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द्रव्यानुयोग-(१) ) उत्कृष्ट कुछ अधिक दो हजार वर्ष में आहारेच्छा उत्पन्न
होती है। प्र. ३. भन्ते! सनत्कुमार कल्प में देवों को कितने काल के पश्चात्
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है ? उ. गौतम! जघन्य दो हजार वर्ष में,
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उत्कृष्ट सात हजार वर्ष में आहारेच्छा उत्पन्न होती है। प्र. ४. भन्ते! माहेन्द्र कल्प में देवों को कितने काल के पश्चात् .
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है ? उ. गौतम! जघन्य कुछ अधिक दो हजार वर्ष में,
उत्कृष्ट कुछ अधिक सात हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न
होती है। प्र. ५.भन्ते! ब्रह्मलोक कल्प में देवों को कितने काल के पश्चात्
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है? उ. गौतम! जघन्य सात हजार वर्ष में,
उत्कृष्ट दस हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है।
प्र. ६. भन्ते! लान्तक कल्प में देवों को कितने काल के पश्चात्
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है? 'उ. गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष में,
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उक्कोसेण साइरेगाणं दोण्डं वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पजइ। प. ३. सणकुमाराणं भंते! देवाणं केवइकालस्स आहारट्ठे
समुप्पज्जइ? उ. गोयमा ! जहण्णेण दोण्हं वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पजइ
उक्कोसेण सत्तण्ह वाससहस्साणं आहारट्ठे समुप्पजइ। प. ४. माहिंदे णं भंते! देवाणं केवइकालस्स आहारट्ठे
समुप्पज्जइ? उ. गोयमा ! जहण्णेण दोण्हं वाससहस्साणं साइरेगाणं
आहारट्ठे समुप्पज्जइ, उक्कोसेण सत्तण्डं वाससहस्साणं साइरेगाणं आहारट्टे
समुप्पज्जइरे प. ५. बंभलोए णं भंते! देवाणं केवइकालस्स आहारट्ठे
समुप्पज्जइ? उ. गोयमा! जहण्णेण सत्तहँ वाससहस्साणं साइरेगाणं
आहारट्टे समुप्पज्जइ, उक्कोसेण दसहं वाससहस्साणं साइरेगाणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ। प. ६. लंतए णं भंते! देवाणं केवइकालस्स आहारट्ठे
समुप्पज्जइ ? उ. गोयमा! जहण्णेण दसण्हं वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ, उक्कोसेण चोद्दसण्हं वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ। प. ७. महासुक्के णं भंते! देवाणं केवइकालस्स आहारट्ठे
समुप्पज्जइ? उ. गोयमा! जहण्णेण चोद्दसण्हं वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ, उक्कोसेण सत्तरसहं वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ। प. ८. सहस्सारे णं भंते! देवाणं केवइकालस्स आहारट्टे
समुप्पज्जइ? उ. गोयमा! जहण्णेण सत्तरसण्हं वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ, उक्कोसेण अट्ठारसहं वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइ६। प. ९. आणए णं भंते! देवाणं केवइकालस्स आहारट्ठे
समुप्पज्जइ? उ. गोयमा! जहण्णेण अट्ठारसण्हं वाससहस्साणं आहारट्टे
समुप्पज्जइ, उक्कोसेण एगूणवीसाए वाससहस्साणं आहारट्ठे
समुप्पज्जइश १. सम.सम.३,सु.२२ २. तेसिणं देवाणं सत्तहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुष्पज्जइ
-सम. सम.७, सु. २२ ३. तेसि णं देवाणं दसहिं वाससहस्सेहिं आहारठे समुप्पज्जइ
-सम. सम.१०, सु.२४ ४. तेसिंण देवाणं चउद्दसहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुष्पज्जइ।
-सम. सम.१४,सु.१७
उत्कृष्ट चौदह हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है।
प्र. ७. भन्ते! महाशुक्र कल्प में देवों को कितने काल के पश्चात
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है? उ. गौतम ! जघन्य चौदह हजार वर्ष में,
उत्कृष्ट सतरह हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है।
प्र. ८. भन्ते! सहस्रार कल्प में देवों को कितने काल के पश्चात्
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है? उ. गौतम! जघन्य सतरह हजार वर्ष में,
उत्कृष्ट अठारह हजार वर्ष में आहारेच्छा उत्पन्न होती है।
प्र. ९. भन्ते ! आनत कल्प में देवों को कितने काल के पश्चात्
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है? उ. गौतम! जघन्य अठारह हजार वर्ष में,
उत्कृष्ट उन्नीस हजार वर्ष में आहारेच्छा उत्पन्न होती है।
५. तेसिणं देवाणं सत्तरसहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ .
-सम.सम.१७,सु.२०. ६. तेसिणं देवाणं अट्ठारस वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ
-सम. सम.१८,सु.१७ ७. तेसिणं देवाणं एगूणवीसेहिं वाससहस्सेहिं आहारठे समुप्पज्जइ।
-सम.सम.१९,सु.१४