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स्थिति अध्ययन उ. गोयमा ! जहण्णेण पणवीसं सागरोवमाई,
उक्कोसेण छव्वीसं सागरोवमाइं। प. मज्झिमहेट्ठिमगेवेज्जग अपज्जत्तय देवाणं भंते !
केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। .
- ३४१ ) उ. गौतम ! जघन्य पच्चीस सागरोपम की,
उत्कृष्ट छब्बीस सागरोपम की। प्र. भंते ! मध्यम-अधस्तन ग्रैवेयक अपर्याप्त देवों की स्थिति .
कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त
की। प्र. भंते ! मध्यम-अधस्तन ग्रैवयक पर्याप्त देवों की स्थिति
कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पच्चीस सागरोपम की,
प. मज्झिमहेट्ठिमगेवेज्जग पज्जत्तय देवाणं भंते ! केवइयं
कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण पणवीसं सागरोवमाई
अंतोमुहुत्तूणाई,
उक्कोसेण छव्वीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। प. ५. मज्झिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं भंते ! केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण छव्वीसं सागरोवमाई,
उक्कोसेण सत्तावीसं सागरोवमाइं| प. मज्झिममज्झिमगेवेज्जग अपज्जत्तय देवाणं भंते !
केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतीमुहुत्तं।
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम छब्बीस सागरोपम की। प्र. ५. भंते ! मध्यम-मध्यम (बीच के त्रिक के बिचले) ग्रैवेयक
देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य छब्बीस सागरोपम की,
उत्कृष्ट सत्ताईस सागरोपम की। प्र. भंते ! मध्यम-मध्यम ग्रैवेयक अपर्याप्त देवों की स्थिति
कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त
की। प्र. भंते ! मध्यम-मध्यम ग्रैवेयक पर्याप्त देवों की स्थिति कितने
काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम छब्बीस सागरोपम की,
५. मज्झिममज्झिमगेवेज्जग पज्जत्तयदेवाणं भंते ! केवइयं
कालं ठिई पण्णत्ता? . उ. गोयमा ! जहण्णेण छव्वीसं सागरोवमाई अंतो
मुहुत्तूणाई,
उक्कोसेण सत्तावीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। प. ६. मज्झिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं भंते ! केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण सत्तावीसं सागरोवमाई,
उक्कोसेण अट्ठावीसं सागरोवमाइं३| प. मज्झिमउवरिमगेवेज्जग अपज्जत्तय देवाणं भंते !
केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सत्ताईस सागरोपम की। प्र. ६. भंते ! मध्यम-उपरितन (बीच के त्रिक में सबसे ऊपर
वाले) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य सत्ताईस सागरोपम की,
उत्कृष्ट अट्ठाईस सागरोपम की। प्र. भंते ! मध्यम-उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्त देवों की स्थिति
कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त
की। प्र. भंते ! मध्यम-उपरितन ग्रैवेयक पर्याप्त देवों की स्थिति
कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सत्ताईस सागरोपम की,
प. मज्झिमउवरिमगेवेज्जग पज्जत्तय देवाणं भंते ! केवइयं
कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण सत्तावीसं सागरोवमाइं अंतो
मुहुतूणाई।
उक्कोसेण अट्ठावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। प. ७. उवरिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं भंते ! केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अठ्ठावीसं सागरोवमाई,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम अट्ठाईस सागरोपम की। प्र. ७. भंते ! उपरितन-अधस्तन (ऊपर के त्रिक के निचले)
ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अट्ठाईस सागरोपम की,
१. (क) उत्त.अ.३६, गा.२३७.
(ख) अणु.सु.३९१(८) (ग) सम.सम.२५,सु.१४ (ज.) (घ) सम.सम.२६,सु.८(उ.)
२. (क) उत्त.अ.३६,गा.२३८
(ख) अणु.सु.३९१(८) (ग) सम.सम.२६,सु.७(ज.) (घ) सम. सम.२७ सु. १२ (उ.)
३. (क) उत्त.अ.३६,गा.२३९
(ख) अणु.सु.३९१(८) (ग) सम.सम.२७,सु.११ (ज.) (घ) सम.सम.२८,सु. १२ (उ.)