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स्थिति अध्ययन
सागरोवमाई पंच पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । मझिमियाए परिसाए देवाणं अद्धसोलस सागरोवमाई चत्तारि पलिओचमाई ठिई पण्णत्ता । बाहिरियाए परिसाए देवाणं अद्धसोलस सागरोवमाई तिष्णि पलि ओवमाई ठिई पण्णत्ता।
- जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १९९ (ई)
१०७. सहस्सारकप्पे देवाणं ठिई
प. सहस्सारे कच्चे णं भंते! देवाणं केवहयं कालं ठिर्ड
पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहण्जेण सत्तरस सागरोदमाई,
उक्कोसेण अट्ठारस सागरोवमाई' ।
प. अपरणत्तयाणं भंते ! सहस्सारे कप्पे देवाणं केवइय कालं ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहणेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । प. पज्जत्तवाणं भंते! सहस्सारे कप्पे देवाणं केवइयं कालं टिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहणणेण सत्तरस सागरोवमाई अंतोमुहत्तूणाई,
उक्कोसेण अट्ठारस सागरोवमाई अंतोमहत्तूणाई।
- पण्ण. प. ४, सु. ४२२
१०८. सहस्सार देविंदस्स परिसागय देवाणं ठिईप. सहस्सारे णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णोअब्धिंतरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं विई पण्णत्ता ?
मझिमियाए परिसाए देवाणं केवइवं कालं ठिई पण्णत्ता ?
बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवइयं काल टिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! सहस्सारे णं देविंदस्स देवरण्णो
अब्धिंतरियाए परिसाए देवाणं अद्धट्ठारस सागरोवमाई सत्त पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । मझिमियाए परिसाए देवाणं अट्ठारस सागरोवमाई छपलि ओवमाई ठिई पण्णत्ता । बाहिरियाए परिसाए देवाणं अट्ठारस सागरोवमाई पंच पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ।
- जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १९९ (ई)
१०९. आणयकप्पे देवाण ठिई
प. आनए कप्पे णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई
पणता ?
उ. गोयमा ! जहणणेण अट्ठारस सागरोवमाई, उक्कोसेण एगुणवीस सागरोवमाई ।
१. (क) अणु. कालदारे सु. ३९१/७ (ख) उत्त. अ. ३६, गा. २२९
(ग) उव. पय. २, सु. १५५
(घ) (ङ)
२. (क)
१०७. सहस्रार कल्प में देवों की स्थिति
साढ़े पन्द्रह सागरोपम की कही गई है।
मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति चार पल्योपम सहित साढ़े पन्द्रह सागरोपम की कही गई है।
बाह्य परिषदा के देयों की स्थिति तीन पत्योपम सहित साढ़े पन्द्रह सागरोपम की कही गई है।
प्र. भंते! सहस्रारकल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
३३७
उ. गौतम ! जघन्य सतरह सागरोपम की, उत्कृष्ट अठारह सागरोपम की ।
प्र. भंते! सहस्रारकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की ।
प्र. भंते ! सहस्रारकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम जधन्य अन्तर्मुहुर्त कम सतरह सागरोपम की,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम अठारह सागरोपम की ।
१०८. सहस्रार देवेन्द्र के परिषदागत देवों की स्थितिप्र. भंते ! देवेन्द्र देवराज सहस्रार की
आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
सम. सम. १७, सु. १७ (ज.)
सम. सम. १८, सु. १३ (उ.) अणु. कालदारे सु. ३९१/७
मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम ! देवेन्द्र देवराज सहस्रार की
आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति सात पल्योपम सहित साढ़े सतरह सागरोपम की कही गई है।
मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति छह पल्योपम सहित साढ़े सतरह सागरोपम की कही गई है।
१०९. आनत कल्प में देवों की स्थिति
बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति पांच पत्योपम सहित साढ़े सतरह सागरोपम की कही गई है।
प्र. भंते! आनतकल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उ. गौतम ! जघन्य अठारह सागरोपम की, उत्कृष्ट उन्नीस सागरोपम की।
(ख) उत्त. अ, ३६, गा. २३० (ग) सम. सम. १८, सु. १४, (ज.) (घ) सम. सम. १९, सु. १०, ( उ )