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३९२ सेवमायाणह, सेवमायाणित्ता, आहारगुत्ते समिए सदा जए त्ति बेमि।
-सूय. सु. २, अ.३, सु.७४६ ७४७ ३४. वेमाणिया देवाणं आहारत्ताए परिणमिय पोग्गलाणं परूवणं-
प. सोहम्मीसाण देवाणं केरिसया पोग्गला आहारत्ताए
परिणमंति? उ. गोयमा ! जे पोग्गला इट्ठा कंता मणुण्णा मणामा एएसिं आहारत्ताए परिणमंति जाव अणुत्तरोववाइया।
-जीवा. पडि.३, सु.२०१(ई) ३५. भोयणपरिणामस्स छव्विहत्तं
छबिहे भोयणपरिणामे पण्णत्ते,तं जहा१. मणुण्णे, २. रसिए, ३. पीणणिज्जे, ४. बिहणिज्जे, ५. मयणिज्जे, ६. दप्पणिज्जे।
-ठाणं अ.६,सु.५३३ ३६. आहारगाणाहारगाणं कायट्ठिई परूवणं
प. आहारगेणं भंते ! आहारगेत्ति कालओ केवचिरं होइ?
द्रव्यानुयोग-(१) "हे शिष्यो ! ऐसा ही जानो और जान करके सदा आहारगुप्त समितियुक्त एवं संयमपालन में सदा यलशील बनो ऐसा मैं
कहता हूँ।" ३४. वैमानिक देवों के आहार के रूप में परिणत पुद्गलों का
प्ररूपणप्र. भंते ! सौधर्म ईशान देवों के आहार के रूप में कैसे पुद्गल
परिणत होते हैं ? उ. गौतम ! जो पुद्गल इष्ट, कांत, प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर होते
हैं वे अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त आहार के रूप में परिणत
होते हैं। ३५.भोजन परिणाम के छह प्रकार
भोजन का परिणाम छह प्रकार का कहा गया है, यथा-. १. मनोज्ञ-मन को प्रसन्न करने वाला। २. रसिक-रसयुक्त। ३. प्रीणनीय-रसादि सप्त धातुओं को समान करने वाला। ४. बृहणीय-धातुओं को बढ़ाने वाला। ५. मदनीय-काम को बढ़ाने वाला।
६. दर्पणीय-पुष्टिकारक। ३६. आहारक-अनाहारकों की कायस्थिति का प्ररूपणप्र. भन्ते ! आहारक जीव आहारकरूप में कितने काल तक
रहता है? उ. गौतम ! आहारक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१.छद्मस्थ-आहारक, २. केवली-आहारक। प्र. भन्ते ! छद्मस्थ-आहारक, छद्मस्थ-आहारक के रूप में
कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य दो समय कम लघुभव ग्रहण जितने काल तक,
उत्कृष्ट असंख्यात काल तक। (अर्थात) कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों तक तथा क्षेत्रतः अंगुल के
असंख्यातवें भाग प्रमाण समझना चाहिए। प्र. भन्ते ! केवली-आहारक, केवली-आहारक के रूप में कितने
काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक,
उत्कृष्ट देशोन कोटिपूर्व तक रहता है। प्र. भन्ते ! अनाहारकजीव, अनाहारक रूप में कितने काल तक
रहता है? उ. गौतम ! अनाहारक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१.छद्मस्थ-अनाहारक,२. केवली-अनाहारक। प्र. भन्ते ! छदमस्थ-अनाहारक.छदमस्थ-अनाहारक के रूप में
कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय तक,
उत्कृष्ट दो समय तक रहता है। प्र. भन्ते ! केवली-अनाहारक, केवली-अनाहारक के रूप में
कितने काल तक रहता है?
उ. गोयमा !आहारगे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा
१.छउमत्थआहारगे य,२. केवलिआहारगे य। प. छउमत्थाहारगे णं भंते ! छउमत्थाहारगे त्ति कालओ
केवचिरं होइ? . उ. गोयमा !जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं दुसमयऊणं,
उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं असंखेज्जाओ उस्सप्पिणिओसिप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स
असंखेज्जइभाग। प. केवलिआहारगे णं भंते ! केवलिआहारगे त्ति कालओ ____ केवचिरं होइ? उ. गोयमा !जहण्णेणं अंतोमुहत्तं,
उक्कोसेणं देसूणं पुव्वकोडिं। प. अणाहारगे णं भंते ! अणाहारगे त्ति कालओ केवचिरं
होइ?
उ. गोयमा !अणाहारगे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा
१.छउमत्थअणाहारगे य,२.केवलिअणाहारगे य। प. छउमत्थअणाहारगे णं भंते ! छउमत्थअणाहारगे त्ति
कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा !जहण्णेणं एक समयं,
उक्कोसेणं दो समया। प. केवलिअणाहारगे णं भंते ! केवलिअणाहारगे त्ति कालओ
केवचिरं होइ?