________________
स्थिति अध्ययन
२९५
प्र. भन्ते ! अधःसप्तम पृथ्वी के अपर्याप्त नैरयिकों की स्थिति
कितने काल की कही गई है। उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! अधःसप्तम पृथ्वी के पर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कितने
काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम बाईस सागरोपम की,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की।
प. अपज्जत्तय-अहेसत्तमपुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तय-अहेसत्तमपुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण बावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुहत्तूणाई।
-पण्ण.प.४,सु.३४२ १९. अहेसत्तमपुढवीए कालाइनारगावासेसु उक्कोस ठिई
अहे सत्तमाए पुढवीए काल-महाकाल- रोरुय-महारोरुएसु नेरइयाणं उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
-सम. सम.३३, सु.६ अप्पइट्ठाणनरए नेरइयाणं अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
-सम. सम.३३, सु.७ २०. अहेसत्तमपुढवीए अत्यंगइय नेरइयाणं ठिई१. अहेसत्तमाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तेवीसं
सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.२३, सु.६ २. अहेसत्तमाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चउवीसं
सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.२४, सु.८ ३. अहेसत्तमाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पणवीसं
सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम. २५, सु.११ ४. अहेसत्तमाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं छव्वीसं
सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। -सम. सम. २६, सु.४ ५. अहेसत्तमाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सत्तावीसं
सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम. २७, सु.८ ६. अहेसत्तमाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
-सम. सम.२८,सु.७ ७. अहेसत्तमाए णं पुढवीए अत्यंगइयाणं नेरइयाणं एगूणतीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
-सम.सम.२९,सु.११ ८. अहेसत्तमाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तीसं
सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.३०, सु.१० ९. अहेसत्तमाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं
एक्कतीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।-सम. सम.३१, सु.७ १०. अहेसत्तमाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं बत्तीसं
सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.३२, सु.८ २१. तिरिक्खजोणिय जीवाणं ठिई
प. तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण तिण्णि पलिओवमाई।
-जीवा. पडि.३, उ.२,सु.२०६
१९. अधःसप्तम पृथ्वी के कालादि नारकावासों में उत्कृष्ट स्थिति
नीचे की सातवीं पृथ्वी के काल, महाकाल, रोरुक और महारोरुक इन चार नारकावासों के नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की कही गई है। (सप्तम पृथ्वी के) अप्रतिष्ठान नरक के नैरयिकों की सामान्य
स्थिति अजघन्य अनुत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की कही गई है। २०. अधःसप्तम पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति१. नीचे की सातवीं पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति तेवीस
सागरोपम की कही गई है। २. नीचे की सातवीं पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति चौबीस
सागरोपम की कही गई है। ३. नीचे की सातवीं पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति पच्चीस
सागरोपम की कही गई है। ४. नीचे की सातवीं पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति छब्बीस
सागरोपम की कही गई है। ५. नीचे की सातवीं पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति
सत्ताईस सागरोपम की कही गई है। ६. नीचे की सातवीं पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति
अट्ठाईस सागरोपम की कही गई है।
७. नीचे की सातवीं पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति उन्तीस
सागरोपम की कही गई है।
८. नीचे की सातवीं पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति तीस
सागरोपम की कही गई है। ९. नीचे की सातवीं पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति
इकत्तीस सागरोपम की कही गई है। १०. नीचे की सातवीं पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति बत्तीस
सागरोपम की कही गई है। २१. तिर्यग्योनिक जीवों की स्थिति
प्र. भन्ते ! तिर्यग्योनिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त,
उत्कृष्ट तीन पल्योपम।
१. सम.सम.३,सु.१८