरपरिसप्प-थलयराण वि भुयपरिसप्प-थलयराण वि।
एवं खहयराण विणव सुत्तणि. णवर-सव्वत्थ सम्मुच्छिमा हुंडसंठाणसंठिया५
भाणियव्वा, इयरे छसु वि।६ प. मणुस्स पंचेंदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! किं संठाण
संठिए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते,तं जहा
१ समचउरसे जाव ६ हुंडे।
१. जीवा. पडि.१,सु.३५ २. जीवा. पडि.१,सु.३७
३. जीवा. पडि.१,सु.३५ ४. जीवा.पडि.१, सु.३८
५. जीवा. पडि.१, सु.३६ ६. जीवा. पडि.१,सु.३९