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आहार अध्ययन
१. तत्व णं जे ते अणुवउत्ता ते ण जाणति, ण पासंति, आहारैति
२. तत्थ णं जे ते उवउत्ता ते जाणंति, पासंति, आहारेंति,
से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ"अत्येगइया ण जाणंति न पासति. आहारेति,
अत्येगइया जाणंति, पासंति, आहारेति ।" द. २२-२३. बाणमंतर जोइसिया जहा णेरड्या ।
प. दं. २४. वैमाणिया णं भंते! ते णिज्जरापोग्गले किं जाणंति, पासंति, आहारेंति ? उदाहु ण जाणंति, ण पासंति, ण आहारेंति ?
उ. गोयमा ! अत्येगइया जाणति, पासति, आहारेति, अत्गइया ण जाणंति, ण पासंति, आहारेंति ।
प से केणट्ठणं भंते! एवं वुच्चइ"अत्येगइया जाणति, पासंति, आहारेति,
अत्येगइया ण जाणंति ण पासंति, आहारेति । उ. गोयमा ! वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१. माईमिच्छद्दिट्ठिउववण्णगा य,
२. अमाइसम्मउिबवण्णगाथ।
१. तत्थ णं जे ते माईमिच्छद्दिङिउबवण्णगा ते णं ण जाणंति ण पासंति, आहारेति ।
२. तत्थ णं जे ते अमाईसम्महिविवण्णागा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. अनंतरोववण्णगाव, २. परंपरोववरणगाव ।
१. तत्थ णं जे ते अनंतराबवण्णमा ते णं ण जाणति, न पासति आहारेति ।
२. तत्थ णं जे ते परंपरोचवण्णना ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. पज्जत्तगा य, २. अपज्जत्तगा य ।
१. तत्थ णं जे ते अपज्जत्तगा ते णं ण जाणंति, ण पासंति, आहारैति . ।
२. तत्थ णं जे ते पज्जत्तगा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. उवउत्ता य, २. अणुवउत्ता य।
१. तत्थ णं जे ते अणुवउत्ता ते णं ण जाणंति, ण पासंति, आहारेति,
२. तत्थ णं जे ते उवउत्ता ते णं जाणंति, पासंति, आहारेंति ।
से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
"अत्येगझ्या ण जाणति, ण पासंति, आहारैति,
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१. उनमें से जो उपयोगअयुक्त हैं, वे नहीं जानते, नहीं देखते किन्तु आहार करते हैं।
२. उनमें से जो उपयोग युक्त हैं वे जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
“कोई-कोई मनुष्य नहीं जानते, नहीं देखते (किन्तु ) आहार करते हैं।
कोई-कोई मनुष्य जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं। दं. २२-२३. वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों का कथन नैरयिकों के समान जानना चाहिए।
प्र. दं. २४. भंते ! क्या वैमानिक उन निर्जरा- पुद्गलों को जानते-देखते हैं और आहार करते हैं, अथवा उन्हें नहीं जानते, नहीं देखते और न ही आहार करते हैं ?
उ. गौतम ! कोई-कोई उन निर्जरा- पुद्गलों को जानते-देखते हैं। और आहार करते हैं, कोई कोई नहीं जानते, नहीं देखते किन्तु आहार करते हैं।
प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि"कोई-कोई उनको जानते हैं देखते हैं और (उनका) आहार करते हैं।
कोई-कोई नहीं जानते नहीं देखते किन्तु आहार करते हैं ?" उ. गौतम ! वैमानिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. मायी - मिथ्यादृष्टि - उपपन्नक,
२. अगायी- सम्यग्दृष्टि-उपपन्नक
१. उनमें से जो मायी मिध्यादृष्टि उपपन्नक होते हैं, वे नहीं जानते नहीं देखते किन्तु आहार करते हैं।
"
२. उनमें से जो अगायी- सम्यग्दृष्टि उपपन्नक है, वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. अनन्तरोपपन्नक २. परम्परोपपन्नक |
१. उनमें से जो अनन्तरोपपन्नक है, ये नहीं जानते नहीं देखते किन्तु आहार करते हैं।
२. उनमें से जो परम्परोपपन्नक हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. पर्याप्तके,
२. अपर्याप्तक ।
१. उनमें से जो अपर्याप्तक हैं, वे नहीं जानते, नहीं देखते किन्तु आहार करते हैं।
२. उनमें जो पर्याप्तक हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. उपयोग मुक्त, २. उपयोग अयुक्त
१. जो उपयोग अयुक्त हैं, वे नहीं जानते, नहीं देखते किन्तु आहार करते हैं।
२. उनमें से जो उपयोग युक्त हैं, वे जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"कोई-कोई नहीं जानते, नहीं देखते, किन्तु आहार करते हैं,