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स्थिति अध्ययन
तच्चाए णं पुढवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं छ सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।
- सम. सम. ६, सु. १०
१२. पंकप्पभापुढवि नेरइयाणं ठिई
प. पंकप्पभापुढविनेरइयाणं भंते केवइयं कालं ठिई
पण्णत्ता ?
उ. गोवमा ! जहणणेण सत्रा सागरोवमाई, उक्कोसेण दस सागरोवमाई' |
प. अपज्जत्तय-पंकप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । प. पज्जत्तय पंकप्पभापुढविनेरइयाणं भंते! केवइयं काल ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहण्णेण सत्त सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई । उक्कोसेण दस सागरोवमाई अंतोमुहुतूणाई।
-पण्ण. प. ४, सु. ३३९
१३. पंकष्पभापुढवीए अत्येगइव नेरइयाणं ठिईचउत्थीए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठ सागरोवमाई टिई पण्णत्ता ।
-सम. सम. ८, सु. ११
उत्थी णं पुढवी अत्थेगइयाणं नेरइयाणं नव सागरोवमाई टिई पण्णत्ता । - सम. सम. ९, सु. १३
१४. धूमप्पभापुढवि नेरइयाणं ठिई
प. धूमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहण्णेण दस सागरोवमाई, उक्कोसेण सत्तरस सागरोवमाई २ ।
प. अपज्जत्तव धूमप्यभापुढविनेरइयाणं भंते! केवइयं काल ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । प. पज्जत्तय- धूमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं टिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहणेण दस सागरोवमाई अंतोमहत्तूणाई, उक्कोसेण सत्तरस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई ।
- पण्ण. प. ४, सु. ३४०
१५. धूमप्पभापुढवीए अत्येगइय नेरइयाणं ठिई
पंचमीए पुढवीए अल्येगइयाणं नेरइयाणं एक्कारस सागरोवमाई टिई पण्णत्ता । -सम. सम. ११, सु. ९
१. (क) अणु. कालदारे सु. ३८३/४ (ख) उत्त. अ. ३६ गा. १६३ (ग) जीवा. पडि. ३, सु. ९० (घ) ठाणं. अ. ७, सु. ५७३ / ३ (ज.) (ङ) सम. सम. ७, सु. १४ (ज.) (च) ठाणं. अ. 90, सु. ७५७/३ (उ.) (छ) सम. सम. १०, सु. १२, (उ. )
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तीसरी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति छड़ सागरोपम की कही गई है।
१२. पंकप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति
प्र. भन्ते ! पंकप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम ! जघन्य सात सागरोपम की,
उत्कृष्ट दस सागरोपम की ।
प्र. भन्ते ! पंकप्रभा पृथ्वी के अपर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ.
गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की । प्र. भन्ते ! पंकप्रभा पृथ्वी के पर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहुर्त कम दस सागरोपम की।
१३. पंकप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति
चौथी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति आठ सागरोपम की कही गई है।
चौथी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति नौ सागरोपम की कही गई है।
१४. धूमप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति
प्र. भन्ते ! धूमप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम ! जघन्य दस सागरोपम की,
उत्कृष्ट सत्तरह सागरोपम की।
प्र. भन्ते ! धूमप्रभा पृथ्वी के अपर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की । प्र. भन्ते । धूमप्रभा पृथ्वी के पर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम दस सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहुर्त कम सत्तरह सागरोपम की।
१५. धूमप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति
पांचवी पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति ग्यारह सागरोपम की कही गई है।
२. (क) अणु. कालदारे सु. ३८३/४
(ख) उत्त. अ. ३६, गा. १६४
(ग) जीवा. पडि. ३, सु. ९० (घ) ठाणं अ. १०, सु. ७५७/४ (ज.)
(ङ) सम. सम. १०, सु. १३ (ज.) (च) सम. सम. १७, सु. १२, (उ.)