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प्र. १०. भन्ते ! प्राणत कल्प में देवों को कितने काल के पश्चात्
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है? उ. गौतम ! जघन्य उन्नीस हजार वर्ष में,
उत्कृष्ट बीस हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। प्र. ११. भन्ते! आरण कल्प में देवों को कितने काल के पश्चात्
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है? उ. गौतम ! जघन्य बीस हजार वर्ष में,
उत्कृष्ट इक्कीस हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है।
प्र. १२. भन्ते ! अच्युत कल्प में देवों को कितने काल के पश्चात्
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है ? उ. गौतम ! जघन्य इक्कीस हजार वर्ष में,
उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष में आहाराभिलालषा उत्पन्न होती है।
प्र. १. भत्ते ! अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयकों में देवों को कितने काल
के पश्चात् आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है ? उ. गौतम। जघन्य बावीस हजार वर्ष में,
आहार अध्ययन
प. १०. पाणएणं भंते ! देवाणं केवइकालस्स आहारट्ठे . समुप्पज्जइ? उ. गोयमा! जहण्णेण एगूणवीसाए वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ,
उक्कोसेणं वीसाए वाससहस्साणं आहारट्टे समुप्पज्जइ। प. ११. आरणेणं भंते ! देवाणं केवइकालस्स आहारट्ठे
'समुप्पज्जइ? उ. गोयमा ! जहण्णेण वीसाए वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ, उक्कोसेणं एकवीसाए वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ। प. १२. अच्चुएणं भंते ! देवाणं केवइकालस्स आहारट्टे
समुप्पज्जइ? उ. गोयमा ! जहण्णेण एक्कवीसाए वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ, उक्कोसेणं बावीसाए वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ। प. १.हेट्टिमहेट्ठिमगेवेज्जगाणं भंते ! देवाणं केवइकालस्स
आहारट्टे समुप्पज्जइ? उ. गोयमा! जहण्णेण बावीसाए वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ, उक्कोसेणं तेवीसाए वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ। प. २. हेट्ठिममज्झिमाणं भंते ! देवाणं केवइकालस्स
आहारट्टे समुप्पज्जइ, उ. गोयमा ! जहण्णेण तेवीसाए वाससहस्साणं आहारट्टे
समुप्पज्जइ उक्कोसेणं चउवीसाए वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ। प. ३. हेट्ठिमउवरिमाणं भंते ! देवाणं केवइकालस्स
आहारट्टे समुप्पज्जइ? उ. गोयमा ! जहण्णेण चउवीसाए वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुष्पज्जइ, उक्कोसेणं पणवीसाए वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ६। प. ४. मज्झिमहेट्ठिमाणं भंते ! देवाणं केवइकालस्स
आहारट्टे समुप्पज्जइ? उ. गोयमा ! जहण्णेण पणवीसाए वाससहस्साणं आहारट्टे
समुप्पज्जइ, १. तेसिणं देवाणं वीसेहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुष्पज्जइ।
-सम. सम.२०,सु.१६ २. तेसिणं देवाणं एक्कवीसेहिं वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुष्पज्जइ।
-सम.सम.२१,सु.१३ ३. तेसि णं देवाणं बावीसं वाससहस्सेहिं आहारठे समुष्पज्जइ।
-सम.सम.२२, सु.१६
उत्कृष्ट तेवीस हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है।
प्र.२. भन्ते ! अधस्तन-मध्यम ग्रैवेयकों में देवों को कितने काल के
पश्चात् आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है? उ. गौतम ! जघन्य तेवीस हजार वर्ष में,
उत्कृष्ट चौबीस हजार वर्ष में आहारेच्छा उत्पन्न होती है।
प्र. ३. भन्ते ! अधस्तन-उपरिम अवेयकों में देवों को कितने काल
के पश्चात् आहार की इच्छा उत्पन्न होती है ? उ. गौतम ! जघन्य चौबीस हजार वर्ष में
उत्कृष्ट पच्चीस हजार वर्ष में आहारेच्छा उत्पन्न होती है।
प्र ४. भन्ते ! मध्यम-अधस्तन ग्रैवेयकों में देवों को कितने काल
के पश्चात् आहार की इच्छा उत्पन्न होती है ? उ. गौतम ! जघन्य पच्चीस हजार वर्ष में,
४. तेसिणं देवाणं तेवीसं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ।
-सम. सम.२३, सु.१२ ५. तेसिणं देवाणं चउवीस वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ।
__-सम. सम.२४,सु.१४ ६. तेसिणं देवाणं पणुवीस वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ।
-सम. सम.२५, सु.१७