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शरीर अध्ययन
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एवं वाउक्काइयवज्जं जाव चउरिंदियाणं।
प. वाउक्काइयाणं भंते ! कइ सरीरया पण्णत्ता? उ. गोयमा !चत्तारि सरीरया पण्णत्ता,तं जहा
१. ओरालिए, २. वेउव्विए, ३. तेयए,
४. कम्मएरे। दं.२०.एवं पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाण वि३ ।
इसी प्रकार वायुकायिकों को छोड़कर चतुरिन्द्रियों पर्यन्त
शरीरों के विषय में जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! वायुकायिकों के कितने शरीर कहे गए हैं ? उ. गौतम ! उनके चार शरीर कहे गए हैं, यथा
१. औदारिक, २. वैक्रिय, ३. तैजस्,
४. कार्मण। दं. २०. इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के विषय में भी
समझना चाहिए। प्र. दं.२१. भन्ते ! मनुष्यों के कितने शरीर कहे गए हैं ? उ. गौतम ! मनुष्यों के पांच शरीर कहे गए हैं, यथा
१. औदारिक, २. वैक्रिय, ३. आहारक, ४. तैजस्, ५. कार्मण। दं. २२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के शरीरों का कथन नारकों की तरह करना चाहिए।
प. दं.२१. मणूसाणं भंते ! कइ सरीरया पण्णत्ता? उ. गोयमा !पंच सरीरया पण्णत्ता,तं जहा
१. ओरालिए, २. वेउब्बिए, ३. आहारए, ४. तेयए, ५.कम्मए। दं. २२-२४. वाणमंतर जोइसिय वेमाणियाणं जहा णारगाणं।
-पण्ण. प.१२, सु. ९०२-९०९ १७. चउगईसु बाहिरब्भंतर विवक्खया सरीरस्सभेया
णेरइयाणं दो सरीरगा पण्णत्ता,तं जहा१.अभंतरए चेव २. बाहिरए चेव। अब्भंतरए कम्मए, बाहिरए वेउव्विए। एवं देवाणं भाणियव्वं। पुढविकाइयाणं दो सरीरगा पण्णत्ता,तं जहा१.अब्भंतरए चेव २. बाहिरए चेव। अब्भंतरए कम्मए, बाहिरए ओरालिए। एवं आउकाइयाणं जाव वणस्सइकाइयाणं। बेइंदियाणं दो सरीरगा पण्णत्ता,तं जहा१.अभंतरए चेव,२. बाहिरए चेव। अब्भंतरए कम्मए, अट्ठिमंस-सोणियबद्धे बाहिरए ओरालिए। एवं जाव चउरिदियाणं। पंचेंदिय तिरिक्खजोणियाणं दो सरीरगा पण्णत्ता,तं जहा१.अब्भंतरए चेव, २. बाहिरए चेव। अब्भंतरए कम्मए अट्ठिमंस-सोणिय-हारू-छिराबद्धे, बाहिरए ओरालिए। मणुस्साण वि एवं चेव। ___-ठाणं.अ.२, उ.१,सु.६५/१
१७. चार गतियों में बाह्याभ्यन्तर विवक्षा से शरीरों के भेद
नैरयिकों के दो शरीर कहे गए हैं, यथा१.आभ्यन्तर और २. बाह्य। आभ्यन्तर कार्मण, बाह्य वैक्रिय शरीर। इसी प्रकार देवों के शरीरों का कथन करना चाहिए। पृथ्वीकायिकों के दो शरीर कहे गए हैं, यथा१. आभ्यन्तर और २. बाह्य। आभ्यन्तर कार्मण, बाह्य औदारिक शरीर। इसी प्रकार अप्कायिकों से वनस्पतिकायिकों पर्यन्त कहना चाहिए। द्वीन्द्रियों के दो शरीर कहे गए हैं, यथा१. आभ्यन्तर और २. बाह्य। आभ्यन्तर कार्मण शरीर, बाह्य अस्थि, मांस, शोणित युक्त
औदारिक शरीर। इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जानना चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के दो शरीर कहे गए हैं, यथा१. आभ्यन्तर और २. बाह्य। आभ्यन्तर कार्मण शरीर, बाह्य-अस्थि, मांस, शोणित स्नायु शिरा युक्त औदारिक शरीर। इसी प्रकार मनुष्यों के शरीर के लिए कहना चाहिए।
१. (क) अणु.कालदारे, सु. ४०८-९
(ख) जीवा. पडि.१,सु.२१ (ग) जीवा. पडि.१,सु.२५ (घ) जीवा.पडि.१,सु.२८ (ङ) जीवा. पडि.१, सु.२९ (च) ठाणं.अ.३,उ.४,सु.२०७
(छ) विया.स.१,उ.५, सु.३०-३२ २. (क) अणु. कालदारे, सु.४०८
(ख) जीवा. पडि. १, सु. २६ (ये चार शरीर बादर वायुकाय के हैं सूक्ष्म वायुकाय के तीन ही हैं१.औदारिक २.तेजस्,३.कार्मण।) (ग) ठाणं.अ.३,उ.४,सु.२०७.
(घ) विया.स.१,उ.५,सु.३०-३२ ३. (क) अणु.कालदारे,सु.४१०
(ख) जीवा. पडि.१, सु.३५ (ग) जीवा.पडि.१,सु.३८ (घ) विया.स.१,उ.५,सु.३४
४. (क) अणु. कालदारे, सु. ४११
(ख) जीवा. पडि.१,सु.४१ (ग) विया.स.१,उ.५,सु.३५ (क) अणु. कालदारे सु.४१२ (ख) ठाणं अ.३,उ.४,सु.२०७ (ग) विया.स.१.उ.५,सु.३६ (घ) जीवा. पडि.१,सु. ४२