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स्थिति अध्ययन
३३३ उत्कृष्ट सात सागरोपम की। प्र. भन्ते ! सनत्कुमारकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने
काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! सनत्कुमारकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल
की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दो सागरोपम की,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम की।
उक्कोसेण सत्त सागरोवामाई। प. अपज्जत्तयाणं भंते ! सणंकुमारे कप्पे देवाणं केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तयाणं भंते ! सणंकुमारे कप्पे देवाणं केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण दो सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेण सत्त सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई।
-पण्ण.प.४,सु.४१७ ९४. संणंकुमारिंदस्स परिसागय देवाणं ठिईप. सणंकुमारस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो
अभिंतरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? मज्झिमियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! सणंकुमारस्सणं देविंदस्स देवरण्णो
अभिंतरियाए परिसाए देवाणं अद्धपंचमाई सागरोवमाई पंच पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। मज्झिमियाए परिसाए देवाणं अद्धपंचमाइं सागरोवमाई चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता । बाहिरियाए परिसाए देवाणं अद्धपंचमाई सागरोवमाई तिण्णि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
-जीवा. पडि.३, उ.२,सु.१९९(ई) ९५. माहिंदकप्पे देवाणं ठिई
प. माहिंदे कप्पेणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
९४. सनत्कुमारेन्द्र के परिषदागत देवों की स्थितिप्र. भन्ते ! सनत्कुमार देवेन्द्र देवराज की
आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! सनत्कुमार देवेन्द्र देवराज की
आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और पांच पल्योपम की कही गई है। मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और चार पल्योपम की कही गई है। बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और तीन पल्योपम की कही गई है।
९५. माहेन्द्र कल्प में देवों की स्थिति
प्र. भन्ते ! माहेन्द्रकल्प के देवों की स्थिति कितने काल की कही
उ. गोयमा !जहण्णेण साइरेगाइं दो सागरोवमाई,
उक्कोसेणं सत्त साइरेगाइं सागरोवामाई। प. अपज्जत्तयाणं भंते ! माहिद कप्पें देवाणं केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तयाणं भंते ! माहिंदे कप्पे देवाणं केवइयं कालं ठिई
पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण साइरेगाई दो सागरोवमाई अंतो
मुहुत्तूणाई, उक्कोसेण साइरेगाइं सत्त सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई।
-पण्ण.प.४,सु.४१८
उ. गौतम ! जघन्य दो सागरोपम से कुछ अधिक की,
उत्कृष्ट सात सागरोपम से कुछ अधिक की। प्र. भन्ते ! माहेन्द्रकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल
की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! माहेन्द्रकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की
कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दो सागरोपम से कुछ
अधिक की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम से कुछ अधिक की।
१. (क) अणु.कालदारे सु.३९१/४
(ख) उत्त.अ.३६,गा.२२४ .(ग) ठाणं अ.२, उ.४,सु.१२४/४ (ज.) (घ) सम.सम.२,सु.१८,(ज.) (ङ) ठाणं अ.७,सु.५७७/१ (उ.)
(च) सम.सम.७,सु.१७ (उ.)
(छ) विया.स.३,उ.१.सु.६३ २. (क) अणु. कालदारे सु. ३९१/५
(ख) उत्त.अ.३६,गा. २२५ (ग) ठाणं अ. २, उ. ४, सु. १२४/५(ज.)
(घ) ठाणं. अ.७, सु. ५७७/१ (उ.) (ङ) सम. सम. २, सु. १९, (ज.) (च) सम. सम.७,सु. १८ (उ.)