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९६. माहिंदस्स परिसागय देवाणं ठिई
प. माहिंदस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णोअब्भितरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
मझिमियाए परिसाए देवाण केवइयं काल उई पण्णत्ता ?
बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! माहिंदस्स णं देविंदस्स देवरणो
अब्धिंतरियाए परिसाए देवाणं अद्धपंचमाई सागरोवमाई सत्त य पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।
मज्झिमियाए परिसाए देवाणं अद्धपंचमाई सागरोवमाई उच्च पलिओचमाई ठिई पण्णत्ता । बाहिरियाए परिसाए देवाणं अखपंचमाई सागरोवनाई पंचय पलिओचमाई ठिई पण्णत्ता ।
- जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १९९ ९७. सणकुमारमाहिंद कप्पेसु अत्थेगइय देवाणं ठिईसणकुमार - माहिंदेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं तिण्णि सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । सर्णकुमार माहिदेसु कयेसु सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । सणकुमार माहिंदेसु कप्पे सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । सणकुमार माहिंदेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं छ
- सम. सम. ५, सु. १८
सागरोवनाई ठिई पण्णत्ता ।
- सम. सम. ६, सु. १३
- सम. सम. ३, सु. २०
अत्येगइयाण देवाण चत्तारि
- सम. सम. ४, सु. १४ अत्येगइयाणं देवाणं पंच
९८. बंगलोयकप्पे देवाणं ठिई
प. बंभलोए कपे णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई
पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहणेण सत्त सागरोबमाई,
उक्कोसेण दस सागरोवमाई।
प. अपजत्तयाणं भंते! बंभलोए कप्पे देवाणं वयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।
प. पज्जत्तयाणं भंते! बंभलोए कप्पे देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहण्णेण सत्त सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई । उक्कोसेण दस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई ।
- पण्ण. प. ४, सु. ४१९
९९. बंगलोयकप्पे अत्येगइय देवाणं ठिई
१. (क) अणु. कालदारे सु. ३९१/६ (ख) उत्त. अ. ३६, गा. २२६
भोए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं अट्ठ सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता । -सम. सम. ८, सु. १४ बंभलोए कप्पे अत्येगइयाणं देवाणं नव सागरोवमाई टिई पण्णत्ता । -सम. सम. ९, सु. १६
९६. माहेन्द्र के परिषदागत देवों की स्थितिप्र. भन्ते देवेन्द्र देवराज माहेन्द्र की
द्रव्यानुयोग - (१)
आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उ. गौतम ! देवेन्द्र देवराज माहेन्द्र की
आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति सात पल्योपम सहित साढ़े चार सागरोपम की कही गई है।
मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति छह पत्योपम सहित साढ़े चार सागरोपम की कही गई है।
बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति पांच पल्योपम सहित साढ़े चार सागरीपण की कही गई है।
९७. सनत्कुमार माहेन्द्र कल्पों में कतिपय देवों की स्थितिसनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प के कतिपय देवों की स्थिति तीन सागरोपम की कही गई है।
सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के कतिपय देवों की स्थिति चार सागरोपम की कही गई है।
सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के कतिपय देवों की स्थिति पांच सागरोपम की कही गई है।
सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के कतिपय देवों की स्थिति छह सागरोपम की कही गई है।
९८. ब्रह्मलोक कल्प में देवों की स्थिति
प्र. भंते ! ब्रह्मलोककल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम ! जघन्य सात सागरोपम की,
उत्कृष्ट दस सागरोपम की।
प्र. भंते ! ब्रह्मलोक कल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की । प्र. भंते ! ब्रह्मलोक कल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दस सागरोपम की ।
९९. ब्रह्मलोक कल्प में कतिपय देवों की स्थिति
बहालोककल्प के कतिपय देशों की स्थिति आठ सागरोपम की कही गई है।
ब्रह्मलोककल्प के कतिपय देवों की स्थिति नै सागरोपम की कही गई है।
(ग) ठाणं. अ. ७, सु. ५७७/३ (ज.) (घ) ठाणं, अ. १०, सु. ७५७/१८ (उ.)
(ङ)
सम. सम. ७, सु. १९ (ज.) (च) सम. सम. १०, सु. २० (उ.)