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स्थिति अध्ययन
प. चंदविमाणे णं भंते ! अपज्जत्तियाणं देवीणं केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. चंदविमाणे णं भंते ! पज्जत्तियाणं देवीणं केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण चउभागपलिओवमं अंतोमुहूत्तूणं,
उक्कोसेण अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं
अब्भहियं अंतोमुत्तूणं। -पण्ण. प.४, सु. ३९७-३९८ ७२. जोइसिंदचंदस्स परिसागय देव-देवीणं ठिईप. चंदस्स णं भंते ! जोइसिंदस्स जोइसरण्णो
अभिंतरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? मज्झिमियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
- ३२३ ) प्र. भन्ते ! चन्द्रविमान में अपर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल
की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! चन्द्रविमान में पर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल
की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चतुर्थ भाग की,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचास हजार वर्ष अधिक
अर्धपल्योपम की। ७२. ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र की परिषदागत देव-देवियों की स्थितिप्र. भन्ते ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र की
आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही
मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही
बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! चंदस्सणं जोइसिंदस्स जोइसरण्णो
अभिंतरियाए परिसाए देवाणं अद्धपलिओवमं ठिई 'पण्णता। मज्झिमियाए परिसाए देवाणं देसूणं अद्धपलिओवमं ठिई पण्णत्ता। बाहिरियाए परिसाए देवाणं साइरेगं चउभागपलिओवम
ठिई पण्णत्ता। प. चंदस्स णं भंते !जोइसिंदस्स जोइसरण्णो
अभिंतरियाए परिसाए देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? मज्झिमियाए परिसाए देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की गई है? उ, गौतम ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र की
आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति आधे पल्योपम की कही गई है। मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति कुछ कम आधे पल्योपम की कही गई है। बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति कुछ अधिक पल्योपम के
चतुर्थ भाग की कही गई है। प्र. भन्ते ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र की
आभ्यन्तर परिषदा की देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? मध्यम परिषदा की देवियों की स्थिति कितने काल की कही
बाहिरियाए परिसाए देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! चंदस्सणं जोइसिंदस्स जोइसरण्णो
अभिंतरियाए परिसाए देवीणं साइरेगं चउभागपलिओवमं ठिई पण्णत्ता। मज्झिमियाए परिसाए देवीणं चउभागपलिओवमं ठिई पण्णत्ता। बाहिरियाए परिसाए देवीणं देसूणं चउभागपलिओवम
ठिई पण्णत्ता। -जीवा. पडि. ३, उ. २ सु. १२२ ७३. सूरविमाणवासी देव-देवीणं ठिई
प. सूरविमाणे णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
बाह्य परिषदा की देवियों की स्थिति कितने काल की गई है? उ. गौतम ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र की
आभ्यन्तर परिषदा की देवियों की स्थिति कुछ अधिक चतुर्थ भाग पल्योपम की कही गई है। मध्यम परिषदा की देवियों की स्थिति चतुर्थ भाग पल्योपम की कही गई है। बाह्य परिषदा की देवियों की स्थिति कुछ कम चतुर्थ भाग
पल्योपम की कही गई है। ७३. सूर्य विमानवासी देव-देवियों की स्थितिप्र. भन्ते ! सूर्यविमान में देवों की स्थिति कितने काल की कही
गई है? उ. गौतम ! जघन्य पल्योपम के चतुर्थ भाग की,
उत्कृष्ट एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम की। प्र. भन्ते ! सूर्यविमान में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की
कही गई है?
उ. गोयमा !जहण्णेण चउभागपलिओव,
उक्कोसेण पलिओवमं वाससहस्समब्भहियं। प. सूरविमाणे णं भंते ! अपज्जत्तयाणं देवाणं केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता?
१. (क) अणु. कालदारे सु. ३९०/३
(ख) जंबू. वक्ष.७, सु. २०५
(ग) जीवा. पडि. ३, सु. १९७ (घ) सूरिय. पा. १८ सु. ९८