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शरीर अध्ययन
उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण
जोयणसहस्सं। प. अपज्जत्तयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा
पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण
अंगुलस्स असंखेज्जइभाग। प. पज्जत्तयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता?
उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण
जोयणसहस्सं। प. भुयपरिसप्प-थलयराणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा
पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण
गाउयपुहत्तं। प. सम्मुच्छिम-भुयपरिसप्प-थलयराणं भंते ! के महालिया
सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण
धणुपुहत्तं। प. अपज्जत्तय-सम्मुच्छिम-भुयपरिसप्प-थलयराणं भंते ! के
महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण
अंगुलस्स असंखेज्जइभाग। । प. पज्जत्तयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता?
- ४२५ ) उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवां भाग और
उत्कृष्ट अवगाहना एक सहस्र योजन की है। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक उरपरिसर्प स्थलचर
तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और
उत्कृष्ट भी असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। प्र. भन्ते ! पर्याप्तक गर्भव्युत्क्रान्तिक उरपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय
तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और
उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण है। प्र. भन्ते ! भुज परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की
शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और
उत्कृष्ट अवगाहना गाउपृथक्त्व है। प्र. भन्ते ! सम्मूर्छिम भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय
तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और
उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व की है। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त सम्मूर्छिम भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय
तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और
उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग की है। प्र. भन्ते ! पर्याप्त सम्मूर्छिम भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय
तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट
धनुषपृथक्त्व की है। प्र. भन्ते ! गर्भव्युत्क्रान्तिक भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय
तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट
गाउपृथक्त्व है। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक भुजपरिसर्प स्थलचर
पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही
उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण
धणुपुहत्तं। प. गब्भवतिय-भुयपरिसप्प-थलयराणं भंते ! के महालिया
सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण
गाउयपुहत्तं। प. अपज्जत्तयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा
पण्णत्ता?
अंग
- उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण
अंगुलस्स असंखेज्जइभाग। प. पज्जत्तय-गब्भवक्कंतिय-भुयपरिसप्प-थलयराणं भंते !
के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण ___गाउयपुहत्तं। प. खहयर-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते ! के महालिया
सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण
धणुपुहुत्तं । १. जीवा. पडि.१ सु.३९ २. जीवा. पडि.१सु.३६
उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और
उत्कृष्ट भी असंख्यातवें भाग है। प्र. भन्ते ! पर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय
तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और
उत्कृष्ट गाउपृथक्त्व प्रमाण है। प्र. भन्ते ! खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की शरीरावगाहना
कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और
उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व प्रमाण है।
३. जीवा.पडि.१सु.३९ ४. जीवा.पडि.१ सु.३६