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द्रव्यानुयोग-(१) ११. संज्ञा - अध्ययन
११. सण्णा-अज्झयणं
सूत्र
१. ओहेण सण्णा परूवणंएगा सण्णा
-ठाणं.अ.१,सु.२० २. चत्तारि सण्णाओ तदुप्पत्तिकारणाणि य
चत्तारि सण्णाओ पण्णत्ताओ,तंजहा१. आहारसण्णा,
२. भयसण्णा , ३. मेहुणसण्णा, . ४. परिग्गहसण्णा'। चउहि ठाणेहिं आहारसण्णा समुप्पज्जइ,तं जहा१. ओमकोट्टयाए, २. छुहावेयणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, ३. मईए, ४..तदट्ठोवओगेणं। चउहिं ठाणेहिं भयसण्णा समुप्पज्जइ,तं जहा१. हीणसत्तयाए, २. भयवेयणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, ३. मईए, ४. तदट्ठोवओगेणं। चउहिं ठाणेहिं मेहुणसण्णा समुप्पज्जइ,तं जहा१. चित्तमंससोणियाए, २. मोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, ३. मईए, ४. तदट्ठोवओगेणं। चउहिँ ठाणेहिं परिग्गह सण्णा समुप्पज्जइ, तं जहा१. अविसुत्तयाए, २. लोभवेयणिज्जस्स कम्पस्स उदएणं, ३. मईए,
४. तदट्ठोवओगेणं। -ठाणं.अ.४, उ.४,सु.३५६ ३. सण्णाणं अगरुलहुयत्त परूवणंप. सण्णाओ णं भंते ! किं गरुया? लहुया? गरुयलहुया?
अगरुयलहुया? उ. गोयमा ! णो गरुया, णो लहुया, णो गरुयलहुया, ___ अगरुयलहुया।
-विया.स.१,उ.९, स.११ ४. सण्णाणिव्वुत्ति भेया चउवीसदंडएसय परूवणं-..... .....
१. सामान्य से संज्ञा का प्ररूपण
संज्ञा एक है। २. चार प्रकार की संज्ञायें और उनकी उत्पत्ति के कारण
संज्ञाए चार कही गई हैं, यथा१. आहार संज्ञा,
२. भय-संज्ञा, ३. मैथुन-संज्ञा,
४. परिग्रह-संज्ञा, चार स्थानों (कारणों) से आहार संज्ञा उत्पन्न होती है, यथा१. पेट के खाली हो जाने से, २. क्षुधावेदनीय कर्म के उदय से, ३. आहार चर्चा श्रवणानन्तर उत्पन्न मति से, ४. आहार के विषय में चिंतन करते रहने से। चार कारणों से भय संज्ञा उत्पन्न होती है, यथा१. सत्वहीनता से, २. भय-वेदनीय कर्म के उदय से, ३. भयजनक वार्ता श्रवणानन्तर उत्पन्न मति से, ४. भय का सतत चिंतन करते रहने से। चार कारणों से मैथुन-संज्ञा उत्पन्न होती है, यथा१. अत्यधिक मांस शोणित का उपचय हो जाने से, २. मोहनीय कर्म के उदय से, ३. काम कथा श्रवणानन्तर उत्पन्न मति से, ४. मैथुन का सतत चिंतन करते रहने से। चार कारणों से परिग्रह संज्ञा उत्पन्न होती है, यथा१. परिग्रह पास में रहने से, २. लोभ-वेदनीय कर्म के उदय से, ३. परिग्रह कथा श्रवणानन्तर उत्पन्न मति से, .
४. परिग्रह का सतत चिंतन करते रहने से। ३. संज्ञाओं के अगुरुलघुत्व का प्ररूपण
प्र. भंते ! संज्ञाएं क्या गुरु हैं, लघु हैं, गुरुलघु हैं या अगुरुलघु हैं ?
उ. गौतम ! संज्ञाएं गुरु नहीं हैं, लघु नहीं हैं और गुरुलघु भी नहीं
हैं किन्तु अगुरुलघु हैं। ४. संता निर्वत्तुि के.भेद और चौबीसदकों में minium - 2-7 . इसी प्रकार वनातिकी पर्यन्त संज्ञा निवृतियां
जाननी चाहिए।
-विया.स.१९, उ८,सु.३२-३३
१.
सम.सम.४,सु.४
दं.१-२४. एवं जाव वेमाणियाणं।
-विया.स.१९, उ८,सु.३२-३३
तं १-२४ सी प्रकार वैमानितों पर्णत संवा निवृतियां जाननी चाहिए।
१.
सम.सम.४,सु.४