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आहार अध्ययन
प. (१) जाई भावओ वणमंताई आहारेति ताई कि एगवण्णाई आहारैति जाय किं पंचवण्णाई आहारेति ?
उ. गोयमा ! ठाणमग्गणं पहुच्च-एगवण्णाई पि आहारैति जाव पंचवण्णाई पि आहारेंति ।
विहाणमग्गणं पडुच्च - कालवण्णाई पि आहारेंति जाव सुविकलाई पि आहारेति ।
प. (२) जाई वण्णओ कालवण्णाई पि आहारैति
ताई किं एगगुणकालाई आहारेति जाव दसगुणकालाई आहारेंति, संखेज्जगुणकालाई असंखेज्जगुणकालाई, अणंतगुणकालाई आहारेंति ?
उ. गोयमा !
एगगुणकालाई पि आहारेंति जाव अनंत गुणकालाई पि आहारेंति ।
(३) एवं जाव सुक्किलाई पि । (४) एवं गंधओ वि, रसओ वि।
(१) जाई भावओ फासमंताई
ताई णो एगफासाई आहारेंति, दुफासाई आहारेंति,
णो तिफासाई आहारेंति,
चउफासाई आहारैति जाब अट्ठफासाई पि आहारैति । विहाणमग्गणं पडुच्च कक्खडाई पि आहारेंति जाव लुकलाई पिआहारैति ।
प. (२) जाई फासओ कक्खडाई आहारेंति,
ताई किं एगगुणकक्खडाई आहात जाव अनंतगुणकक्खडाई आहारेति ?
उ. गोयमा ! एगगुणकक्खडाई पि आहारेति जाब अनंतगुणकक्खडाई पि आहारेति ।
एवं अट्ठ वि फासा भाणियव्वा जाव अनंतगुणलुक्खाई पि आहारेति ।
प. (३) जाई भते ! अनंतगुणलुक्खाई आहारेति,
ताई किं पुट्ठाई आहारेंति, अपुट्ठाई आहारेंति ?
उ. गोयमा ! पुट्ठाई आहारैति, जो अपुट्ठाई आहारेति ।
प. जाई भंते! पुट्ठाई आहारेति,
ताई किं ओगाढाई आहारेंति, अणोगाढाई आहारेंति ?
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प्र. (१) भंते! भाव से (नैरयिक) वर्ण वाले जिन पुद्गलों का आहार करते हैं, क्या वे एक वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं यावत् पांच वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं ? उ. गौतम ! वे स्थानमार्गणा (सामान्य) की अपेक्षा से एक वर्ण वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं यावत् पांच वर्ण वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं।
विधान (भेद) मार्गणा की अपेक्षा से काले वर्ण वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं यावत् शुक्ल (श्वेत) वर्ण वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं।
प्र. (२) वे वर्ण से जिन काले वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं,
क्या वे एक गुण काले पुद्गलों का आहार करते हैं यावत् दस गुण काले, संख्यात गुण काले, असंख्यातगुण काले या अनन्तगुण काले वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं ? उ. गौतम ! वे एक गुण काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं। यावत् अनन्तगुण काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं।
(३) इसी प्रकार शुक्लवर्ण पर्यन्त जानना चाहिए।
(४) इसी प्रकार गन्ध और रस की अपेक्षा से भी पूर्ववत् आलापक कहने चाहिए।
(१) जो भाव से स्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करते हैं, वे न तो एक स्पर्श बाले पुद्गलों का आहार करते हैं,
न दो स्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करते हैं,
न तीन स्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करते हैं, अपितु चतुःस्पर्शी यावत् अष्टस्पर्शी पुद्गलों का आहार करते हैं। विधान (भेद) मार्गणा की अपेक्षा से वे कर्कश यावत् रूक्ष पुद्गलों का भी आहार करते हैं।
प्र. (२) भन्ते ! वे जिन कर्कश स्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करते हैं,
क्या वे एकगुण कर्कश पुद्गलों का आहार करते हैं यावत् अनन्तगुणकर्कश पुद्गलों का आहार करते हैं ?
उ. गौतम वे एकगुण कर्कश पुद्गलों का भी आहार करते हैं यावत् अनन्तगुण कर्कश पुद्गलों का भी आहार करते हैं। इसी प्रकार क्रमशः आठों ही स्पर्शो के विषय में यावत् अनन्तगुण रुक्ष पुद्गलों का भी आहार करते हैं यहां तक कहना चाहिए।
प्र. (३) भन्ते ! वे जिन अनन्तगुण रुक्ष पुद्गलों का आहार करते हैं,
क्या चे स्पृष्ट पुद्गलों का आहार करते हैं या अस्पृष्ट पुद्गलों का आहार करते हैं ?
उ. गौतम ! वे स्पृष्ट पुद्गलों का आहार करते हैं, अस्पृष्ट पुद्गलों का आहार नहीं करते हैं।
प्र. भन्ते ! जिन स्पृष्ट पुद्गलों का आहार करते हैं,
क्या वे अवगाढ पुद्गलों का आहार करते हैं, अथवा अनवगाढ पुद्गलों का आहार करते हैं ?