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( ३१० । उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण तिण्णिं पलिओवमाई अंतोमुहुत्तूणाई।
-पण्ण. प.४, सु.३९० प. सम्मुच्छिम-मणुस्साणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
( द्रव्यानुयोग-(१)) उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की।
प्र. भन्ते ! सम्मूर्छिम मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही
गई है ? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! गर्भज मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं भंते ! केवइयं कालं ठिई
पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, - उक्कोसेण तिण्णि पलिओवमाई२। प. अपज्जत्तय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं भंते ! केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्त। प. पज्जत्तय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं भंते ! केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहत्तूणाई३।
-पण्ण.प.४, सु.३९१-३९२ प. पढमसमय-मणुस्साणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की,
उत्कृष्ट तीन पल्योपम की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त गर्भज मनुष्यों की स्थिति कितने काल की
कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त गर्भज मनुष्यों की स्थिति कितने-काल की कही
गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की।
प्र. भन्ते ! प्रथम समय मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही
गई है ? उ. गौतम ! एक समय की। प्र. भन्ते ! अप्रथम समय मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही
उ. गौतम ! जघन्य एक समय कम लघुभवग्रहण की,
उत्कृष्ट समय न्यून तीन पल्योपम की।
४८. कतिपय गर्भज मनुष्यों की स्थिति
असंख्य वर्षों की आयु वाले कतिपय गर्भज संज्ञी मनुष्यों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है।
उ. गोयमा !एगं समयं। प. अपढमसमय-मणुस्साणं भंते ! केवइयं कालं ठिई
पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेण तिण्णि पलिओवमाइं समयूणाई,
-जीवा. पडि.७, सु. २२६ ४८. अत्यंगइय गब्मवक्कंतिय मणुस्साणं ठिई
असंखेज्ज-वासाउय-गब्भवक्कंतिय-सण्णि मणुयाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता?
-सम. सम.१,सु.३६ असंखेज्ज - वासाउय - गब्भवक्कंतिय - सण्णि पंचिंदिय - मणुस्साणं अत्थेगइयाणं दो पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता।
-सम.सम.२,सु.१३ ४९. मणुस्सित्थीणं ठिई
प. मणुस्सित्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं,
उक्कोसेण तिण्णि पलिओवमाई। धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण देसूणा पुव्वकोडी।
असंख्य वर्षों की आयु वाले कतिपय गर्भज संज्ञी मनुष्यों की स्थिति दो पल्योपम की कही गई है।
४९. मनुष्य स्त्रियों की स्थिति
प्र. भन्ते ! मनुष्य स्त्रियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त,
उत्कृष्ट तीन पल्योपम। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट देशऊण पूर्वकोटि।
१. (क) अणु.कालदारे सु.३८८/२
(ख) जीवा.पडि.१,सु.४१ २. जीवा.पडि.१,सु.४१ ३. (क) अणु.कालदारेसु.३८८/३
(ख) जीवा.पडि.१.सु.४१ (ग) ठाणं.अ.३,उ.१.सु.१५१/२ (घ) सम.सम.३,सु.१८(उ.)