________________
२९२
द्रव्यानुयोग-(१) ३३. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं ३३. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति तेतीस
तेत्तीस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम. ३३, सु. ५ पल्योपम की कही गई है। ८. सक्करप्पभापुढवि नेरइयाणं ठिई
८. शर्कराप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थितिप. सक्करप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई प्र. भन्ते ! शर्कराप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल पण्णत्ता?
की कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं सागरोवमं,
उ. गौतम ! जघन्य एक सागरोपम की, उक्कोसेण तिण्णि सागरोवमाई।
उत्कृष्ट तीन सागरोपम की। प. अपज्जत्तय-सक्करप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं प्र. भन्ते ! शर्कराप्रभा पृथ्वी के अपर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कालं ठिई पण्णत्ता?
कितने काल की कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तमुहूर्त की। प. पज्जत्तय-सक्करप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं प्र. भन्ते ! शर्कराप्रभा पृथ्वी के पर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कितने कालं ठिई पण्णत्ता?
काल की कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण सागरोवमं अंतोमुहुत्तूणाई,
उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक सागरोपम की, उक्कोसेण तिण्णि सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई।
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन सागरोपम की।
-पण्ण. प.४, सु. ३३७ ९. सक्करप्पभापुढवीए अत्यंगइय नेरइयाणं ठिई
९. शर्कराप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थितिदुच्चाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं दो सागरोवमाई दूसरी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति दो सागरोपम की कही ठिई पण्णत्ता।
-सम. सम.२, सु.९ १०. वालुयप्पभापुढविनेरइयाणं ठिई
१०. वालुकाप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थितिप. वालुयप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई प्र. भन्ते ! वालुकाप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल पण्णत्ता?
की कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेणं तिण्णि सागरोवमाई,
उ. गौतम ! जघन्य तीन सागरोपम की, उक्कोसेण सत्त सागरोवमाइं२।
उत्कृष्ट सात सागरोपम की। प. अपज्जत्त-वालुयप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं प्र. भन्ते ! वालुकाप्रभा पृथ्वी के अपर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कालं ठिई पण्णत्ता?
कितने काल की कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प. पज्जत्त-वालुयप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं . प्र. भन्ते ! वालुकाप्रभा पृथ्वी के पर्याप्त नैरयिकों की स्थिति ठिई पण्णत्ता?
कितने काल की कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण तिण्णि सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, . उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम तीन सागरोपम की, उक्कोसेण सत्त सागरोवमाई अंतोमुहूत्तूणाई।
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम की।
-पण्ण.प.४ सु.३३८ ११. वालुयप्पभापुढवीए अत्येगइय नेरइयाणं ठिई
११. वालुकाप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थितितच्चाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चत्तारि तीसरी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति चार सागरोपम की सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। _ -सम. सम.४, सु.११ कही गई है। तच्चाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पंच सागरोवमाई तीसरी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति पांच सागरोपम की ठिई पण्णत्ता।
-सम. सम.५, सु.१५
कही गई है। १. (क) अणु.कालदारे सु.३८३/३
२. (क) अणु.कालदारे सु.३८३/३ (ख) उत्त.अ.३६,गा.१६१
(ख) उत्त.अ.३६,गा.१६२ (ग) जीवा.पडि.३, उ.२,सु.९०
ग) जीवा. पडि.३, उ.२,सु.९० (घ) ठाणं अ.३, उ.१,सु.१५५/१
(घ) ठाणं अ.३,उ.१,सु.१५५/२ (ङ) सम.सम.१,सु.२८,(ज.)
(ङ) सम.सम.३,सु.१५,(ज.) (च) सम.सम.३,सु.२८(उ.)
(च) सम.सम.७,सु.१३,(उ.) (छ) ठाणं अ.७,सु. ५७३ (२)