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द्रव्यानुयोग-(१)
( ४२२ ।
एवं सुहुमाण वि पज्जत्तापज्जत्ताणं।
बायराणं पज्जत्तापज्जत्ताण विएवं चेव।
एसो णवओ भेदो। जहा पुढविक्काइयाणं तहा आउक्काइयाण वि तेउक्काइयाण विवाउक्काइयाण वि।
प. वणस्सइकाइय-ओरालियसरीरस्स णं भंते ! के महालिया
सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं
साइरेगंजोयणसहस्स। अपज्जत्तयाणं जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं। पज्जत्तयाणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं साइरेगंजोयणसहस्सं। बायराणं जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं साइरेगंजोयणसहस्स। पज्जत्तयाण वि एवं चेव। अपज्जत्तयाणं जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभाग। सुहमाणं पज्जत्तापज्जत्ताण य तिण्ह वि जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभाग
-पण्ण.प.२१ सू. १५०२-१५०६ प. बेइंदियाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं
बारस जोयणाई६,
इसी प्रकार सूक्ष्म पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक की भी समझनी चाहिए। बादर पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक की भी इसी प्रकार समझनी चाहिए। इस प्रकार ये नौ भेद (आलापक) कहने चाहिये। जिस प्रकार पृथ्वीकायिकों के कहे उसी प्रकार अकायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवों के भी नौ नौ आलापक
कहने चाहिए। प्र. भन्ते ! वनस्पतिकायिकों के औदारिक शरीर की अवगाहना
कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट
कुछ अधिक हजार योजन की है। अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की है। पर्याप्तकों की जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की, उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार योजन की है। बादर की जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की, उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार योजन की है। पर्याप्तकों की भी इसी प्रकार समझनी चाहिए। अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की समझनी चाहिए। सूक्ष्म पर्याप्तक और अपर्याप्तक, इन तीनों की जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की है।
प्र. भन्ते ! द्वीन्द्रिय जीवों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ? उ. गौतम ! द्वीन्द्रिय जीवों की जघन्य अवगाहना अंगुल के
असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अवगाहना बारह योजन प्रमाण
अपज्जत्तयाणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, अपर्याप्त की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभाग,
असंख्यातवें भाग प्रमाण है। पज्जत्तयाणं जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं पर्याप्तक की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग बारस जोयणाई।
और उत्कृष्ट अवगाहना बारह योजन प्रमाण है। प. तेइंदियाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? प्र. भन्ते ! त्रीन्द्रिय जीवों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं उ. गौतम ! सामान्य त्रीन्द्रिय जीवों की जघन्य अवगाहना अंगुल तिण्णि गाउयाइं,
के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट अवगाहना तीन
गव्यूति प्रमाण है। अपज्जत्तयाणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग,
अपर्याप्तक की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं,
असंख्यातवें भाग प्रमाण है। पज्जत्तयाणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, पर्याप्तक की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाईं।
की और उत्कृष्ट अवगाहना तीन गव्यूति प्रमाण है। प. चउरिंदियाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? प्र. भन्ते ! चतुरिन्द्रिय जीवों की शरीरावगाहना कितनी कही
गई है? १. (क) अणु.कालदारे,सु.३४९/१ ३. (क) जीवा. पडि.१,सु.२१
५. अणु.कालदारे,सु.३४९ (ख) जीवा. पडि.१,सु.१४
(ख) विया.स.२४, उ. १२,सु.१७ ६. जीवा. पडि.१ सु.२८ २. जीवा. पडि.१,सु.१६,१७,२४,२५ ४. ठाणं अ.१० सु.७२८
७. जीवा. पडि.१ सु.२९