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शरीर अध्ययन
तत्थ णं जे ते बद्धेला ते णं अनंता,
अनंताहिं उस्सप्पिणि ओसपिणीहिं अवहीरति कालओ,
खेत्तओ अणंता लोगा,
दव्वओ सिद्धेहिंतो अनंतगुणा सव्वजीवाणंतभागूणा ।
तत्थणं जे ते मुक्केल्लया ते णं अनंता, अताहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ,
खेत्तओ अनंता लोगा,
दव्यओ सव्वजीवेहिंतो अनंतगुणा, जीववग्गस्स अनंतभागो।"
एवं कम्मगसरीरा विभाणियव्वा ।२
-पण्ण. प. १२, सु. ९१०
१९. चउवीसदंडएसु बद्ध-मुक्कसरीरपरूवणं
प. दं. १ णेरइयाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. बद्धेल्या य २. मुक्केल्लया य तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं णत्थि । तत्थणं जे ते मुक्केलया ते णं अणंता, जहा ओरालिय मुक्केल्लया तहा भाणियव्वा । ३
प. पेरइयाणं भंते! केवइया बेडब्बियसरीरा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. बल्लयाय २. मुक्केल्लया था। तत्थणं जे ते बद्धेल्या ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सपिणि ओसपिणीहिं अवहीरति कालओ,
खेतओ असंखेज्जाओ सेठीओ परस्स असंखेज्जइभागो ।
तासि सेढीण विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलं बीयवग्गमूलपडुप्पणं,
अडवणं अंगुलबियवग्गमूल घणप्यमाणमेत्ताओ सेठीओ।
तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा ते णं जहा ओरालियस मुक्केल्लया तहा भाणियव्वा । ४
प. णेरइयाणं भंते ! केवइया आहारगसरीरा पण्णत्ता ? उ. गोवमा ! दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा
१. बल्ला २, मुक्केल्लया थ
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१. अणु. कालदारे, सु. ४१६
२. अणु. कालदारे, सु. ४१७
उनमें जो बद्ध है, वे अनन्त है,
कालतः - अनन्त उत्सर्पिणियों अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं।
क्षेत्रतः वे अनन्त लोकप्रमाण हैं,
द्रव्यतः- सिद्धों से अनन्तगुणे तथा सर्वजीवों से अनन्तवें भाग कम है।
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उनमें जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं,
कालतः वे अनन्त उत्सर्पिणियों अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं,
क्षेत्र:- अनन्तलोकप्रमाण हैं।
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द्रव्यतः - वे समस्त जीवों से अनन्तगुणे हैं।
जीववर्ग के अनन्तवें भाग हैं।
इसी प्रकार कार्मण शरीर के विषय में भी कहना चाहिए।
१९. चौबीस दण्डकों में बद्ध-मुक्त शरीरों का प्ररूपण
प्र. ६.१ भंते नैरयिकों के कितने औवारिक शरीर कहे गए हैं?
उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. बद्ध, २. मुक्त
उनमें से बद्ध औदारिक शरीर उनके नहीं होते हैं।
जो मुक्त औदारिक शरीर हैं, वे अनन्त होते हैं।
जैसे औवारिक मुक्त शरीरों के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए।
प्र. भंते नैरयिकों के वैक्रिय शरीर कितने कहे गए हैं ?
उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. बद्ध, २. मुक्त
उनमें जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं।
कालतः वे असंख्यात उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी कालों में अपहृत होते हैं।
क्षेत्रतः वे असंख्यात श्रेणी प्रमाण हैं और प्रतर का असंख्यातवां भाग है।
उन श्रेणियों की विष्कम्भ सूची अंगुल प्रमाण आकाश प्रदेश के प्रथम वर्गमूल को द्वितीय वर्गमूल से गुणा करने पर जितने आकाश प्रदेश होते हैं उतने प्रदेशों की जाननी चाहिए।
अथवा अंगुल प्रमाण आकाश प्रदेशों के द्वितीय वर्गमूल के घन प्रमाण जितनी जाननी चाहिए।
तथा जो मुक्त वैक्रिय शरीर हैं, उनके परिमाण के विषय में मुक्त औदारिक शरीर के समान कहना चाहिए।
प्र. भंते! नैरयिकों के आहारक शरीर कितने कहे गए हैं ? उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं,
यथा
१. बद्ध, २. मुक्त
३. अणु. कालदारे, सु. ४१८/१
४. अणु कालदारे, सु. ४१८/२