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१.बद्धेल्लगाय,२, मुक्केल्लगाय। तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखेज्जइभागो। तासि णं सेढीणं विक्वंभसूई असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ असंखेज्जाइं सेढि वग्गमूलाई।
बेइंदियाणं ओरालियसरीरेहिं बद्धेल्लगेहिं पयर अवहीरंति। असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहि कालओ,
खेत्तओ अंगुलपयरस्स आवलियाए य असंखेज्जइभागपलिभागेणं। तत्थ णं जे ते मुक्केलगा ते जहा ओहिया ओरालिया मुक्केल्लया। वेउब्बिया आहारगा य बद्धेल्लया णस्थि, मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया मुक्केल्लया।२
द्रव्यानुयोग-(१) १. बद्ध, २. मुक्त। उनमें जो बद्ध औदारिक शरीर हैं, वे असंख्यात हैं। कालतः-वे असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्रतः-असंख्यात श्रेणी प्रमाण हैं और वे श्रेणियां प्रतर के असंख्यातवां भाग है। उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची असंख्यात कोटाकोटी योजनप्रमाण है। अथवा असंख्यात श्रेणी वर्ग-मूल के समान होती हैं। द्वीन्द्रियों के बद्ध औदारिक शरीरों से प्रतर अपहृत किया जाता है। काल की अपेक्षा से-असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों से अपहृत होता है। क्षेत्र की अपेक्षा से-अंगुल-मात्र प्रतर और आवलिका के असंख्यात भाग-प्रतिभाग-प्रमाण खण्ड से अपहृत होता है। उनमें जो मुक्त औदारिक शरीर हैं, उनके विषय में औधिक मुक्त औदारिक शरीरों के समान कहना चाहिए। इनके वैक्रिय शरीर और आहारक शरीर बद्ध नहीं होते। मुक्त वैक्रिय और आहारक शरीरों का कथन औधिक मुक्त
औदारिक शरीरों के समान करना चाहिए। इनके बद्ध-मुक्त तैजस्-कार्मण शरीरों के विषय में इन्हीं के औधिक औदारिक शरीरों के समान कहना चाहिए। इसी प्रकार चतुरिन्द्रियों पर्यंत कहना चाहिए। दं. २०. पंचेन्द्रिय तियच योनिकों के शरीरों का कथन इसी प्रकार है। विशेष-इनके बद्ध-मुक्त वैक्रिय शरीरों के विषय में यह
विशेषता हैप्र. भंते ! पंचेन्द्रिय-तिर्यंञ्चयोनिकों के कितने वैक्रिय शरीर कहे
गए हैं? उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. बद्ध, २. मुक्त। उनमें जो बद्ध वैक्रिय शरीर हैं, वे असुरकुमारों के समान असंख्यात कहने चाहिए। विशेष-उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची अंगुल के प्रथम वर्गमूल का असंख्यातवां भाग समझना चाहिए। इनके मुक्त वैक्रिय शरीरों का कथन औधिक मुक्त
वैक्रियशरीरों के समान करना चाहिए। प्र. दं. २१. भंते ! मनुष्यों के औदारिक शरीर कितने कहे
गए हैं? उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१.बद्ध,२.मुक्ता
तेया-कम्मगा जहा एएसिंचेव ओहिया ओरालिया।
एवं जाव चउरिंदिया। दं.२०.पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं एवं चेव।
णवर-वेउब्वियसरीरएसु इमो विसेसो
प. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते !
केवइया वेउब्वियसरीरया पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
१.बद्धेल्लया य,२, मुक्केल्लया य। तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा जहा असुरकुमाराणं। णवरं-तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलस्स असंखेज्जइभागो। मुक्केल्लया तहेवा
प. दं. २१. मणुस्साणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा
पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
१. बद्धेल्लया य, २, मुक्केल्लया य।
१. २. ३.
अणु. कालदारे,सु. ४२१/१ अणु. कालदारे,सु. ४२१/१ अणु. कालदारे,सु.४२१/१
४. ५.
अणु. कालदारे,सु.४२१/२ अणु. कालदारे, सु. ४२२/१-२