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शरीर अध्ययन
सिद्धाणं अनंतभागो।"
प. पुढविकाइयाणं भंते ! केवइया वेउब्वियसरीरया पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. बद्धेल्लया य, २, मुक्केल्लया य ।
तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं णत्थि ।
तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते णं जहा एएसिं चेव ओरालिया भणिया तहेव भाणियव्वा । २
एवं आहारगसरीरा वि ॥ ३
तेवा कम्मगा जहा एएस चे ओरालिया ।*
एवं आउक्काइया ते उक्काइया वि
प. चाउक्काइयाणं भंते! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. बद्धेल्लया य, २, मुक्केल्लया य। दुविहा वि जहा पुढविकाइयाणं ओरालिया । ६
प. वाउक्काइयाणं भंते! पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. बद्धेल्लया य, २, मुक्केल्लया य । तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते नं असंखेज्जा, समए समए अवहीरमाणा अवहौरमाणा पलिओचमस्स असंखेज्जइ भागमेत्तेण कालेणं अवहीरति णो चैव णं अवहिया सिया ।
केवइया वेउव्वियसरीरा
मुक्केल्लया जहा पुढविक्काइयाणं ।
आहारय-तेया-कम्मा जहा पुढविकाइयाणं तहा भाणियव्या ।
फइकाइया जहा पुढविकाइयाणं ।
णवरं - तेया- कम्मगा जहा ओहिया तेया- कम्मगा । ७
१. अणु. कालदारे, सु. ४२०/१
२. अणु. कालदारे, सु. ४२०/२
३. अणु. कालदारे, सु. ४२०/३
४. अणु. कालदारे, सु. ४२०/४
प. बेइंदियाणं भंते ! पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
केवइया ओरालियसरीरा
सिद्धों के अनन्त भाग है।
प्र. भते! पृथ्वीकायिकों के वैकिय शरीर कितने कहे गए हैं ?
उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, १. बद्ध, २. मुक्त।
उनमें जो बद्ध हैं, वे इनके नहीं होते ।
उनमें जो मुक्त हैं, उनके विषय में जैसे इन्हीं के औदारिक शरीरों के विषय में कहा गया है, वैसे ही कहना चाहिए। इनके आहारक शरीरों का कथन इन्हीं के वैक्रियशरीरों के समान समझना चाहिए।
यथा
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इनके बद्ध-मुक्त तैजसू कार्मणशरीरों की प्ररूपणा औदारिक शरीरों के समान करनी चाहिए।
इसी प्रकार अकायिकों और तैजस्कायिकों के बद्ध-मुक्त सभी शरीरों का कथन समझना चाहिए।
प्र. भंते! वायुकायिक जीवों के औदारिक शरीर कितने कहे गए हैं ?
उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. बद्ध, २. मुक्त।
इन दोनों का कथन पृथ्वीकायिकों के औवारिक शरीरों के समान है।
प्र. भंते! वायुकायिकों के वैक्रिय शरीर कितने कहे गए हैं ?
उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. बद्ध, २. मुक्त।
उनमें जो बद्ध है, ये असंख्यात है।
उन असंख्यात शरीरों में से समय-समय में एक-एक शरीर का यदि अपहरण किया जाए तो पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण काल में उनका अपहरण होता है, किन्तु कभी अपहरण किया नहीं गया है।
उनके मुक्त शरीरों की प्ररूपणा पृथ्वीकायिकों के मुक्त वैक्रिय शरीरों के समान समझनी चाहिए।
इनके बद्ध-मुक्त आहारक, तेजस् और कार्मण शरीरों की प्ररूपणा पृथ्वीकायिकों की तरह कहनी चाहिए। वनस्पतिकायिकों के बद्ध-मुक्त औदारिकादि शरीरों की प्ररूपणा पृथ्वीकायिकों की तरह समझनी चाहिए।
विशेष- इनके तैजस् और कार्मण शरीरों का कथन औधिक तैजस्- कार्मण-शरीरों के समान करना चाहिए।
प्र. भंते! द्वीन्द्रिय जीवों के औदारिक शरीर कितने कहे गए हैं ?
उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
५.
अणु. कालदारे, सु. ४२०/२
६. अणु. कालदारे, सु. ४२०/३
७. अणु. कालदारे, सु. ४२०/३