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३१९ मध्यम परिषदा की देवियों की स्थिति कुछ कम अर्ध पल्योपम की कही गई है। बाह्य परिषदा की देवियों की स्थिति कुछ अधिक चतुर्थ भाग
पल्योपम की कही गई है। ६१. सुवर्णकुमार देवों की स्थितिप्र. भन्ते ! सुवर्णकुमार देवों की स्थिति कितने काल की कही
गई है? उ. गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की,
उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त सुवर्णकुमार देवों की स्थिति कितने काल की
कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त सुवर्णकुमार देवों की स्थिति कितने काल की
कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम देशोन दो पल्योपम की।
स्थिति अध्ययन
मज्झिमियाए परिसाए देवीणं देसूणं अद्धपलिओवमं ठिई पण्णत्ता। बाहिरियाए परिसाए देवीणं साइरेगं चउभागपलिओवमं
ठिई पण्णत्ता। -जीवा. पडि. ३, उ.२, सु. १२० ६१. सुवण्णकुमारदेवाणं ठिईप. सुवण्णकुमाराणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई
पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण दस वाससहस्साइं,
उक्कोसेण दो पलिओवमाइं देसूणाई। प. अपज्जत्तयाणं भंते ! सुवण्णकुमाराणं देवाणं केवइयं
कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तयाणं भंते ! सुवण्णकुमाराणं देवाणं केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण दस वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेण दो पलिओवमाई देसूणाई अंतोमुत्तूणाई।
-पण्ण.प.४,सु.३५१ ६२. सुवण्णकुमारीणं देवीणं ठिईप. सुवण्णकुमारीणं भंते ! देवीणं केवइयं कालं ठिई
पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण दस वाससहस्साई,
उक्कोसेण देसूणं पलिओवमाई। प. अपज्जत्तियाणं भंते ! सुवण्णकुमारीणं देवीणं केवइयं
कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं। प. पज्जत्तियाणं भंते ! सुवण्णकुमारीणं देवीणं केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेण देसूणं पलिओवमं अंतोमुत्तूणाई।
-पण्ण.प.४,सु.३५२ ६३. सेस भवणवासी देवाणं देवीण य ठिई
एवं एएणं अभिलावेणं ओहिय-अपज्जत्त-पज्जत्तसुत्तत्तय देवाण य देवीण य णेयव्यं जाव थणियकुमाराणं जहा नागकुमाराण।
-पण्ण. प.४,सु.३५३ ६४. असुरिंदवज्जिय अत्थेगइय भवणवासीदेवाणं ठिई
असुरकुमारिंदवज्जियाणं भोमिज्जाणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.१.सु.३१
६२. सुवर्णकुमारी देवियों की स्थिति
प्र. भन्ते ! सुवर्णकुमारी देवियों की स्थिति कितने काल की कही
उ. गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की,
उत्कृष्ट देशोन पल्योपम की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त सुवर्णकुमारी देवियों की स्थिति कितने काल
की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त सुवर्णकुमारी देवियों की स्थिति कितने काल
की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम देशोन पल्योपम की।
६३. शेष भवनवासी देवों और देवियों की स्थिति
इस प्रकार इसी अभिलाप से औधिक, अपर्याप्त और पर्याप्तक के तीन-तीन सूत्र भवनवासी देवों और देवियों के विषय में स्तनितकुमारों पर्यन्त नागकुमारों के कथन के समान समझ लेना
चाहिए। ६४. असुरेन्द्र वर्जित कतिपय भवनवासी देवों की स्थिति
असुरकुमारेन्द्र को छोड़कर कतिपय भौमेय (भवनवासी) देवों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है।
१. (क) सम.सम.१० सु.१५ (ज.)
(ख) सम.सम.२ सु.११(उ.)
(ग) ठाणं.अ२ उ.४ सु. १२४(१) २. (क) अणु.कालदारे सु.३८४/३
(ख) जीवा. पडि.२,सु.४७(३)
(ग) असुरिंदवज्जियाणं भवणवासिणं देवाणं उक्कोसेणं देसूणाई दो
पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -ठाणं अ.२ उ.४,सु.१२४/१ (घ) विया.स.१,उ.१,सु.६/४/११ (ङ) सम.सम.२,सु.११